समय का कंठ नीला है
हमारी आत्मा का रंग नीला होता है। सारी आत्माएं शिव के नीले कंठ में निवास करती हैं, अपना रंग वहीं से लेती हैं।
मेरे इस प्रेम का रंग नीला है। मैं इसे
अपने कंठ में धारण करती हूं। आधी रात जब पास में कोई नहीं होता, कमरे की
पीली बत्तियां अपनी चमक से थक चुकी होती हैं, यह नीला प्रेम आंखों के भीतर
करवट लेता है। गले के भीतर इसकी हरकत महसूस होती है।
प्रेम में डूबी लड़कियों के गले पर स्पर्श करोगे, तो पाओगे, अंदर कांटे भरे हैं। गुलाब के डंठल की तरह।
यह रुलाहट को रोकने की कोशिश में उगने वाले कांटे होते हैं।
मुझे हेनरी मातीस का वह कथन याद आता है, 'नीला रंग आपकी आत्मा को चीरकर भीतर समा जाता है।'
वह ऐसा ही प्रेम था।
वह मेरे बचपन का दोस्त था। उस बचपन का,
जिसकी स्मृतियां भी हमारे भीतर नहीं बचतीं। उस समय उसका परिवार हमारे ठीक
पड़ोस में रहता था। दस-बारह की उम्र तक हम साथ खेले, साथ दौड़े। हम साथ-साथ
पॉटी भी करते थे, जब तक कि इसके लिए हमारे घरवालों ने हमें डांटना न शुरू
कर दिया।
जिस उम्र में हम एक-दूसरे को जानना शुरू
कर सकते थे, उसका परिवार हमारे पड़ोस से उठकर दूसरी कॉलोनी में चला गया।
हमारी मांओं में दोस्ती बरक़रार रही। जब उसकी मां हमारे घर आती थी, साथ वह
भी आता था।
हम अब पहले जैसे नहीं रहे थे। हम दोनों के साथ हमारे बड़े हो जाने का संकोच भी बड़ा हुआ था।
कुछ बरस पहले तक हम एक-दूसरे की आदत थे,
अब हम कौतुहल हैं। मैं जानती थी कि वह जिस तरह मेरा चेहरा देखता है, उसमें
बचपन की उन्हीं सारी स्मृतियों को वयस्कता में जीने की चाह भरी होती है।
बचपन हमारी वयस्कता का विलोम होता है। जो
लड़का बचपन में इतना बोलता था, बड़े हो जाने के बाद वह उतना ही चुप रहने
लगा। उसकी बोलने की कोशिश चुप रह जाने की क्रिया में बदल जाती है।
जब मैं दसवीं में पढ़ती थी, मुझे पढ़ाने
ट्यूटर आता था। वही हरे ढक्कन वाला प्रेमी। कई दफ़ा ऐसा हुआ था कि यह लड़का
अपनी मां के साथ हमारे यहां आया हुआ है, उसके थोड़ी ही देर बाद मेरा
ट्यूटर आ जाता और मैं अपने कमरे में चली जाती। ऐसे में यह लड़का हम दोनों
के पीछे-पीछे कमरे में आ जाता और मुझे पढ़ता हुआ देखता रहता।
पता नहीं, क्या-क्या देखता रहा, पर एक रोज़ उसने कहा, 'अनु, तेरा यह ट्यूटर बहुत बदमाश है।'
मैंने उसकी बात उसी तरह सुनी, जैसे नींद के दौरान संगीत सुना जाता है।
उसे संगीत बहुत पसंद था। हमारे बीच यह एक नया धागा था।
एक शाम बहुत बारिश हो रही थी। मैं बाल्कनी
में खड़ी थी। थोड़ा भीगती हुई। अपनी हथेली पर पानी की बूंदें रोप रही थी
कि उसने कहा, 'गीलापन, इस धरती का सबसे सुंदर संगीत है। बारिश में बूंदें
हमारी देह को साज़ की तरह बजाती हैं। संगीत कभी साज़ में नहीं होता। वह उस
पल में पैदा हुए गीलेपन में होता है, जिस पल में बूंदें हमारी देह को छूती
हैं।'
उसी समय मुझे याद आया। मैंने उससे कहा,
'अंदर चलो। एक अद्भुत चीज़ सुनाती हूं। इसे बहुत कम लोगों ने सुना है,
लेकिन यही असली संगीत है।'
उसी दिन मेरा परिचय केनी जी से हुआ था।
मैंने अंदर उसका गाना 'सॉन्गबर्ड' बजा दिया। वह बाल्कनी के दरवाज़े पर
टिककर सुनता रहा। सिर झुकाए हुए। बीच में मैंने गाने की तारीफ़ में कुछ
कहना चाहा, लेकिन उसने रोक दिया।
हम देर तक उसी गाने को दोहरा-दोहराकर
सुनते रहे। मैं उससे कह रही थी, 'संगीत वही होता है, जिसमें किसी शब्द की
ज़रूरत न पड़े। शब्द किसी भी संगीत की आत्मा में लगे घुन होते हैं। हम
गीतों के बोल याद करते हैं, उनकी लय और धुन याद करते हैं, लेकिन उस याद में
संगीत की आत्मा नहीं बसी होती। संगीत वह है, जब आप अकेले बैठे हों, एक
निर्मम धुन आपके भीतर बज रही हो, और आपको उस स्मृति की अभिव्यक्ति के लिए
किसी शब्द का सहारा न लेना पड़े।'
उसने कहा, 'बहुत कम लोग होते हैं, जो बिना
किसी शब्द का सहारा लिए संगीत की उस स्मृति को अभिव्यक्त कर सकें। और वे
लोग तो उनसे भी कम होते हैं, जो उस अभिव्यक्ति को ठीक-ठीक उसी तरह समझ
सकें।'
मैंने कहा, 'इसीलिए तो संगीत सभी के बस की बात नहीं।'
उसने कुछ बोलने की कोशिश की, उसकी देह, हाथ और भंगिमाएं इस कोशिश की घोषणा करते हैं, लेकिन बोलने से पहले ही वह चुप हो गया।
थोड़ी देर बाद वह चला गया। मैं उसे छोडऩे
कभी दरवाज़े तक नहीं जाती थी। कई बार मुझे पता ही नहीं होता था कि वह घर
में आया हुआ है। कई बार किचन में आधा घंटा मेरी मां से बतियाने के बाद वह
मेरे कमरे में आता था। मैं उसका आना भी नहीं जानती थी। उसका जाना भी नहीं
जानती थी।
इसके तीसरे दिन मुझे किसी काम से कमरे से
निकलना पड़ा। वह विदा हो रहा था। जूते पहनने के बाद उसने सोफ़े के पीछे से
अपना बैग उठाया। उसके साथ एक केस भी था। उसका आकार देखकर ही लगता था कि
उसके भीतर कोई साज़ है।
मैंने बहुत उत्सुकता से पूछा, 'इसमें क्या है?'
उसने कहा, 'सैक्सोफोन।'
'ओहो। तुमने सीखना शुरू कर दिया? एक ही दिन में केनी जी का इतना जादू हो गया तुम पर?'
वह मुस्कराने लगा।
मैंने कहा, 'सुनाओ, क्या पों-पां सीखी है तुमने?'
'अरे अभी? अभी तो मैं जा रहा हूं।'
मैंने जि़द पकड़ ली। उसे वापस अपने कमरे में ले गई। घर के सारे लोगों को बुला लिया।
वह बहुत शर्माया हुआ था। किसी तरह उस पूरे दृश्य से ग़ायब हो जाना चाहता था।
उसने केस से साज़ निकाला। सुनहरे रंग का
सुंदर सैक्सोफ़ोन। कितना सुंदर कर्व था उसका। मैंने पहली बार किसी भी साज़
को इतना क़रीब से देखा था। मैंने पहली बार उसे छुआ था। वह केंचुल छोड़े
सांप की तरह मदमाता चमचमा रहा था। एक सुनहरा सांप।
वह लड़का बार-बार अपनी जीभ से अपने होंठों को गीला कर रहा था। सभी उसमें जोश भर रहे थे।
उसने हवा भरी। पोंईं जैसी कोई आवाज़ आई। हम सब हंस पड़े।
फिर उसने बजाना शुरू किया। सैक्सोफ़ोन के
स्वर अचरज के बोल पर लहरा रहे थे। मैं आंखें फाड़े उसे देख रही थी। वह
आंखें मूंदे 'सॉन्गबर्ड' बजा रहा था।
उसने पूरा नहीं बजाया, आधे में ही छोड़ दिया। हम सब तालियां बजा रहे थे।
सबके चले जाने के बाद मैंने कहा, 'तुम तो छुपे रुस्तम निकले। मैं तो यह हुनर जानती ही नहीं थी।'
बहुत धीरे-से उसने कहा, 'जिस दिन हम लोग दूसरी कॉलोनी में रहने गए, तुमने उसी दिन से मुझे जानना बंद कर दिया है।'
अपना साज़ पैक करते समय उसने कुछ बोलना चाहा, फिर चुप हो गया।
'तुमने वही गाना बजाया, जो मुझे बेहद पसंद है। सिर्फ़ तीन दिन में ही तुमने यह सीख लिया?'
उस समय तो वह मुस्करा दिया। बाद में उसने
बताया, बहुत हिचकते हुए, कि वह दो साल से सीख रहा है। वह संगीत क्लास से
होकर ही हमारे यहां आता था। आने के बाद सोफ़े के पीछे अपना सामान रखता था।
मैं कभी अपने कमरे से बाहर नहीं आती थी, सो मुझे पता ही नहीं कि वह हमेशा
साज़ के साथ ही आता था।
उसके बाद अपने सैक्सोफ़ोन केस के साथ वह
मुझे कहीं भी मिल जाता था। चौराहों पर, सड़कों पर, स्टेशनों पर। कई बार
मेरे पीछे-पीछे चलते हुए आता, फिर मुस्कराते हुए साथ चलने लगता। वह कभी हाय
या हैलो नहीं कहता था, न ही उनका जवाब देता था। वह आधा-आधा घंटा मेरे साथ
चलता था, पर बमुश्किल कभी कोई एक वाक्य पूरा कहता।
कई बार ऐसा भी हुआ कि मैं राह चलते पलटकर देखती, और उसे आता पाती। मैंने दो-चार बार उसे टोका, 'तुम हमेशा मेरे पीछे-पीछे आते हो?'
