धर्म को यूं ही अफीम की संज्ञा नहीं दी गई है. यही वजह है कि अब धर्मस्थान
भी भक्ति के बाजार का रूप ले चुके हैं. हर क्षेत्र की तरह यहां पर भी
बिचौलियों की पूरी टीम काम कर रही है. जो गरीब लोगों को भगवान का डर दिखाकर
अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. पिछले दिनों अक्षरधाम मंदिर जाना हुआ. मंदिर
की विशालता हो या फिर स्वर्णमंडित प्रतिमा हर तरफ शांति तो थी, लेकिन
भक्ति भाव चाहकर भी मन में नहीं आया. सोचा अरबों-खरबों के इस मंदिर की जगह
कोई अस्पताल बनाया गया होता तो न जाने कितने गरीब लोगों का भला हो जाता.
मंदिर में पानी की बोतल से लेकर मोबाइल, कैमरा कुछ भी ले जाना अलाउ नहीं
है. ऐसा सिक्योरिटी रीजंस के अलावा इसलिए किया गया है ताकि लोगों को पानी
के लिए भी पैसा खर्च करना पड़े. फोटो खींचने के लिए मंदिर के ही कैमरामैन
नियुक्त किए गए हैं. मंदिर के विभिन्न क्षेत्रों में घूमने की जानकारी
लेने के लिए भी आम लोगों को पांच रुपए खर्च करने पड़ते हैं. मंदिर के दूसरे
सेक़्शन में वही लोग घूम सकते हैं जो इसके लिए ढाई सौ से ज्यादा रुपए
खर्च करने की औकात रखते हों. अब बात करते हैं यहां के रेस्टोरेंट की मंदिर
के हर खंबे के पास दान पेटी पर आपको भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ने को
जरूर मिलेगा लेकिन रेस्टोरेंट में चाउमिन-मंचूरियन सब अवेलेबल है. यह खाना
खासा मंहगा होने के साथ ही लो-क्वालिटी भी लगता है. आम आदमी यहां सब से
कम मूल्य में केवल खिचड़ी खा सकता है और उसके लिए भी 45 रुपए खर्च करने
पड़ेंगे. जितने उत्साह से हम यहां गए थे उतनी ही निराशा हाथ लगी. हर जगह
का यही हाल है. अब शनि सिंगणापुर को ही ले लें. यहां पर भगवान शनि के नाम
पर डराने वाले आपको आसानी से मिल जाएंगे. यहां तक कि प्रसाद लेते समय भी
भक्तों को धमकाते हुए कहा जाता है कि 501 रुपए से कम का प्रसाद लोगे तो
अनिष्ट हो जाएगा, एक्सीडेंट हो जाएगा, शनि महाराज रुष्ट हो जाएंगे. यह
तो हद है, ऐसे में एक गरीब भक़्त भले ही कम पैसे का प्रसाद खरीदे, लेकिन
अनिष्ट का डर हमेशा उसके मन में बना रहेगा. श्री वैष्णों देवी मंदिर
दर्शन के लिए जाने पर भी कुछ इसी तरह के कढ़वे अनुभव अक्सर सामने आते रहे
हैं. कुछ महिनों पहले अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम जाना हुआ तो वहां पर भी
यह सब आम दिखा. मंदिर के पुरोहित भी उसी भक्त से आत्मीयता दिखाते हैं जो
ज्यादा चढ़ावा देता है. यही नहीं हर मंदिर में पूजा करने वाले पंडित जी
किसी दूसरे मंदिर के पंडित जी के रिश्तेदार ही होते हैं, ऐसे में वह यह
कहना नहीं भूलते कि फलां मंदिर में जरूर जाना और हर मंदिर में दक्षिणा के
नाम पर होने वाली वसूली आम बात है. धर्मनगरी हरिद्वार तो मात्र कहने को ही
धर्मनगरी रह गई है. पतित पावनी गंगा के किनारे आपको पापियों की फौज आसानी
से देखने को मिल जाएगी. बिना पैसा खर्च किए तो आप खुद के कपड़े भी गंगा
किनारे नहीं रख सकते. यहां पर भी लूट के अलग-अलग तरीके हैं. पहले तो प्यार
से पुचकार कर तख्ते पर बैठी कोई महिला या पुरुष आपको कहेंगे कि अपना
सामान यहां पर रख लो. जब आप स्नान कर अपना सामान लेने आएंगे तो सामान
संभाल कर रखने की फीस मांग ली जाएगी. आपने थोड़ा भी ऊंची आवाज में बात की
तो इनके दूसरे साथी भी आपकी इज्ज्त उतारने के लिए आ पहुंचेंगे. यही नहीं
मुख्य मंदिर में पहुंचने से पहले आपको कई छोटे मंदिरों पर मत्था टेकने के
साथ ही अपनी जेब भी ढीली करनी पड़ेगी. यहां पर कई जगह अपनी दुकानें सजाकर
बैठे हुए पंडित जी आपसे पूछेंगे ‘विशेष पूजा कराएंगे क्या? पंडित जी
भक्तों को कुछ इस तरह डराते हैं कि अनमने भाव से ही सही भक्त परमिशन दे
देता है. पंडित जी मन ही मन खुश होते हैं कि चलो आज बकरा फंसा. पंडित जी
कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हैं. यह सब बमुश्किल पांच मिनट तक चलता है,
क्योंकि लाइन में दूसरे बकरे भी खड़े होते हैं. तीन-चार मिनट होते ही
पंडित जी पूजा की पूरी कीमत वसूल लेते हैं. यही नहीं इन जगहों पर भक्तों
के साथ होने वाली बदसलूकी भी आम है. एक गरीब आदमी के लिए तो भगवान के दर्शन
भी सुलभ नहीं रह गए हैं. लालच के अंधों ने भगवान के दर को भी पैसे कमाने
का धंधा बना लिया है. जरा सोचिए जो गरीब लोग किसी तरह पाई-पाई जोड़कर इन
स्थानों तक पहुंचते हैं, उन्हें इस तरह के व्यवहार से कितनी ठेस पहुंचती
होगी. इस तरह के अनुभव को भले ही लोग कभी शेयर न करें, लेकिन यह सच है कि
हर आदमी कभी न कभी इसे महसूस करता है. सबसे दुखद् यह है कि हम इस लूट-खसोट
का कभी विरोध नहीं करते. असहाय लोगों की मदद की बात आती है तो हम बचने के
लिए कई बहाने खोज लेते हैं, लेकिन धार्मिक स्थानों पर जाकर जेब कटवाने में
हमें कोई दिक्कत नहीं होती.
(लल्लूजी )
(लल्लूजी )
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