जलवायु :-
बंद
गोभी की अच्छी वृद्धि के लिए ठंडी आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है इसमें
पाले और अधिक् तापमान को सहन करने की विशेष क्षमता होती है बंद गोभी के
बीज का अंकुरण २७.००-२९.७७ डिग्री सेल्सियस तापमान पर अच्छा होता है जलवायु
की उपयुक्तता के कारण इसकी दो फसलें ली जाती है पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक
ठण्ड पड़ने के कारण इसकी बसंत और ग्रीष्म कालीन फसलें ली जाती है इस किस्म
में एक विशेष गुण पाया जाता है यदि फसल खेत में उगी हो तो थोडा पाला पड़
जाए तो उसका स्वाद बहुत अच्छा होता है|
भूमि :-
इसकी
खेती बिभिन्न प्रकार की भूमियों में की जा सकती है किन्तु अगेती फसल लेने
के लिए रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है जबकि पछेती और अधिक उपज लेने के
लिए भारी भूमि जैसे मृतिका सिल्ट तथा दोमट भूमि उपयुक्त रहती है जिस भूमि
का पी.एच. मान ५.५-६.५ हो वह भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है अधिक
अम्लीय भूमि इसकी सफल खेती में बाधक बन गई है एक जुताई मिटटी पलटने वाले
हल से या ट्रेक्टर से करें २-३ जुताइयाँ देशी हल से करके पाटा लगाएं |
प्रजातियाँ :-
उन्नत किस्मे :-
कोणीय शीर्ष टाइप :-
जर्सी बैक फिल्ड - यह एक अगेती किस्म है |
सटन्स अर्लीएस्ट - यह भी एक अगेती किस्म है |
पोचार्ज ट्रंप - यह एक मध्यकालीन किस्म है |
गोल शिर्षाकर या गेंदनुमा टाइप :-
कोपन हेगन मार्केट , गैमोथ रॉक रेड , कैलिमपौंग इंग्लिश बाल , एक्सप्रेस
गोल्डन एकर :-
इस
किस्म का पौधा छोटा , सघन और कुछ पत्तियां बाहर की ओर निकली होती है और
उन पर धारियां स्पष्ट दिखाई देती है रोपाई के ६०-६५ दिन बाद फुल कटाई के
लिए तैयार हो जाते है इसका बंदा ठोस , गोल व स्वादिष्ट होता है इसकी भीतरी
पत्तियां सफ़ेद रंग की होती है बन्दे का वजन ७५० ग्राम से १ किलो ग्राम तक
का होता है इसकी उपज प्रति हे. २५०-३०० क्विंटल तक हो जाती है |
प्राइड आफ इंडिया :-
यह
एक उन्नत किस्म है इसका बंदा गोल व मध्यम आकार का होता है यह एक अगेती व
अधिक उपज देने वाली किस्म है यह प्रति हे. २०० क्विंटल तक उपज दे देती है |
ढोलाकार शीर्ष टाइप :-
डेनिश बाल हैड :-
यह एक पछेती किस्म है |
कैलिमपौंग इक्लिप्स ढोलकार शीर्ष :-
यह पश्चिम बंगाल की उन्नत किस्म है जिसे बुवाई के लिए जारी कर दिया गया है |
अर्ली ड्रम हैड :-
यह
एक छोटे तने वाली अगेती किस्म है इस किस्म का बंदा कुछ चपटा , ठोस और बड़े
आकार का होता है और उसका रंग हल्का हरा होता है इस किस्म के बीज की
पौधशाला में बुवाई अक्टुम्बर से नवम्बर तक करते है रोपाई के लगभग ११० दिन
बाद फसल तैयार हो जाती है यह प्रति हे. २०० क्विंटल तक उपज दे देती है |
लेट ड्रम हैड :-
यह
एक पछेती किस्म है इस किस्म का बंदा कुछ चपटा ठोस , और बड़े आकार का होता
है और उसका रंग हल्का हरा होता है इस किस्म के बीज की पौधशाला में बुवाई
अक्टूम्बर से नवम्बर तक करते है पौधे छोटे तने वाले होते है इसकी फसल रोपाई
के ११० दिन बाद काटने योग्य हो जाती है इसकी उपज प्रति हे. २५० क्विंटल
है
पूसा ड्रम हैड :-
यह
एक पछेती किस्म है पौधे छोटे लेकिन फैले हुए होते है बाहरी पत्तियों की
संख्या २०-२५ तक होती है जिनका रंग हल्का हरा होता है और धारियां स्पष्ट
दिखाई देती है फसल रोपाई के ११०-१२० दिन बाद तैयार हो जाती है बन्दे ठोस और
चपटे होते है जिनकी भीतरी पत्तियां सफ़ेद होती है इनका भार २-३ किलो ग्राम