उसने हमेशा अपने विशेष व भ्रष्ट उच्चारण में जवाब दिया, 'कोन्सीडेंस।'
मुझे बहुत बाद में पता चला कि वह कोई 'कोन्सीडेंस' नहीं था। वह उसी तरह मेरे पीछे-पीछे चलता है, जैसे प्रेम चला करता है।
प्रेम हमेशा आपके पीछे चलता है। उसे
पहचानने के लिए आपको पलटकर देखना होता है। पलटकर देखना, एक तरह से याद करना
होता है। याद करना, एक तरह से प्रेम करना होता है।
बिना याद किए कोई प्रेम संभव ही नहीं होता।
मैं बहुत याद करती थी। अब तक मुझे प्रेम हो चुका था।
जिस समय वह आता था, उस समय मैं घर पर कम
ही होती थी। कई बार शाम को घर पहुंचने के बाद मुझे गाजर का हलवा मिलता, कभी
बटाटा वड़ा, कभी प्याज़ के भजिए, तो कभी मेरे लिए खीर होती। हर ईद पर
सेवइयां दे जाता था और ईदी भी। गणपति के दिनों में पीले मुलायम मोदक।
मां कहती, 'वह लड़का तुम्हारे लिए देकर गया है। उसकी मां ने बनाया था, तो उसने सोचा कि तुम्हारे लिए भी लेता आए।'
यह सब बचपन से चलता था, इसलिए इसमें कुछ भी अजीब नहीं था।
कुछ जगहों पर हम साथ भी गए थे। जैसे एक
बार मुझे यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में जाना था। विलेपार्ले में वीपी रोड
पर ऑटो से उतरकर मैं उसे पैसे चुकाने लगी कि देखा, पिछले ऑटो से वह उतरा
है। मैं उससे बातें करते हुए प्लेटफॉर्म पर पहुंची। उसने बताया कि वह कहीं
नहीं जा रहा, पूरा दिन फ्री है, मैं चाहूं, तो वह मेरे साथ रह सकता है।
मुझे ठीक लगा। हम साथ गए। उसका सैक्सोफ़ोन केस, लोकल की भीड़ में सभी को परेशान कर रहा था। बहुत मशक़्क़त से वह उसे रैक पर रख पाया।
यूनिवर्सिटी के काम निपटाने के बाद वह बोला, 'चलो, तुम्हें कुछ दिखाते हैं।'
फ्लोरा फाउंटेन के आगे सड़क के किनारे बनी
पटरियों पर वह मुझे ले चला। वहां हमेशा भीड़-भाड़ होती है, दुकानें लगी
होती हैं, हर दुकान पर कोई न कोई, कुछ न कुछ ख़रीद रहा होता है। मुझे वहां
पैदल चलने में हमेशा डर लगता है। आप चुपचाप सिर झुकाए चल रहे हों और अचानक
आपके सामने कोई आ जाए, अपना सामान ख़रीद लेने की गुज़ारिश करते हुए। आप
खड़े होकर सामान देखें, ख़रीद लें, तो ठीक है, न ख़रीदें, तो वह गालियां
बकेगा। उसने दूर से ही आपको एक संभावित ख़रीदार मान लिया था और जब आप उसकी
संभावना को ख़त्म कर देते हैं, तो समय का निवेश ज़ाया होने के कष्ट से वह
चिढ़ जाता है।
उस रोज़ भी मेरे सामने एक निहायत काला
आदमी खड़ा हो गया, जिसे देखते ही डर की झुरझुरी फूट पड़े। उसकी दाहिनी ओर
चमकते हुए इस्पात की ज़ंजीरें लटकी हुई थीं। उसके चलने से उनसे भयानक आवाज़
निकलती थी। उन्हीं के बीच पुरुषों के बेल्ट लटके हुए थे। उसकी दाहिनी कलाई
पर बच्चों के खिलौने थे। सिर पर आठ-दस टोपियां पहन रखी थीं। उसकी आंखों पर
काला चश्मा था, माथे पर अलग तरह का चश्मा, गले में भी चश्मा, शर्ट के हर
बटन के होल में एक चश्मा लटका हुआ था। बाईं ओर एक सुतली में बंधे हुए कई
लेडीज़ पर्स थे। वह आदमी पूरी एक दुकान था। उसके सामानों के बीच उसकी देह
बड़ी मुश्किल से दिखती थी। वह अपना कोई भी सामान ख़रीद लेने का आग्रह कर
रहा था।
वह आदमी आज भी मेरे ज़ेहन में रहता है। मैं उसे अपने समय का रूपक मानती हूं।
मैं उसे मना कर रही थी कि कहीं और से चलते
हैं, लेकिन वह इस क़दर चुप था कि ख़ुद उसी से डर लगने लगे। उसके और मेरे
बीच की हवा रहस्य से गर्भवती थी।
थोड़ी दूर जाकर वह रुका।
वहां वायलिन की आवाज़ गूंज रही थी। उसने लोगों को हटाकर मेरे लिए जगह बनाई।
कांच से बने एक शो-रूम के बग़ल में एक
बूढ़ा छोटी-सी कुर्सी पर बैठा था। नीला कोट, नीली पतलून, नीले मोज़े और
काले जूते। वह शायद गहरी नीली रंग की टोपी भी पहनता था, क्योंकि उसने अपने
सामने वही टोपी उल्टी रखी थी। उसमें पैसे रखे हुए थे।
वह आदमी वायलिन बजाकर पैसे जुटाता था।
इस लड़के ने अपना सैक्सोफ़ोन केस वहीं रखा
और उस बूढ़े के सामने उकड़ूं बैठ गया। उसने बूढ़े के पैर छुए। स्पर्श के
कारण बूढ़े ने आंखें खोल दीं, लड़के को देखकर मुस्कराया, सिर हिलाकर
अभिवादन किया और आंखें मूंदकर वायलिन में खो गया।
उसने मुझे भी उकड़ूं बिठा लिया। मेरी ओर
झुकते हुए धीरे-से बोला, 'यह ब्राह्म्स बजा रहा है, उसका 'वायलिन कन्चेर्तो
इन डी मेजर'। यह दस मिनट का पीस है। बहुत ध्यान से सुनना। शायद आधे से
ज़्यादा हो चुका है।'
कोई यक़ीन नहीं करेगा कि फ़ोर्ट के बाज़ार
की पटरियों पर जहां हर समय आवाजाही और शोर होता है, वहां इतना सन्नाटा था
कि वायलिन की पतली आवाज़, जो कि हृदय के भीतर कहीं दो हरी टहनियों के आपस
में लिपटने की आवाज़ जैसी होती है, श्रेष्ठतम संगीत की तरह गूंज रही थी।
बजाते-बजाते वह बूढ़ा खड़ा हो गया। उसकी देह उसकी लय पर लहराने लगी। उसका
मुंह खुल गया था। भवें सिकुड़ गई थीं। अचानक वह स्थिर हो गया। आखि़री तीस
सेकंड में उसकी उंगलियां वायलिन के निचले हिस्से पर आ गईं और उसकी आंखों से
धारासार आंसू बहने लगे।
वह ऐसा संगीत था कि मेरे भीतर भी कुछ गलने
लगा। मैं भी रोने लगी थी। मैं देखना चहती थी कि वह लड़का भी रो रहा है
क्या, पर उससे पहले मैंने पाया कि वह रूमाल से आंख पोंछ चुका है।
संगीत समाप्त हुआ। बूढ़ा धम्म से बैठ गया।
जैसे शो समाप्त होने के बाद परदा बहुत तेज़ी से गिरा हो। मौजूद लोगों ने
ज़ोरदार ताली बजाई। मैंने पलटकर देखा, कई लोगों की आंखें भीगी हुई थीं। उसे
घेरे इतने लोग खड़े थे कि बहुत अचरज हुआ, मुंबई के इस सबसे दौड़ते इलाक़े
में, जहां लोग नाश्ता भी चलते-चलते करते हैं, लोगों में संगीत के लिए इतना
प्रेम बाक़ी था कि वे खड़े होकर सुन रहे थे, और उसके भावलोक में आंखों को
गीला भी कर रहे थे।
उसकी टोपी नोटों से भर गई।
अपनी कुर्सी पर बैठा वह हांफ रहा था।
भीड़ छंट गई। इस लड़के ने फिर उस बूढ़े के पैर छुए और बोला, 'बहुत सुंदर बजाया।'
वह मुस्करा दिया। पूछा, 'कैसे हो तुम? कैसा चल रहा है तुम्हारा रियाज़?'
