सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

खाप पंचायतों की तुगलकी दुनिया

हरियाणा, यूपी और मध्यप्रदेश जैसे राज्य आज भारत में अपनी एक खास पहचान के लिए बड़े प्रसिद्ध हैं. यह खासियत उनकी शान में चार चांद नहीं बल्कि उनके पिछड़े होने का सबूत देती प्रतीत होती हैं. उनकी इस तथाकथित शान का नाम है खाप.


खाप पंचायतों का इतिहास भारत में बेहद पुराना है. अपनी नजर में खुद को न्यायालय करार देने वाली इन खाप पंचायतों को जानकार देश की न्यायिक व्यवस्था के लिए बेहद गंभीर खतरा मानते हैं. आइए इन खाप पंचायतों के अस्तित्व के बारे में सिलसिलेवार तरीके से जानें:

Khapक्या होती है खाप
खाप जिसे कई लोग सर्वखाप भी कहते हैं एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के उत्तरी राज्यों में सक्रिय हैं. यूं तो इन खापों को कोई कानूनी मान्यता नहीं मिली है लेकिन कई केसों में देखा गया है कि यह खाप कानून से बढ़कर कार्य करने लगती हैं.

एक गोत्र या जाति के सभी लोग मिलकर एक खाप पंचायत का गठन करते हैं जो पांच या अधिक गांवों की होती है. यह खाप जिस गोत्र या जाति के लोगों से मिलकर बनाई जाती है उसके बारे में सभी निर्णय लेती है.

खाप पंचायतों की मानसिकता
जानकारों का मानना है कि खाप पंचायतों की मानसिकता आज भी एक सदी पीछे चल रही है. महिलाओं के मामले में तो इनकी सोच और भी दकियानूसी साबित होती है. पुरानी रुढ़िवादी परंपरा को आज की युवा पीढ़ी पर थोप कर यह उनके बौद्धिक विकास में अवरोध का काम कर रहे हैं.

इनके द्वारा लिए गए निर्णयों की वजह से अकसर समाज में न्याय व्यवस्था की किरकिरी होती है. प्रेमी युगलों को जान से मार देना, औरतों को नंगा करके घुमाना, किसी को उसकी संपत्ति से बेदखल कर देने जैसे ऐसे कई कांड हैं जो इन खाप पंचायतों के अस्तित्व पर कालिख पोतते हैं. लेकिन इसको मानने वालों के सुर इससे अलग हैं.



खाप पंचायतों का प्रभाव
आज खाप पंचायतों का वर्चस्व बहुत ज्यादा बढ़ा है. जाति और गोत्र के नाम पर जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर इन्होंने जनता के बीच अच्छी पैठ जमा ली है.
कई लोग इनके बढ़ते वर्चस्व का मुख्य कारण जनता में फैली अशिक्षा को भी मानते हैं. कई लोग मानते हैं कि कौम, रीति के नाम पर जनता की वैचारिक स्वाधीनता को शिथिल करना इनका प्रमुख कार्य है, जिसे ये मानव मूल्यों की रक्षा करना कहते हैं.

खाप पंचायतों से नुकसान
भारत में न्यायिक व्यवस्था यूं तो बेहद लाचार है लेकिन इस सूरत में हम किसी भी कीमत पर खाप पंचायतों को जायज नहीं ठहरा सकते हैं. सर्वोच्च अदालत ने भी कई मौकों पर खाप पंचायतों को अवैध करार देते हुए उन्हें सख्ती से बंद करने की बात कही थी.
कानून के सलाहकार खाप पंचायत जैसी संस्थान को बंद करने की सलाह देते हैं. हालांकि कई मौकों पर इन खाप पंचायतों ने अच्छे फैसले भी दिए हैं लेकिन इनके अधिकतर फैसले खासकर महिलाओं के लिए जो यह फैसले सुनाते हैं वह अकसर दकियानूसी फतवे की तरह प्रतीत होते हैं. कोशिश तो यही होनी चाहिए कि खाप पंचायतें केवल समाज हित में काम करें और न्याय निर्णय का कार्य संविधान द्वारा स्थापित न्याय-व्यवस्था पर छोड़ दें.

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