तक का होता है यह किस्म बंदगोभी की कुछ बिमारियों की भी प्रति रोधी है यह
प्रति हे. २५०-३०० क्विंटल तक उपज दे देती है |
नवीनतम किस्मे :-
पछेती के . १ :-
अर्ली
ड्रम हैड , एक्स्ट्रा अर्ली एक्स्प्रेस , अर्ली सोलिड ड्रम हैड , लार्ड
माउनटेन हैड कैबेज लेट , सेलेक्टेड डब्ल्यू , डायमंड , सेलेक्शन ८ , पूसा
मुक्त , क्विइसिस्ट्स |
बीज बुवाई :-
बोने का समय :-
बंद गोभी के बीज की पौधशाला में बुवाई दो बातों पर निर्भर करती है -
१. बुवाई मैदानी या पहाड़ी क्षेत्रों में की जा रही है |
२. इसकी अगेती या पछेती फसल उगानी है |
बुवाई का समय इस प्रकार है -
मैदानी क्षेत्रों में :-
अगेती फसल के लिए - अगस्त- सितम्बर
पछेती फसल के लिए - सितम्बर अक्टूम्बर
पहाड़ी क्षेत्र के लिए :-
सब्जी के लिए मार्च- जून
बीज उत्पादन के लिए जुलाई - अगस्त |
बीज की मात्रा :-
बंद
गोभी की बीज की मात्रा उसके बुवाई के समय पर निर्भर करती है अगेती और
पछेती जातियों केलिए ५०० ग्राम और ३७५ ग्राम बीज एक हे. के लिए पर्याप्त है
|
रोपण :-
जब
पौधे ५-६ सप्ताह के हो जाएँ तब उनकी रोपाई निम्नानुसार करें अगेती किस्म
के लिए पंक्ति से पंक्ति तथा पौध से पौध की दुरी ६० से. मी. तथा ३० से. मी.
रखते है तथा पछेती फसल के लिए पौध से पौध तथा पंक्ति से पंक्ति की दुरी ६०
से. मी. और ४५ से. मी. रखते है पूसा ड्रम हैड के लिए पौध से पौध तथा
पंक्ति से पंक्ति की दुरी ७५से. मी. तथा ६० से. मी. रखते है |
आर्गनिक खाद :-
बंद
गोभी को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है इसकी अधिक
पैदावार के लिए भूमि का काफी उपजाऊ होना अनिवार्य है इसके लिए प्रति हे.
भूमि में ३५-४० क्विंटल गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद और आर्गनिक खाद २
बैग भू-पावर वजन ५० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो फर्टीसिटी कम्पोस्ट वजन ४०
किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो नीम वजन २० किलो ग्राम , २ बैग सुपर गोल्ड
कैल्सी फर्ट वजन १० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो भू-पावर वजन १० किलो ग्राम
और ५० किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर खेत में बुवाई
से पूर्व समान मात्रा में बिखेर लें और फिर खेत की अच्छी तरह से जुताई करें
उसके बाद बुवाई करें |
और
जब फसल २५-३० दिन की हो जाए तब उसमे २ बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम और
माइक्रो झाइम ५०० मी. ली. को ४०० लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर फसल में
तर-बतर कर छिडकाव करें |
सिचाई :-
बंद
गोभी की फसल को लगातार नमी की आवश्यकता होती है इसलिए इसकी सिचाई करना
आवश्यक है रोपाई के तुरंत बाद सिचाई करे इसके बाद ८-१० दिन के अंतर से
सिचाई करते रहे इस बात का ध्यान रखे की फसल जब तैयार हो जाए तब अधिक गहरी
सिचाई न करें अन्यथा फुल फटने का भय रहता है
खरपतवार नियंत्रण :-
बंद
गोभी के साथ उगे खरपतवारों को नष्ट करने के लिए दो सिचाइयों के मध्य हलकी
निराई-गुड़ाई करें गहरी निराई-गुड़ाई करने से पौधों की जड़ कटने का भय रहता
है ५-६ सप्ताह बाद मिटटी चढ़ा देनी चाहिए |
कीट नियंत्रण :-
कैबेज मैगट :-
यह जड़ों पर आक्रमण करता है जिसके कारण पौधे सुख जाते है |
रोकथाम :-
इसकी रोकथाम के लिए खेत में नीम की खाद का उपयोग करे |
चैंपा :-
यह कीट पत्तियों और पौधों के अन्य कोमल भागों का रस चूसता है जिसके कारण पत्तियां पिली पड़ जाती है |
रोकथाम :-
इसकी
रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर
अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मी. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के द्वारा
फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
ग्रीन कैबेज और वर्म कैबेज लूपर :-
ये दोनों पत्तियों को खाते है जिसके कारण पत्तियों की आकृति बिगड़ जाती है |
रोकथाम :-
इसकी
रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर
अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मी. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के द्वारा
फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
डायमंड बैकमोथ :-
यह
मोथ भूरे या कत्थई रंग के होते है जो १ से. मी. लम्बे होते है इसके अंडे
०.५-०.८ मी.मी. व्यास के होते है इसकी सुंडी एक से.मी. लम्बी होती है जो
पौधों की पत्तियों के किनारे को खाती है |
रोकथाम :-
इसकी
रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर
अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मी. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के द्वारा
फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
रोग नियंत्रण :-
ब्लैक लैग :-
यह
रोग फोमा लिगमा नामक फफूंदी के कारण होता है यह रोग नमी वाले क्षेत्रों
में लगता है यह बीज जनित रोग है इसमें पूरा जड़ तंत्र सड़ जाता है जिसके
परिणाम स्वरुप पूरा पौधा भूमि पर गिर जाता है |
रोकथाम :-
इसकी रोकथाम के लिए बीज बोने से पूर्व गोमूत्र या कैरोसिन या नीम के तेल से उपचारित कर लें |
मृदुरोमिल आसिता :-
यह रोग फफूंदी के कारण होता है इसका प्रकोप छोटे पौधों पर होता है पूरा पौधा रंगहीन हो जाता है |
रोकथाम :-
इसकी
रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर
अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मी. ली. मिश्रण को प्रति पम्प के द्वारा
फसल में तर-बतर कर छिडकाव करें |
कटाई :-
जब
बंद गोभी के शीर्ष पुरे आकार के हो जाएँ और ठोस हों तब इसकी कटाई करनी
चाहिए मैदानी क्षेत्रों में इसकी कटाई मध्य दिसंबर से अप्रैल तक की जाती है
जबकि पहाड़ी क्षेत्रोंमे बोने के अनुसार इसकी कटाई दो बार तक की जाती है
पहली सिंतबर से दिसंबर, दूसरी मार्च से जून तक |
उपज :-
बंद
गोभी की उपज उसकी जाती भूमि और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है अगेती और
पछेती फसल से २००-२५० क्विंटल और ३००-३२५ क्विंटल तक उपज मिल जाती है |
पौध शाला :-
इसका
बीज बारीक़ होता है अत: पहले उन्हें भली-भांति तैयार की गई पौधशाला में
बोया जाता है ताकि थोड़े समय में उसकी पौध तैयार हो सके पौधशाला में एक
मोटो चौड़ी और ३ मीटर लम्बी क्यारियां बनाएं और २ क्यारियों के मध्य ३० से.
मी. चौड़ी नाली बनाएं नालियां बनाने से पूर्व उनमे पर्याप्त मात्रा गोबर
की खाद या कम्पोस्ट खाद डालें फिर उसकी खुदाई या जुताई करें फुल गोभी की
पौध को आद्र विगलन से बचाने के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र को माइक्रो
झाइम क़ साथ मिलाकर उपयोग करें इसके बाद क्यारियों को बोरियों से ढक दें
बीज में राख मिलाकर बिखेर दें फिर उसे मिटटी से मिला दें बोने के बाद बीज
को खाद और मिटटी के मिश्रण से ढक दें फिर हजारे से पानी दें जब पौधे निकल
आएं तब क्यारियों के मध्य बनी नालियों से सिचाई करें तेज धुप और अधिक वर्षा
से पौधे को बचाने के लिए उस पर छपर का प्रबंध का प्रबंध करें ४-५ सप्ताह
बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें