------------------------------ --
न जाने क्यूं -----
बार बार ये
प्रश्न गूंजता है मन में ----
स्त्री का अपना घर कौन सा है ???
...
मायका या ससुराल ????
सोचो आज अगर पिता से
लड़की अपना घर मांग
ले तो ?
उसका मायका छूट जायेगा न
खून के रिश्ते अगर बेरहम नहीं
होंगे ----
फिर भी खटास तो आ ही जायेगी ----
किसी स्त्री का अपना
घर कहाँ होता है ----
पिता का घर ----पति का घर ---बेटे का घर --
परजीवी हुई न -----और क्या नाम दूँ ---
हँसी आती है कभी कभी यह सोच कर
स्त्री की न कोई जाति है न धर्म
वो सब पुरुष का दिया -------------
कहीं देवी बना दिया कहीं दासी
कहीं कुलीन परिवार के ऐश्वर्य में
मिस्र की ममी की भांति सज्जित हो
उनके गुण दोष छुपा कर घुट घुट कर
मरती है
तो कोई दासी बन कर खटती है -----
आध्यात्म या आत्महत्या
-------
दोनों ही एक सहज साधन है
इन से मुक्ति का और कोई रास्ता
नहीं
अगर ये रास्ता नहीं अपनाया फिर --------
तो यही से शुरू होता
है उसका संघर्ष --------
सच ही तो कहा मैने ----------------------
स्त्री परिवार की इज्जत कहलाती है
पर परिवार पुरुष का ही कहलाता है
कर्तव्य तो है उसके पर अधिकार नहीं
बहुत से ऐसे पति पत्नी भी होते है
प्रेम नहीं है आपस में पर -----
रिश्ते निभाने है ----------
पर बिना प्रेम के रिश्ते क्या होते है
मुझे समझ में नहीं आता
इनको क्या कहते है ----------------
कोई बता सकता है क्या
??--------
मुझे तो लगता है मन का सब खेल है
मन मिला तो
मेला -----
वरना सब से भला अकेला ----
अगर प्रेम भी नहीं तो
क्या रह गया फिर ----
माना तुम आसमान हो ------------------
तो हम
भी जमीन है --------------
दोनों ही एक दूसरे के बगैर अधूरे ---------
फिर तुम्हारा अहम क्यों आड़े आता है ------
अगर सीमा रेखायें स्वार्थ
और अधिकार के लिये खींची हो -------
तो उनके पार जाना पाप नहीं -
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न जाने क्यूं -----
बार बार ये प्रश्न गूंजता है मन में ----
स्त्री का अपना घर कौन सा है ???
... मायका या ससुराल ????
सोचो आज अगर पिता से
लड़की अपना घर मांग ले तो ?
उसका मायका छूट जायेगा न
खून के रिश्ते अगर बेरहम नहीं होंगे ----
फिर भी खटास तो आ ही जायेगी ----
किसी स्त्री का अपना घर कहाँ होता है ----
पिता का घर ----पति का घर ---बेटे का घर --
परजीवी हुई न -----और क्या नाम दूँ ---
हँसी आती है कभी कभी यह सोच कर
स्त्री की न कोई जाति है न धर्म
वो सब पुरुष का दिया -------------
कहीं देवी बना दिया कहीं दासी
कहीं कुलीन परिवार के ऐश्वर्य में
मिस्र की ममी की भांति सज्जित हो
उनके गुण दोष छुपा कर घुट घुट कर मरती है
तो कोई दासी बन कर खटती है -----
आध्यात्म या आत्महत्या -------
दोनों ही एक सहज साधन है
इन से मुक्ति का और कोई रास्ता नहीं
अगर ये रास्ता नहीं अपनाया फिर --------
तो यही से शुरू होता है उसका संघर्ष --------
सच ही तो कहा मैने ----------------------
स्त्री परिवार की इज्जत कहलाती है
पर परिवार पुरुष का ही कहलाता है
कर्तव्य तो है उसके पर अधिकार नहीं
बहुत से ऐसे पति पत्नी भी होते है
प्रेम नहीं है आपस में पर -----
रिश्ते निभाने है ----------
पर बिना प्रेम के रिश्ते क्या होते है
मुझे समझ में नहीं आता
इनको क्या कहते है ----------------
कोई बता सकता है क्या ??--------
मुझे तो लगता है मन का सब खेल है
मन मिला तो मेला -----
वरना सब से भला अकेला ----
अगर प्रेम भी नहीं तो क्या रह गया फिर ----
माना तुम आसमान हो ------------------
तो हम भी जमीन है --------------
दोनों ही एक दूसरे के बगैर अधूरे ---------
फिर तुम्हारा अहम क्यों आड़े आता है ------
अगर सीमा रेखायें स्वार्थ और अधिकार के लिये खींची हो -------
तो उनके पार जाना पाप नहीं -