इसने जवाब दिया, 'अच्छा हूं। इन दिनों मोत्ज़ार्ट की पचीसवीं सिंफनी पर काम कर रहा हूं।'
'सैक्सोफ़ोन पर बहुत मुश्किल होगा।'
'हां, उसकी धुन परिचित नहीं लगती, लेकिन अलग ही मज़ा आता है।'
'अकेले मत बजाओ। भटक जाओगे। पचीसवीं के लिए कम से कम पांच सैक्सो$फोन चाहिए।'
'अभी तो मैं अकेला ही हूं। कुछ दोस्तों से बात करूंगा।'
फिर वे दोनों ही चुप हो गए। बूढ़ा अपनी
उंगलियों को धीरे-धीरे सहलाता रहा। इस लड़के ने उसकी टोपी से पैसे निकाले,
गिने और बूढ़े की जेब में डाल दिए।
फिर बोला, 'चाइकोवस्की सुनाएंगे?'
'क्या सुनना है उसका?'
'वायलिन कन्चेर्तो इन डी मेजर।'
'अभी तो डी मेजर ही बजाया था।'
'वह तो ब्राह्म्स था। चाइकोवस्की सुनना है, वह भी आपसे।'
'बहुत लंबा है।'
'सिर्फ़ फर्स्ट मूवमेंट ले लीजिए।'
'आज एक सपना देखा था। एक छोटी-सी बच्ची आई है। ए मेजर में मोत्ज़ार्ट का वायलिन कन्चेर्तो नंबर 5 सुनना चाहती है।'
'हा हा हा। यहां भी एक बच्ची आई है। विलेपार्ले से। मेरी बचपन की दोस्त है।'
उसने मेरी ओर इशारा किया। बूढ़े ने बहुत
ग़ौर से मुझे देखा। फिर अपना कांपता हुआ हाथ मेरी ओर बढ़ाया। इसी हाथ से वह
थोड़ी देर पहले वायलिन की स्टिक पकड़े हुए था। मेरे हृदय के भीतर दो हरी
टहनियां गले लगकर रो रही थीं, उनमें से एक का आकार इस हाथ जैसा ही था।
मुझसे हाथ मिलाते हुए बोला, 'यू आर वेरी ब्यूटीफुल, माय चाइल्ड।'
'लेकिन मैं इसे चाइकोवस्की सुनाना चाहता हूं। वह भी आपसे। फ़र्स्ट मूवमेंट तो सिर्फ़ दस मिनट में हो जाएगा, बाबा।
'ठीक है। कोशिश करता हूं। बहुत थक गया हूं।'
थोड़ी देर तक वह चुप रहा। शायद अपने
दिमाग़ की गलियों में संगीत की पैदल स्मृतियों का आवाह्न कर रहा हो। या हवन
करने से से पहले एक विशेष कि़स्म का शांति-पाठ।
वह खड़ा हुआ। उसके साथ हम भी खड़े हो गए।
उसने वायलिन को साधना शुरू किया। बहुत धीमे-धीमे उसमें से सुर फूटने लगे।
मैं बहुत ध्यान से सुन रही थी, क्योंकि यह लड़का मुझे ख़ासतौर पर यह संगीत
सुनाना चाहता था। वह ऐसा संगीत नहीं था, जो पहली ही बार में समझ में आ जाए,
जो पहली ही बार में दिल के भीतर उतर जाए, लेकिन वह महान संगीत था।
मैं, कठपुतलियों की तरह झूम-झूमकर वायलिन
बजाते बूढ़े को देख रही थी। वह धुन हकबकाई हुई मेरे भीतर प्रवेश कर रही थी।
मैं महसूस कर सकती थी, वहां बेचैनी थी। वह संगीत मेरे कानों से मेरे हृदय
में गया था, लेकिन वहां भटक रहा था। मेरा हृदय उसके लिए एक अनजान द्वीप था,
जहां पहुंचकर वह डर गया था। हृदय की इस निर्जनता में वह संगीत ख़ुद को ही
संदेह से देख रहा था।
झूमता हुआ बूढ़ा शांत हो गया। उसने थोड़ा-सा ही बजाया था। बीच में ही रोक कर बैठ गया।
इस बार कम भीड़ जुटी थी। इस बार उसने चरम पर पहुंचने से पहले ही रोक दिया था।
बैठने के बाद वह धीरे-से बोला, 'सुनो,
चाइकोवस्की समझने के लिए यह बच्ची अभी बहुत छोटी है। इसे विवाल्दी का 'फोर
सीजन्स : स्प्रिंग' सुनाना। इसे वहां से मज़ा आना शुरू होगा।'
थोड़ी देर चुप रहने के बाद हम वहां से विदा हुए।
उन्हीं पटरियों से लौटते हुए चर्चगेट के रास्ते में उसने पूछा, 'कैसा लगा?'
