
अक्सर ऐसा होता है कि जो चीज आप के पास रहती है उसमें हमारी रूचि उतनी नहीं
रहती या उसे अहमियत नहीं देते . दूरस्थ स्थल अवश्य ही आकृष्ट करेंगे जहा
जाना हमारे लिए अपेक्षाकृत खर्चीला और कठिन होता है. कहावत भी है कि घर की
मुर्गी दाल बराबर. अथिरापल्ली हमारे लिए वैसा ही था. यह हमारे घर से मात्र
४५ किलोमीटर की दूरी पर है,. हमने ही क्या हमारे घरवालों ने भी नहीं देखा.
बस सुन रखा था एक ऐसी जगह है. है तो बस है और वह कहाँ जाएगा. कभी न कभी देख
ही लेंगे. एक छुट्टी के दिन कोच्ची में कार्यरत छोटा भाई संपत आया हुआ
था. खाना वाना खा लेने के बाद उसी ने सुझाव रखा, भैय्या चलो कहीं घूम आते
हैं. हमने पुछा कहाँ? उसने कहा अथिरापल्ली. हमने भी हामी भर दी और निकल
पड़े थे. यह तो वहां जाने के बाद ही पता चला कि हमने अप्सरा सदृश इस जगह को
कभी तवज्जो नहीं दी थी. जाहिर है इसके पीछे कुछ कारण भी रहे. एक तो ३०
किलोमीटर का सड़क मार्ग ख़राब था. हमारे पास स्वयं का कोई वाहन नहीं था और
यही मानसिकता कि पास ही तो है कभी भी देख लेंगे.
शोलयार वन श्रंखला के वर्षा वनों से लगा, घने संरक्षित वनों के बीच जो
विभिन्न प्रजातियों के वन्य जीवन की आश्रय स्थली भी है, एक के बाद एक, दो
जल प्रपात हैं जिन्हें देख कोई भी झूमें बगैर नहीं रह सकता. यकीनन होश
उडाने वाला प्राकृतिक सौन्दर्य. नाम है अथिरापल्ली और वाज्हचाल. केरल के
थ्रिस्सूर शहर से कोच्ची जाने वाले हाईवे पर ३० किलोमीटर चलने पर चालकुडी
और वहां से बांयी और दूसरी सड़क पर ३३ किलोमीटर जाने पर अथिरापल्ली का
जल प्रपात पड़ेगा. यहाँ से ४ किलोमीटर और आगे जायेंगे तो वाज्हचाल नाम का
दूसरा प्रपात भी है जिसे भारत का नयाग्रा भी कहा जाता है.
पहले आप पहुंचते हैं अथिरापल्ली. यहाँ एक सुंदर उद्यान है. सामने ही बांस
के घने झुरमुटों के बीच से आगे बढ़ने पर अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ
प्रवाहित हो रही चालकुडी नदी के दर्शन होते हैं. बांस की टहनियों पर उछल
कूद करते अनेक बन्दर भी आपका स्वागत करते प्रतीत होते हैं. यहाँ लकड़ी से
बने बेंच भी लगे हुए हैं जो आपको वापसी में ललचाएगा क्योंकि अभी तो नीचे
उतरना है. दाहिनी ओर नीचे जाने के लिए आरामदायक पत्थर बिछा मार्ग बना हुआ
है जो कुछ लंबा पड़ता है. अति उत्साही प्रकार के पर्यटक सीधे नीचे भी उतर
सकते हैं, सीढियों के प्रयोग के बिना ही. आधी दूर नीचे जाने पर ही जल
प्रपात के प्रथम दर्शन होने लगते हैं भले ही गिरते पानी की गर्जना कानों
में पहले से ही गूंजती रहती है. फ़िर आप सीधे आमने सामने रहते है इस भव्य
प्रपात के.
जब पानी की बूंदों की बौछार अपने मुह पर पड़ती है उस समय आनंद की कोई सीमा
नहीं रहती. यहाँ भी बेंचें लगी हुई हैं आपके विश्राम करने के लिए. प्रपात
के बहुत करीब जन जोखिम से भरा होगा. पिकनिक मानाने के लिए प्रपात के नीचे
का स्थल आदर्श है.
वापस ऊपर आने के बाद हमें उन बेंचों की याद आएगी ही जो उद्यान में लगे हुए
हैं. यहाँ तनिक विश्राम करने के बाद आगे वाज्हचाल के लिए निकला जा सकता है.
चालकुडी नाम के शहर से यहाँ इस ३० किलोमीटर का मार्ग सुखद है परन्तु
अथिरापल्ली से आगे वाज्हचाल ४ किलोमीटर का मार्ग कच्चा और थोड़ा दुखदायी
है. लेकिन जैसे ही प्रपात के दर्शन होंगे, पूरी थकान काफूर हो जायेगी. यहाँ
भी प्रपात तक जाने की अच्छी व्यवस्था बनाई गई है. यहाँ से आगे का रास्ता
एक वालपराई नामके हिल स्टेशन को जाता है जहाँ चाय की बागान भी हैं.
वापस आप चलाकुडी होते हुए थ्रिस्सूर या कोच्ची जा सकते हैं. चालकुडी के
करीब ही दो विश्व स्तरीय थीम पार्क/वाटर पार्क भी देखे जा सकते हैं
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