क्या तलाक के लिए महिलाएं ही होती हैं जिम्मेदार ?
वैवाहिक संबंध किसी
भी व्यक्ति के जीवन में स्थायित्व लाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
है. आज भले ही अफेयर जैसे संबंधों को स्वीकार्यता देने वाले युवा अपने
कॅरियर और स्वतंत्रता को अहमियत देने लगे हैं लेकिन फिर भी एक पड़ाव पर आकर
उन्हें अपने जीवन में एक ऐसे साथी की आवश्यकता महसूस होने लगती है जो हर
कदम पर उनका साथ देने के अलावा उन्हें भावनात्मक समर्थन भी प्रदान करे.
हालांकि
हमारे परंपरागत समाज में विवाह से पहले शारीरिक संबंध स्थापित करने की
अनुमति प्रदान नहीं की गई है लेकिन फिर भी आधुनिकता से ग्रसित हमारे युवा
बिना किसी परेशानी के इनका अनुसरण कर रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच विवाह
रूपी संबंध जो पति-पत्नी को भावनात्मक डोर से जोड़ते हैं, को नजरअंदाज नहीं
किया जा सकता. लेकिन कभी-कभार जब विवाहित दंपत्ति के हित आपस में टकराने
लगते हैं, एक-दूसरे के प्रति उनकी अपेक्षाएं अपने मायने गंवा देती हैं तो
निश्चित ही उनका साथ रहना मुश्किल हो जाता है. उनके पास तलाक लेकर अलग होने
के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रहता.
लेकिन
हमारे पुरुष प्रधान समाज की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि यहां एक तलाकशुदा
पुरुष को तो किसी खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, बिना किसी समस्या
के वह दूसरा विवाह कर लेता है लेकिन वहीं अपने पति से तलाक लेने वाली महिला
को सम्मान नहीं दिया जाता. बिना किसी सोच-विचार के यह मान लिया जाता है कि
संबंध विच्छेद होने के पीछे जरूर महिला का ही हाथ होगा.
कुछ
नारीवादी जन और महिलाओं से सांत्वना रखने वाले लोग भले ही उन्हें न्याय
दिलवाने के पक्ष में हों लेकिन अब स्वीडन के वैज्ञानिकों ने उनकी सारी
मेहनत पर पानी फेरने का काम किया है. क्योंकि उन्होंने इस मान्यता को
व्यवहारिक रूप प्रदान कर दिया है कि तलाक की जिम्मेदार केवल महिलाएं ही
होती हैं.
स्वीडन
स्थित कार्नोलिन्स्का इन्स्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं ने यह स्थापित किया
है कि तलाक की वजह एक मादा जीन होता है. वैवाहिक जीवन कितना सफल और
स्थायित्व लिए होगा यह केवल महिला के शरीर में छिपा जीन ही निर्धारित करता
है. जीन यह भी बता सकता है कि कोई महिला अपने दांपत्य जीवन को बचाने के लिए
संघर्ष कर सकती है या नहीं.
डेली
मेल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जिन महिलाओं के सामान्य जीन में
भिन्नता होती है वह दूसरे व्यक्ति के साथ आसानी से नहीं जुड़ पातीं. अगर
ऐसी महिला विवाह कर भी ले, तो उसके दांपत्य जीवन के सामान्य होने की
संभावना केवल 50 फीसदी ही होती है. ऐसी महिलाओं की अपने पति के साथ ज्यादा
नहीं बनती.
अनुसंधानकर्ताओं
का कहना है कि यह जीन महिलाओं की ऑक्सीटोसिन हार्मोन के लिए संसाधन
प्रक्रिया को प्रभावित करता है जो प्यार और मातृत्व संबंधी लगाव के अहसास
को बढ़ाता है.
महिलाओं
में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का उत्पादन बच्चे के जन्म के समय होता है, लेकिन
यदि इस हार्मोन का उत्पादन पर्याप्त तरीके से नहीं होगा तो शायद वह महिला
अपने पति, मित्रों और तो और संतान के साथ भी सामान्य जुड़ाव नहीं रख पाती.
इस
अध्ययन पर गौर करेंगे तो यह उस स्थापना को झुठलाता प्रतीत होता है जिसके
अनुसार महिलाएं स्वभाव से भावुक और सहनशील होती हैं. इसके अलावा इस शोध ने
उनके संबंध बनाए रखने और समझौते करने की आदत को भी नकार दिया है. विदेशी
पृष्ठभूमि में, जहां संबंधों का टूटना बनना लगा ही रहता है, वहां शायद
विवाह जैसे संबंध भी कुछ खास महत्व नहीं रखते, ऐसे में उनके टूटने में
किसकी कितनी भूमिका रही यह बात शायद कोई मायने नहीं रखती. लेकिक भारतीय
हालात पूरी तरह भिन्न हैं. यहां संबंध जुड़ना जितना महत्व रखता है, उससे
कहीं ज्यादा दुख संबंध विच्छेद का होता है. लेकिन इस शोध ने पुरुष प्रधान
समाज की परंपराओं को बहुत अच्छी तरह निभाया है. वैसे भी यहां हर गलती के
लिए महिलाओं को ही दोषी समझा जाता है.
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