मंगलवार, 13 मार्च 2012

मानवीय हादसे, सियासी संवेदनाएं



कोलकाता के निजी अस्पताल आमरी में पिछले दिनों लगी आग की प्रकृति भी वैसी ही थी, जैसी पूर्व की घटनाओं में भी दिखती रही है। इस हादसे में तकरीबन 90 लोग मारे गए हैं। इसलिए इस मानवीय हादसे पर दिख रही सरकारी और सियासी संवेदनाएं भी पूर्ववत ही हैं। इस घटना को भले यह मानकर संतोष कर लिया जाए कि होनी को कोई टाल नहीं सकता, लेकिन इस होनी से प्रभावितों की प्रकृति जरूर झकझोर रही है। दिल्ली के उपहार सिनेमा कांड जैसी। उस घटना में लोग खुशी-खुशी सिनेमा देखकर मनोरंजन करने गए थे, लेकिन वहां से निकली उनकी लाशें। कोलकाता की घटना में भी मामूली या गंभीर रोगों से परेशान लोग अस्पताल में स्वस्थ होकर खुशी-खुशी लौटना चाह रहे थे, लेकिन उनकी भी लाशें ही निकलीं।

बहरहाल, अन्य हादसों की तरह इस घटना पर भी दिख रही सियासी संवेदनाएं गले नहीं उतर रही हैं। सवाल है कि क्या इन संवेदनाओं से इस क्षति की पूर्ति हो जाएगी? जाहिर है, हरगिज नहीं। फिर क्यों इस तरह के ढकोसले किए जाते हैं और हादसों को रोकने के समुचित उपाय नहीं किए जाते? पश्चिम बंगाल की सरकार ने आमरी अग्नि कांड की न्यायिक जांच की घोषणा कर दी है। विभिन्न विभागों के एक्सपर्ट मामले की जांच करेंगे और बताएंगे कि यह हादसा किसकी गलती से हुआ। फिर सरकार उसे कड़ी से कड़ी सजा देगी। यदि देश के विभिन्न राज्यों में हुई बड़ी घटनाओं की जांच और दोषी लोगों के विरुद्ध हुई कथित कार्रवाई पर ईमानदारी से पड़ताल करें तो परिणाम वीभत्स ही होगा। वीभत्स इसलिए कि जिनकी वजह से विभिन्न घटनाओं में हजारों लोग मारे गए, वे अपने प्रभाव और पैसे के बल पर खुलेआम या तो मौज-मस्ती कर रहे हैं या फिर सत्ता के गलियारों में किसी बड़े पद को सुशोभित कर रहे हैं।

खैर, मूल विषय यह है कि जन विद्रोह रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई के तौर पर स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने प्रथम दृष्टया दोषी मिले अस्पताल के अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। निश्चित रूप से कानूनी कार्रवाई के बावजूद गिरफ्तार लोगों के लिए कानून में कोई न कोई एक्ट सामने आ ही जाएगा, जो उन्हें ससम्मान बरी कर देने की वकालत करेगा। निश्चित रूप से लोगों को कार्रवाई के परिणाम का डर सता रहा है कि आखिर जांच के बाद दोषी पाए गए लोगों के विरुद्ध क्या कार्रवाई होगी? जानकार बताते हैं कि कोलकाता कांड के कथित सूत्रधारों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत लापरवाही और गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है। कोलकाता के अलीपुर पुलिस कोर्ट में 9 दिसंबर को एएमआरआइ अस्पताल के छह अधिकारी पेश हुए। सातवें अधिकारी खराब स्वास्थ्य के आधार पर अदालत में पेश नहीं हुए। हादसे के उपरांत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अस्पताल पहुंचीं। ममता बनर्जी ने कहा है कि यह अग्निकांड इस तरह का अपराध है, जो क्षमा करने योग्य नहीं है। बहरहाल, अस्पताल का लाइसेंस रद कर दिया गया है। घटना के बाद से सरकार ने कोलकाता के सभी अस्पतालों, नर्सिग होम और स्कूलों में आग से निपटने के उपायों की समीक्षा करने का फैसला किया है।

राज्य सरकार ने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। साथ ही समिति को जल्द इस बारे में रिपोर्ट देने को कहा गया है। हादसे के शिकार लोगों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में अग्निशमन के मूलभूत उपाय नहीं थे। मरने वालों में ज्यादातर मरीज थे, जो अस्पताल में ऊपर की मंजिलों में फंस गए थे और अधिकतर मरीजों का आग की लपटों और धुएं में दम घुट गया। बताते हैं कि आग की शुरुआत अस्पताल के बेसमेंट से हुई, जो पूरी तरह अवैध है। मरीज वैसे ही दुर्बल थे। ऐसे में जब धुंआ उनके तल पर पहुंचा तो उनके दम घुटने लगे और वे मारे गए। मौके पर मौजूद एक डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल के गलियारों में अचानक अमोनिया गैस का रिसाव शुरू हुआ, जिसके बाद अफरा-तफरी मच गई। कई लोगों की मौत दम घुटने से हुई है और कई झुलसने से मरे। अस्पताल में दाखिल होने के लिए अग्निशमन कर्मियों को खिड़की का शीशा तोड़ना पड़ा, तब जाकर वे मरीजों को बाहर निकाल सके। अस्पताल से निकाले गए कुछ मरीजों को पास के अस्पतालों में इलाज के लिए दाखिल कराया गया है। आमरी अस्पताल में आग लगने की यह दूसरी घटना है। इससे पहले वर्ष 2008 में भी इस अस्पताल में आग लगने की एक घटना हुई थी, लेकिन फिर भी कोई एहतियात नहीं बरती गई।

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