'पहले वाले ने तो रुला दिया था, लेकिन दूसरा वाला जब तक मैं समझ पाती, तब तक उन्होंने बंद कर दिया।'
'हां। यह बहुत कठिन कन्चेर्तो माना जाता
है। शायद सबसे कठिन। इसे बजाना भी मुश्किल है, सुनना भी मुश्किल, समझना तो
और मुश्किल। जब चाइकोवस्की ने इसे लिखा था, उसके कई बरस बाद लोगों को इसकी
सुंदरता समझ में आ पाई। संगीत वह फूल है, जो हमेशा देर से खिलता है।'
मैं चुपचाप उसके साथ चलती रही।
वह बोला, 'एक सुंदर वायलिन कन्चेर्तो,
प्रेम की तरह होता है। देर से समझ में आने वाले प्रेम की तरह। कुछ लोगों का
जीवन वायलिन कन्चेर्तो की तरह बजता है। जब आप उस जीवन को बीसियों बार याद
करते हैं, तब आपको समझ में आता है कि अरे, वह तो आपसे प्रेम करता था।'
मैं अब भी चुप थी।
'तुम्हें इसकी कहानी तो पता नहीं होगी। सुनोगी?'
'हां। ज़रूर। इन फ़ैक्ट, वह संगीत मेरे
भीतर लगातार बज रहा है और इस समय मैं रोना चाहती हूं। कोई कहानी सुनाकर इस
अनुभूति से बाहर कर लो मुझे।'
'हम्म। यह कन्चेर्तो चाइकोवस्की के प्रेम
का प्रायश्चित है। तुम्हें पता है, जो लोग प्रेम में बहुत गुनाह करते हैं,
छल, उपेक्षा और अपमान करते हैं, आए हुए प्रेम को ठुकरा देते हैं, दिल से
निकलते प्रेम को छिपा ले जाते हैं, प्रेम के साथ बर्बरों जैसा व्यवहार करते
हैं, अगले जन्मों में वे ही संगीत के रचयिता होते हैं। संगीत हमारी आत्मा
का लयबद्ध रुदन है। ऐसी लयबद्धता, जिसमें क़हक़हा कभी रुदन की तरह लगता है
और रुदन कभी क़हक़हे की तरह।
'प्रेम का अपमान करोगे और अगले जन्म में
पेड़ बन गए, तो तुम्हारी लकड़ी से तबला बनेगा। पशु बन गए, तो तुम्हारे
चमड़े से वाद्ययंत्र बनेंगे। संगीत में बजाने वाला भी प्रेम का अपराधी होता
है और बजने वाला भी। अच्छा संगीत हमें क्यों रुला देता है? क्योंकि ख़ुद
हम अपने अपराधों से अच्छी तरह वाकि़फ़ होते हैं।
'अपनी समलैंगिकता को समाज से छिपाने के
लिए चाइकोवस्की ने अपनी एक छात्रा से शादी कर ली। वह उससे प्रेम नहीं करता
था। अंतोनिया नाम की वह लड़की साधारण पढ़ाई, साधारण समझ और ग़रीब परिवार से
थी। चाइकोवस्की को लगा कि उसकी साधारणता को वह नियंत्रित कर लेगा और
पुरुषों के प्रति अपने प्रेम को चलाए रख सकेगा। पर वैसा नहीं हुआ।
'अंतोनिया कला में साधारण थी, लेकिन प्रेम
की इच्छा से भरी हुई थी। उसने चाइकोवस्की से ख़ूब प्रेम चाहा और उसे नहीं
मिला। पहले उसे समझ में ही नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है? यह संगीतकार
हमेशा उदासीन रहता है, कमरे में किनारे बैठा रहता है, बेडरूम में दूर हो
जाता है, प्रेम मांगने पर खाने को दौड़ता है या फिर अपने साज़ों में गुम हो
जाता है। आखि़र क्यों?
'बाहर के लोगों से उसे चाइकोवस्की की
समलैंगिकता के बारे में पता चला। पहले उसे भरोसा नहीं हुआ, फिर एक-एक कर
प्रमाण मिलते गए। वह हर सुबह अपने पति के प्रति प्रेम की भावना से भरी उठती
थी और रात होते-होते अतृप्ति की निराशा में डूब जाती। हर रात के साथ प्रेम
की उसकी इच्छा बढ़ती जाती। हर दिन के साथ उसकी आकांक्षाएं आसमान छूने
जातीं।
'चाइकोवस्की में इतना साहस कभी नहीं आ
पाया कि वह उसे सचाई बता सके। उसने वह संबंध छल के आधार पर, जीवन-भर छल
करते रहने के लिए ही बनाया था। लेकिन अंतोनिया अपनी साधारणता में भी अग्नि
थी। एक दिन उसका विस्फोट हो गया।
'कुछ ही दिनों में प्रेम की आकांक्षा और
अ-प्रेम की उदासीनता का यह संघर्ष इतना बढ़ गया कि भयानक झगड़े होने लगे।
चाइकोवस्की का पुरुष-ईगो चोटिल होने लगा। उसने अपना संतुलन खोना शुरू कर
दिया। एक रात उसने नदी में कूदकर जान देने की सोच ली, लेकिन अपने साज़ों को
देखकर रुक गया। वह तो संगीत रचने इस दुनिया में आया था। लेकिन उस रात उसे
विश्वास हो गया कि अगर वह इस झगड़ालू औरत के साथ रहेगा, तो उसका संगीत
हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।
'सिर्फ़ छह हफ़्तों में दोनों अलग हो गए।
अंतोनिया सदमे में थी। उसकी समझ में नहीं आया कि सिर्फ़ प्रेम मांग लेने-भर
से कोई रिश्ता कैसे समाप्त हो सकता है? लेकिन दोनों ने कोई पहल नहीं की।
दोनों अपनी अतृप्ति के शिखर पर बैठे थे। दोनों अलग रहने लगे। दोनों
असंतुलित रहने लगे।
'अंतोनिया अपने सवालों से परेशान रहने
लगी। चाइकोवस्की अपने चोटिल ईगो व क्रोध से। अभी भी वह न तो सचाई बता पा
रहा था, न ही स्वीकार कर पा रहा था।
'लेकिन शायद उसके भीतर एक पछतावा भी था।
कम से कम वह ख़ुद जानता था कि उसने अंतोनिया के साथ छल किया है। वह पछतावा
इस कन्चेर्तो के रूप में लिखा गया। लंबे समय तक ख़ुद चाइकोवस्की इसे पछतावे
की तरह नहीं देख पाया।
'अंतोनिया उसकी प्रतीक्षा करती रही। उसकी
प्रेमेच्छा और कामेच्छा उत्तुंग हो चुकी थीं। वह नहीं रुक पाई। कुछ बरसों
बाद उसके अनेक पुरुषों से संबंध बन गए। उनसे उसे तीन बच्चे हुए। उसने तीनों
को नहीं पाला। अस्पतालों में छोड़ दिया।
'चाइकोवस्की ने उसे तलाक भी नहीं दिया।
साथ भी नहीं रहा। जब भी उसे अंतोनिया के प्रेमियों के बारे में पता चलता,
वह पीड़ा से तड़प उठता। तब उसे अहसास होता कि वह उस स्त्री से प्रेम करने
लगा था।
'अलग होने के बाद वह अवसाद में चला गया।
डॉक्टरों के मना करने के बाद भी उसने यह कन्चेर्तो लिखा था। उसे वायलिन
बजाना नहीं आता था, लेकिन अपने एक वायलिनवादक समलैंगिक प्रेमी की सहायता से
उसने इसे पूरा किया।
'यह उसका आखि़री बड़ा काम था। तब उसकी
उम्र महज़ 38 साल थी। उसे हमेशा डर लगता था कि अगर वह उस औरत के साथ रहा,
तो उसका संगीत समाप्त हो जाएगा। पर हुआ उल्टा ही। उसने उस औरत का साथ छोड़ा
और उसका संगीत समाप्त होने लगा। इस कन्चेर्तो के बाद वह कुछ भी बड़ा नहीं
रच पाया। उसने दुनिया-भर में अपना संगीत सुनाया, लेकिन वह सब पुराना संगीत
था। उसकी प्रतिष्ठा कम नहीं हुई थी, लेकिन अपनी गिरावट को उसके सिवाय कोई
नहीं समझ पाया। संगीत एकमात्र कला है, जो कभी झूठ नहीं बोलती। उसके कहे सच
को सभी न समझें, उसे रचनेवाला ज़रूर समझ जाता है।
'इस कन्चेर्तो को बरसों तक लोगों ने नहीं
समझा। वायलिनवादकों ने इसे बजाने से इंकार कर दिया। आलोचकों ने इसकी निंदा
में पन्ने रंग दिए।
'आखि़री बरसों में भीतर ही भीतर
चाइकोवस्की को अहसास हुआ कि हां, वह उस औरत से प्रेम करता था। बहुत प्रेम
करता था। अगर वह अपनी बातें कहता, दिल से कहता, उसके प्रति प्रेम का भाव
जताकर कहता, तो अंतोनिया उसके साथ रहती। दिल के भीतर इस अहसास ने जन्म लिया
और दिल के बाहर दुनिया ने इस कन्चेर्तो को समझना शुरू किया।
'संगीत ध्वनियों से बनता है और प्रेम
अभिव्यक्तियों से। वह संगीतकार था, ध्वनियों के पीछे दौड़ता रहा,
अभिव्यक्तियों से दूर भागता हुआ। प्रेम की आकांक्षा और अक्षमता की उदासीनता
के बीच हुए संघर्ष ने उसके जीवन को जटिलताओं से भर दिया। इसीलिए यह
कन्चेर्तो इतना जटिल है। दुनिया के कठिनतम संगीत में से एक। इसमें हम
अतृप्त प्रेम के उन्माद के क़रीब पहुंचती एक स्त्री की सुबक सुन सकते हैं।
इसमें हम असमंजसपूर्ण मौन के एक क़ैदी की, क़ैद से निकल भागने की दारुण
तड़प को सुन सकते हैं।
'प्रसिद्धि के शिखर पर बैठे हुए 53 की
उम्र में चाइकोवस्की की मृत्यु हो गई। उसके मरने के कुछ ही बरसों बाद
अंतोनिया पागल हो गई। बीस साल तक पागलख़ाने में रहने के बाद उसकी भी मौत हो
गई।'
यह कहानी पूरी होने के बाद हममें से कोई
कुछ बोल नहीं पाया। हम दोनों ने अपना पूरा सफ़र चुप्पी के वाहन में बैठकर
तय किया। मैं घर पहुंचने के बाद भी बहुत देर तक चुप ही रही। वह लड़का अगले
पंद्रह दिनों तक मुझसे नहीं मिला। उसका न मिलना उसकी चुप्पी थी।
उसने मुझे कई बार उस हरे लड़के के साथ
देखा था। उसके चेहरे पर हमेशा उदासी और चुप्पी होती थी, इसलिए मैं यह नहीं
कह सकती कि वह मुझे उस लड़के के साथ देखकर उदास हो जाता था या कुछ और।
एक रोज़ मैं हरे लड़के से बुरी तरह टूट गई।
उन दिनों मैं अपने कमरे की दीवारों पर
अवसाद के भित्तिचित्र बनाती थी। अपने बिस्तर को समंदर मानती थी। पीठ के बल
उस पर लेटने को मैं, पीठ के बल तैर कर उदासी के सारे महासागरों को पार कर
लेने के हुनर का अभ्यास मानने लगी थी। मेरा लेटना स्थिर था। मेरे तैरने में
कहीं कोई गति नहीं थी।
उस समय वह मेरे सिरहाने बैठा रहता। वह
मेरे भीतर की ख़ामोशी की आदमक़द प्रतिलिपि-सा होता। उसने मेरे कुछ प्रेमों
को क़रीब से देखा। जब मैं 'डैफ़ोडिल्स' या 'रॉक अराउंड द क्लॉक' में पेट
शॉप बॉयज़ के किसी गाने पर थिरक रही होती, कई बार वह भी उन्हीं जगहों पर
होता, लेकिन मेरे पास न आता।
प्रेम के दिन टूट जाने के दिन होते हैं।
शुरू में ऐसा लगता कि सबकुछ फिर से बन रहा है, लेकिन प्रेम, बैबल के टॉवर
की तरह होता है। सबसे ऊंचा होकर भी अधूरा कहलाता है।
जब मनुष्यों ने बैबल का टॉवर बनाना शुरू
किया था, तब ईश्वर बहुत ख़ुश हुआ था. धीरे-धीरे टॉवर आसमान के क़रीब
पहुंचने लगा. ईश्वर घबरा गया. उसे लगा, मनुष्य उसे ख़ुद में मिला लेंगे.
