घूम फिर कर ठीकरा फिर फूटा आम आदमी के सिर.......
आज बाबा जी ने जब आईना दिखाने की कोशिश की तो सब सांसद एक हो गए और बात आई कि यदि समाज अच्छा होगा तो ही संसद अच्छी बन पाएगी |
एक बात और उठ कर आई कि जनता चुन कर भेजती है इन सांसदों को और यदि वे दागी हैं तो गलती किस की है - जनता की.
हम सब जानते हैं कि मर्यादित भाषा का प्रयोग होना ही चाहिए-
बाबा जी ने अपने दिल की भड़ास कुछ तल्ख़
शब्दों में निकाल दी......साल भर का घाव था ....साल भर मलहम न मिला तो तड़प
के आह निकल ही गयी.......
अब एक सज्जन कहते हैं कि जब जहाज डूब रहा
होता है तो कप्तान को सब से आखिर में निकलना चाहिए.......और जब बाबा जी पर
आफत आई तो वे सब से पहले निकल छूटे.......
यो भाई हमारा प्रश्न है कि कौन सी
आफत???कृपया बताईये ......बाबा जी और उन के अनशनकारी रात को सो रहे थे फिर
कौन सी आफत आ टपकी उन पर ???
क्या ??
रात जो पुलिस का तांडव हुआ था किसी के इशारे पे क्या इशारा उस आफत पर है?
वो ही आफत न जिस में राजबाला जी की मृत्यु हो गयी थी?
अच्छा !!!
बाबा जी को उस की याद बिलकुल अपने दिल से निकाल देनी चाहिए
और
पीड़ा को व्यक्त करने का अधिकार तो किसी
भी भारतीय को है ही नहीं.......कोई आन्दोलन का अधिकार नहीं है....कोई
व्यवस्था परिवर्तन पर बोलने और जन जागरण करने का अधिकार नहीं है ......जनता
कुछ नहीं कह सकती ....आखिर आप ने इन सांसदों को चुन कर भेजा है और अब आप
का अधिकार ख़त्म ......अब आप सिर्फ उन को चुनाव के समय ही कुछ कह सकते हैं
और तब भी साम ,दाम,दंड,भेद की नीति को ले कर ये फिर जीतने की कोशिश करेंगे
और कामयाब होएंगे.......
जनता यदि कुछ कहने की कोशिश करती है तो
संसद का अपमान माना जाता है,यदि जनता को जागृत करने की कोशिश की जाती है
तो विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया जाता है,बार बार कहा जाता है कि संसद
एक मंदिर है और इसे तोड़ने की कोशिश न की जाए |
बोला जाता है कि यदि आप कुछ बदलाव लाना
चाहते हैं तो सुझाव दीजिये न ,यदि आप आज कि व्यवस्था से खुश नहीं हैं तो
सुझाव दीजिये न ...सारे राजनैतिक दल मिलकर उस पे आम राय बनाने कि कोशिश
करेंगे और लागू करने कि पहल करेंगे ........सो साहब कोशिश तो कर ही रही है
जनता साल भर से और कई सालों से......आप सुनते ही कब हैं????
बदलाव लाना है तो संसद में आईये,चुनाव लड़िये,गेरुए वस्त्र त्यागिये राजनीति में आईये........
तो आप सब से सवाल है........
यदि राजनीति में स्वयं ही आना होता तो
किसी ने रोका था क्या जो नहीं आते,आज आप को अपना नुमाएंदा चुना है तो क्या
आप हमारी बात पर अमल नहीं करेंगे???गेरुए वस्त्रों को धारण करने का अर्थ
क्या ये है कि अब समाज से कट गए हैं और इस में व्याप्त बुराईयों के विरुद्ध
जनता को जगा न पायेंगे???
बार बार ये कहा जाता है कि यदि आप किसी कि
तरफ एक ऊँगली दिखाते हैं तो तीन आप कि तरफ भी होती हैं......तो भाई हमारा
कहना है कि उन तीन उँगलियाँ अगर हमारा भ्रष्टाचार उजागर करना चाहती हैं तो
कीजिये न उसे भी लोकपाल कि जद में लाईये ओर सज़ा दिलाईये पर एक सशक्त
लोकपाल तो लाईये..........
हमें आईना तो दिखाईये.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें