केदारनाथ में मन्दाकिनी के किनारे दर्शनार्थी |
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गौरी कुंड से केदारनाथ के पैदल जाने वाले मार्ग में बहती हुयी मन्दाकिनी. |
ये
भी अपने साथ यूस एंड थ्रो वाले कप -प्लेट व पानी और बरफ से बचने वाले
रेनकोट जो बीस तीस रूपये में आसानी से मिल जाते है ,किन्तु एक बार पहनने के
बाद इस लायक नहीं बचते की कोई उन्हें अपने साथ वापस ले जा सके, इसलिए
अधिकतर तीर्थयात्री इन सबको इसी नदी और खाई के हवाले कर आगे बढ़ जाते है.
मिनरल वाटर की कंपनी लगने की बात अखबारों की सुर्खिया बनने लगी तो लोगो को आश्चर्य होने लगा की क्या पानी भी बेचा जायेगा और अगर बेचा गया तो इसे खरीदेगा कौन?आश्चर्य की बात तो थी ही जिस भारत में सैकड़ो नदियाँ बहती हो,जगह -जगह पानी के सोत्र हो वंहा पानी खरीदने की चीज है.
पहाड़ो से गिरता हुआ पानी
इसका स्वाद
किसी बिसलरी से कम नहीं .किन्तु आजकल पर्यटन स्थल में इनके पानी को पीने
की मनाही है.कहते है की कई बार पहाड़ी स्रोतों से निकलने वाला जल विषाक्त
होता है.
समय के साथ
लोगो की सोच बदली उन्हें समझ में आने लगा कि साफ पानी तो बंद बोतलों में ही
मिलता है .बाकी का पानी प्रदूषित हो चुका है . बस इसी सोच ने लगभग २००
कंपनिया बिसलरी पानी की खुलवा दी .भविष्य में भी इनका बाजार दिन -दूनी
,रात -चौगुनी रफ़्तार से बढ़ना है .क्योकि जिस तरह से स्वच्छ पीने का पानी
बंद बोतलों में मिलता है उसी तरह से कल को लोग खाना बनाने से लेकर नहाने तक
के लिए पानी बंद बोतलों में ही खरीदेंगे .तब ये बोतलें उच्च जीवन शैली कि
पहचान ही नहीं वरन आवश्यकता बन जाएगी .
जिस तरह से
नदियों को कल-कारखानों के जहरीले रसायन द्वारा विषाक्त किया जा रहा है आने
वाले दिनों में किसान उस पानी से खेती भी नहीं कर पायेगा. हमारे वैज्ञानिक
अनुसन्धान करके लोगो को चेताना चाहते है , की उनकी लापरवाही और लोभ आने
वाले भविष्य को किस तरह से नष्ट करने वाला है .लेकिन प्रशासन और सत्ता के
कानो पर जू तक नहीं रेंग रही है.सरकार कभी क्लीन गंगा तो कभी क्लीन जमुना
की योजनाये बना कर सरकारी दफ्तरों से अर्थ मुहैया कराती है और सरकारी बाबु
से लेकर जितने इन योजनाओ से जुड़े हुए रहते है सब अपनी जेबे गरम कर स्थिति
की गंभीरता से मुंह मोड़ लेते है .
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वे
ये भी सोचने का प्रयास नहीं करते की आने वाला समय उनके बच्चो के लिए कितना
त्रासदी भरा होगा. जब नदिया ही नहीं बचेगी तो जल कहा से आयेंगा, जल नहीं
तो जीवन नहीं .कैसे जियेगी आने वाली पीढ़ी देश -विदेश में पानी के ऊपर
रिसर्च करने वालो ने घोषणा कर दी है की 2035 तक भारत में गंगा .सिन्धु
,ब्रह्मपुत्र व् चीन में सबसे बड़ी नदियाँ यांग्जी,मेकोंग,साल्विन और पीली
नदी पृथ्वी से गायब हो जाएँगी .वैसे भी चीन इस समय पानी की सबसे अधिक
किल्लत झेल रहा है .यांग्जी जो दुनिया की तीसरी बड़ी नदी है उसमे कैंसर के
जीवाणु पाए जा रहे है .पीली नदी इतनी अधिक प्रदूषित हो चुकी है
कीअनुसंधकर्ताओ के अनुसार वो आने वाले पाँच वर्षो में ही ख़त्म होने वाली
है .चीन की नजर अब भारत की नदियों पर है ,उसने ब्रह्मपुत्र के पानी को
रोकने के लिए उस पर बांध बनाना आरंभ कर दिया है . इधर पाकिस्तान में पानी
की भयंकर समस्या है .वो संसार में शीर्ष दस (पानी की समस्या से ग्रस्त )
में से सातवे स्थान पर है. पानी को लेकर उसका विवाद भारत से बराबर चल ही
रहा है. इस विवाद का मुख्य कारण झेलम नदी पर बांध बनाना. ये बांध आजाद
कश्मीर की मांग से भी ज्यादा गंभीर मुद्दा है.ऐसे में भारत को चीन और
पाकिस्तान के साथ युद्ध वाली स्थिति का सामना करना पड़ सकता है .बंगलादेश
,गंगा के ऊपर बनाये गए फरक्का बांध से नाराज है ही वो भी भारत के खिलाफ
खड़ा होगा .ऐसी स्थिति आने पर भारत बहुत ही नाजुक मोड़ पर खड़ा होगा.एक
तरफ पानी के लिए युद्ध दूसरी तरफ पानी के आभाव में भारतीयों के स्वास्थ्य
का क्षरण कैसे झेलेगा भारत.इसलिए बेहतर यही है की हर भारतीय समय की
गंभीरता को समझते हुए नदियों को प्रदूषित होने से बचाए .नदियाँ बचेगी तो
कृषि बचेगी ,कृषि बचेगी तो पेट भरेगा ,जब पेट भरेगा तब देश के लिए सोचेंगे
.स्वस्थ शरीर के साथ ही दुश्मन के छक्के छुड़ाने की चेष्टा करेंगे अन्यथा
1962 के युद्ध में हमने चीन के आगे घुटने टेके थे .इस बार चीन, पाकिस्तान
,बंगलादेश तीनो एक साथ होंगे. क्या हम इतिहास दोहराना चाहेंगे, नहीं न ,तो
फिर क्यों न नदियों को प्रदुषण रहित बनाने के बारे में गंभीरता से सोचे और
अविरल , निर्मल,धवल ,कल-कल बहती हुयी नदियों के स्वरूप को वापस लाये.
बोतलों में बिकते हुए पानी को खरीदने की बढती हुयी संस्कृति पर अंकुश
लगाये.
केदारनाथ में बहती हुयी मन्दाकिनी , इसकी सतह के ऊपर बने हुए होटल और धर्मशाला इनसे निकलने वाली गंदगी इसी नदी के सुपुर्द की जाती है. |
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