वे सारे मनुष्य एक ही भाषा में बात करते थे. ईश्वर ने उनकी भाषा अलग-अलग
कर दी. उनमें से कोई भी एक-दूसरे को नहीं समझ पाया. सब वहीं लड़ मरे.
जैसे मनुष्य की रचना ईश्वर ने की है, उसी
तरह प्रेम की अनुभूति की रचना भी उसी ने की होगी। ईश्वर शैतान से उतना नहीं
डरता होगा, जितना मनुष्य से डरता है। उसी तरह वह मनुष्य से इतना नहीं डरता
होगा, जितना वह प्रेम से डरता है। वह प्रेम को बढ़ावा देता है, और प्रेम
जैसे-जैसे ऊंचाई पर जाता है, आसमान छू लेने के क़रीब पहुंच जाता है, ईश्वर
उस प्रेम से घबरा जाता है। उसके बाद वह दोनों प्रेमियों की भाषा बदल देता
है। जब तक दोनों प्रेमियों की भाषा एक है, तब तक वे प्रेम की इस मीनार का
निर्माण करते चलते हैं। जिस दिन उनकी भाषा अलग-अलग हो जाती है, उसी दिन वे
एक-दूसरे को समझना बंद कर देते हैं और उस मीनार की अर्ध-निर्मित ऊंचाई से
एक-दूसरे को धक्का मारकर गिरा देते हैं।
नीचे गिरने के बाद हम पाते हैं कि हमारे सिवाय और कोई चीज़ नीचे नहीं गिरी।
ऐसे दिनों में मेरी भाषा ख़ामोशी होती। इस नीले लड़के की भाषा तो हमेशा ही ख़ामोशी थी। संगीत की तरह।
ये हमारी नज़दीकी के दिन होते।
चोटिल दिनों में मैं रोती थी। वह मुझे सांत्वना देता था।
मेरे आंसुओं को सोख लेने वाली रूमाल सिर्फ़ उसी के पास थी और वह अपना रूमाल कभी घर नहीं भूलता था।
रूमाल जेब में रखते हुए एक दिन उसने कहा, 'अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन है। एक बहुत ख़ूबसूरत तोहफ़े का इंतज़ार करो।'
'क्या देने वाले हो?'
'सिर्फ़ इंतज़ार करो। बहुत सुंदर होगा। तुम पूरे जीवन उसे संभालकर रखना चाहोगी।'
'ज़रूर तुम मेरे लिए किसी नये गाने का रियाज़ कर रहे हो।'
'हां, एकदम नया गाना। तुमने सोचा भी नहीं होगा। वह ऐसा ही संगीत होगा, जिसके लिए किसी शब्द की ज़रूरत न होगी। किसी साज़ की भी नहीं।'
मैं उसे देखती रही। वह जानता है कि इन
दिनों मैं बहुत उदास रहती हूं। वह मुझे ख़ुश करने के लिए, मेरे भीतर उत्साह
का संचार कर देने के लिए कुछ भी करना चाहता है।
मैं अपनी जगह से उठी। कैसेटों की आलमारी
में खोजने लगी। मुझे एक गाने की तलाश थी। क़रीब पचीस कैसेटों को
उलटने-पुलटने के बाद मुझे वह मिला। बर्ट बैकेरैक का वह गाना मद्धिम आवाज़
में कमरे में गूंजने लगा- 'इट्स लव दैट रियली काउंट्स इन द लॉन्ग रन।'
बजते हुए गाने के बीच मैंने वह छूटी हुई बात कही, 'मैं इंतज़ार करूंगी।'
और मैं आज तक इंतज़ार कर रही हूं, यह जानते हुए कि अब वह कभी नहीं आएगा।
मेरा जन्मदिन आने से पहले उसकी मौत की ख़बर आ गई।
मुंबई में दंगे शुरू हो गए थे।
दौड़ा-दौड़ाकर मारा जा रहा था। सोते में घरों में आग लगाई जा रही थी।
चमचमाने वाली दीवारें कालिख से पुत गई थीं। ऐसे ही किसी रोज़ वह दंगे में
फंस गया था। बीच सड़क। अपने किसी परिचित के साथ। दंगाइयों को देख वे दोनों
गली से निकल भागना चाहते थे, औरों की तरह, लेकिन उसके सैक्सोफ़ोन केस ने उन
बेरहमों को आकर्षित किया। उन्हें लगा, इस केस में कोई हथियार है। उन्होंने
दौड़ाकर उसे रोका, उसका केस खोलकर देखा और उसका साज़ एक जलते हुए घर में
फेंक दिया।
फिर उन्होंने उस लड़के का धर्म पूछा। उसने
जो भी बताया, उस पर उन्हें यक़ीन नहीं आया। उन्होंने उसकी पैंट उतारकर
देखा और उसे मार डाला। अब यह मत पूछना, वह किस धर्म का था?
