मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी द...ूँ,
देश तुझको देखकर यह बोध पाया,
और मेरे बोध की कोई वजह है,
स्वर्ग केवल देवताओं का नहीं है,
दानवों की भी यहाँ अपनी जगह है,
स्वप्न अर्पित प्रश्न अर्पित आयु का क्षण क्षण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।
रंग इतने रूप इतने यह विविधता,
यह असंभव एक या दो तूलियों से,
लग रहा है देश ने तुझको पुकारा,
मन बरौनी और बीसों उँगलियों से,
मान अर्पित गान अर्पित रक्त का कण कण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।
सुत कितने पैदा किए जो तृण भी नहीं थे,
और वे भी जो पहाड़ों से बड़े थे,
किंतु तेरे मान का जब वक्त आया,
पर्वतों के साथ तिनके भी लड़े थे,
ये सुमन लो, ये चमन लो, नीड़ का तृण तृण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ॥
जय हिन्द, जय भारत !!
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