रूस की एक अदालत ने भगवद् गीता के
रूसी संस्करण पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी
मांग को खारिज कर दिया. साइबीरिया
के शहर टॉम्सक में अभियोजन पक्ष की दलील
थी कि यह संस्करण ‘कट्टरपंथी’
है.
हिंदू
धर्म और जीवनशैली में भागवत गीता को एक विशेष स्थान और सर्वआयामी महत्व
प्रदान किया गया है. इसे वेदों और उपनिषदों के सार के रूप में प्रस्तुत
किया गया है. गीता ना सिर्फ हमें जीवन के सही अर्थ से अवगत करवाती है बल्कि
भौतिक दुनियां में बढ़ रहे क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार को नकार कर मनुष्य को
सही राह पर चलने और जीवन के उच्च मूल्यों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करती
है. श्रीमद भागवत गीता की इसी खूबी के कारण इसे हिंदुओं के पवित्र धार्मिक
ग्रंथ के रूप में अपनाया गया है.

याचिकाकर्ताओं
की ओर से कहा गया था कि गीता का यह उपदेश युद्ध के लिए प्रेरित करता है और
इस्कॉन शाखा द्वारा स्थानीय तौर पर गीता का
वितरण कर श्री कृष्ण की महिमा का गुणगान करना साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देता
है इसीलिए इस पर सार्वजनिक रूप से प्रतिबंधित लगा दिया जाए. किंतु अदालत
ने भगवद् गीता के रूसी संस्करण पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी मांग को खारिज
कर दिया.
गीता
में वर्णित उपदेश हमें सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए इच्छाओं और
भय से मुक्त रहना सिखाते हैं. मनुष्य का काम सही कर्म करना है उसे फल देना
नियति के हाथों में है.
गीता
भले ही हिंदुओं का धार्मिक ग्रंथ हो लेकिन इसमें लिखे उपदेश किसी भी रूप
में किसी विशेष जाति समुदाय या धर्म से संबंधित नहीं हैं. गीता को पढ़कर
मनुष्य को अपने कर्तव्यों और अध्यात्म की जरूरत का ज्ञान होता है.
मनुष्य
अपने जीवन में कई भूमिकाओं का निर्वाह करता है. ऐसे में जाहिर है उसके
कर्तव्य और प्राथमिकताएं भिन्न-भिन्न होंगी. श्री कृष्ण ने गीता में दिए गए
अपने उपदेशों के जरिए इन्हीं भूमिकाओं पर अडिग रहने को ही जीवन का सही
मूलमंत्र कहा है.
गीता
में कर्म और सत्य को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. जहां एक ओर गीता
हमें शत्रुओं से लड़ना सिखाती है वहीं त्याग, प्रेम और कर्तव्यों का संदेश
भी देती है. मनुष्य जीवन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति और सांसारिक
दुखों से मुक्ति पाना होता है, श्री कृष्ण के अनुसार यह उसी को मिलता है जो
अपनी सभी जिम्मेदारियों और गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए ईश्वर की आराधना
करता है. मनुष्य को अहंकार, ईर्ष्या, लोभ, लालच आदि जैसे शत्रुओं को
त्यागकर मानवता और सत्य के मार्ग पर अग्रसर करना ही गीता का सार और अंतिम
उद्देश्य है.
गीता के अंतर्गत सही प्रशासक और जन सेवक की क्या जिम्मेदारियां होनी चाहिए इन सभी का वर्णन किया गया है. ऐसे में संभवत: इन उपदेशों को अपनी समझ के अनुसार ग्रहण कर लिया जाए. गीता में प्रस्तुत श्लोकों को विभिन्न अर्थों में ग्रहण किया जा सकता है ऐसे में इन उपदेशों के सार के साथ छेड-छाड़ होना भी संभव है. लेकिन इस कारण गीता के मौलिक उद्देश्यों से मुंह नहीं फेरा जा सकता जो जन-जागृति फैलाना और मनुष्य को आध्यात्मिक शिक्षा की ओर प्रेरित करना है
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