जाति, क्षेत्र, भाषा इत्यादि, जब तक सामाजिक व्यवस्था का अंग था तब तक सब ठीक था. परन्तु अब यह राजनीतिक व्यवस्था का अंग होता जा रहा है तो भाई , यह उठक-बैठक क्यों? राजनीति न ही कोई आकाश से उतरी हुई कोई व्यवस्था है और न ही राजनेता आकाश से उतरे कोई राजदूत. यह राजनीति भी अपनी है और राजनेता भी हममे से कोई एक तो फिर यह दोषारोपण क्यों? मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि जब हम धतूरे का पेड़ लगा रहें है तो गुलाब के फूल की उम्मीद क्यों? यदि हम सचमुच भारतीय राजनीति को लेकर गंभीर है तो हमें अपनी यह गन्दी मानसिकता को बदलना होगा. मुझे किसी पर कीचड़ उछालने की आदत नहीं. परन्तु एक बात आप लीगों से जरुर कहना चाहूँगा, “एक माली को फूलों और पत्तों को कोसने से बेहतर होगा कि जड़ों को सहीं ढंग से सींचना सीख ले.” गन्दी राजनीति का अलाप लगाना बंद करियें तथा आँख, कान और मुंह के साथ-साथ अपनी कलम को भी भी बंद करिए. चैन से चादर तानकर अपने घरों में सोइयें और हमें भी सोने दीजिये. वैसे मैं एक लम्बी नींद लेने जा रहा हूँ और यह मेरी नींद तब टूटेगी जब मेरे दोस्त प्रवीन की इस मंच पर वापसी होगी. सोते-सोते एक गाना आप लोगों को सुझाता हूँ उसे तबतक सुनते रहिये जब तक की हम दो दोस्तों की वापसी नहीं हो जाती……….मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में है; कि तू कहीं भी रहें , मेरी निगाह में है………
जिंदगी को बदलने में वक्त नहीं लगता पर वक्त को बदलने में जिंदगी लग जाती है- अरविन्द कु पाण्डेय
मंगलवार, 13 मार्च 2012
गन्दी, राजनीति या हम?
जाति, क्षेत्र, भाषा इत्यादि, जब तक सामाजिक व्यवस्था का अंग था तब तक सब ठीक था. परन्तु अब यह राजनीतिक व्यवस्था का अंग होता जा रहा है तो भाई , यह उठक-बैठक क्यों? राजनीति न ही कोई आकाश से उतरी हुई कोई व्यवस्था है और न ही राजनेता आकाश से उतरे कोई राजदूत. यह राजनीति भी अपनी है और राजनेता भी हममे से कोई एक तो फिर यह दोषारोपण क्यों? मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि जब हम धतूरे का पेड़ लगा रहें है तो गुलाब के फूल की उम्मीद क्यों? यदि हम सचमुच भारतीय राजनीति को लेकर गंभीर है तो हमें अपनी यह गन्दी मानसिकता को बदलना होगा. मुझे किसी पर कीचड़ उछालने की आदत नहीं. परन्तु एक बात आप लीगों से जरुर कहना चाहूँगा, “एक माली को फूलों और पत्तों को कोसने से बेहतर होगा कि जड़ों को सहीं ढंग से सींचना सीख ले.” गन्दी राजनीति का अलाप लगाना बंद करियें तथा आँख, कान और मुंह के साथ-साथ अपनी कलम को भी भी बंद करिए. चैन से चादर तानकर अपने घरों में सोइयें और हमें भी सोने दीजिये. वैसे मैं एक लम्बी नींद लेने जा रहा हूँ और यह मेरी नींद तब टूटेगी जब मेरे दोस्त प्रवीन की इस मंच पर वापसी होगी. सोते-सोते एक गाना आप लोगों को सुझाता हूँ उसे तबतक सुनते रहिये जब तक की हम दो दोस्तों की वापसी नहीं हो जाती……….मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में है; कि तू कहीं भी रहें , मेरी निगाह में है………
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