अगर हिंदू बनकर सुनोगे, तो उसे मुसलमान
मान लेना। और मुसलमान बनकर सुनोगे, तो उसे हिंदू मान लेना। ऐसे लड़के हमेशा
उपेक्षित विपक्ष में खड़े मिलते हैं।
अपने प्रेम के लिए हल्ला मचाकर दावा करने
वाली भीड़ के बीच वह चुपचाप प्रेम कर रहा था। यह उपेक्षित विपक्ष में बैठी
हुई कार्यवाही थी।
वह मेरे जीवन की पहली मौत थी, किसी ऐसे
को, जिसे मैं बहुत क़रीब से जानती थी, उसे पसंद करती थी, ऐसे की मौत। मैं
पहले से उदास थी। अब मैं धराशायी हो गई।
जीते-जी उसने अपना प्रेम नहीं बताया था,
मरने के बाद उसका प्रेम नहीं छिप पाया। बहुत कम लोग उसके क़रीब थे। उनमें
भी यह बात सिर्फ़ मुझी को नहीं पता था कि वह मुझसे प्रेम करता है।
कई दिनों बाद मैं उसकी मां से मिली। उसे
याद कर मुझे रुलाई फूट पड़ी। उसकी बहनों ने मुझे संभाला। जब मैं चुप हुई,
तब उसकी मां ने समझाना शुरू किया, 'अब तुम उसका इंतज़ार मत करो। तुम शादी
कर लो।'
उस दुख में भी मैं इस बात से चौंक गई थी।
उसकी मां ने कहना जारी रखा, 'वह हमेशा
बताता था कि तुम उसका इंतज़ार कर रही हो। तुम्हारे जन्मदिन पर हम सब
तुम्हारे घर आने वाले थे, तुम्हारा हाथ मांगने। तुम्हारी मां को भी यह बात
पता थी।'
इस समय मेरी हर सांस चकित चुप्पियों का उच्छवास है।
'वह हर शाम तुम्हारे बारे में बातें करता
था। जब तुम उसके साथ बाइक पर घूमती, जब तुम उसके साथ किसी पब में नाचती, या
जब डैफ़ोडिल्स या फोर सीज़न्स या प्रियदर्शिनी में तुम दोनों लंच करते, उस
रोज़ वह सारा समय मुस्कराता था। उसकी दुर्लभ मुस्कान। लौटकर वह तुम्हारी
हर पसंद बताता।'
सच तो यह था कि मैं उसके साथ इन जगहों पर
कभी नहीं गई। हां, दूसरों के साथ गई थी, तब उसने मुझे एकाध बार देखा ज़रूर
था। वह दूसरों की उपस्थिति को अपनी उपस्थिति मान लेता है और इस तरह हम
दोनों के साथ की कल्पना कर लेता है। उसकी मां और बहनें यह विश्वास करती हैं
कि हम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे।
उस शाम वे लोग और भी कई बातें याद करते
रहे, जो दरअसल कभी घटी ही नहीं थीं। वे मुझे उस प्रेम की कहानियां बताते
रहे, जो कभी हुआ ही नहीं था। वे उन नृत्यों का बयान कर रहे थे, जिनकी थिरक
मेरे पैरों में थी ही नहीं।
लेकिन क्या सच में नहीं थी?
वे चीज़ें कभी घटित नहीं हुई थीं, फिर भी वे चीज़ें अस्तित्व में थीं। वे हमेशा से थीं।
किसी चीज़ का होना जानने के लिए उसका घटित होना क़तई ज़रूरी नहीं होता।
मैं घटित होने की प्रतीक्षा में थी, होने की अनदेखी से भरी हुई।
मैं उन्हें और नहीं सुन पाई।
घर पहुंचते-पहुंचते मेरा गोरा शरीर
चमचमाती हुई काली वायलिन में बदल गया। फोर्ट का वह बूढ़ा, ईश्वर की भूमिका
में है और उसने उस लड़के को अपनी छड़ी में बदल दिया है, जिसे वह वायलिन पर
घिस रहा है।
जिसके रोने की आवाज़ पूरे वातावरण में गूंज रही है, वह एक लड़की की क़दकाठी वाली वायलिन है।
मेरे भीतर प्रायश्चित का जो संगीत बज रहा है, वह चाइकोवस्की का कन्चेर्तो है, जिसे बहुत देर से समझा जाता है।
रचयिता जब अपने संगीत को प्रायश्चित मानता है, तब लोग उसके प्रायश्चित को संगीत मानने लगते हैं।
उस शाम मैं अपने साथ उस लड़के की डायरी
लेती आई थी, जिसमें मेरे नाम से कुछ नहीं लिखा गया था। उसमें संगीत के
नोट्स थे, कुछ अधूरे वाक्य थे और एक लड़की का चित्र बनाने की नौसिखिया
कोशिशें थीं। उसके एक पेज पर लिखा हुआ था:
मैं तुम्हारे भीतर उस संगीत की तरह
बजते रहना चाहता हूं, जिसके लिए किसी शब्द की ज़रूरत नहीं होती। शब्द किसी
भी प्रेम की आत्मा में लगे हुए घुन हैं। हम शब्दों को याद करते हैं और
प्रेम को भूल जाते हैं। तुम मुझे एक निर्मम धुन की तरह महसूस करना। यह
संगीत को समझ पाने की तुम्हारी क्षमता की परीक्षा है और हां, प्रेम को समझ
पाने की भी।
सुनो, तुमने ऐसा ही चाहा था न?
मुझे नहीं पता, कभी भी नहीं पता होता, मैंने क्या चाहा था।
मैं क्षमता की परीक्षा में असफल हुई थी।
जिस भाषा की मांग मैंने की थी, उस लड़के ने उसी भाषा में प्रेम दिया था,
लेकिन बैबल की मीनार फिर अधूरी रह गई।
मौन की भाषा का प्रस्ताव करने के बाद, मैं ख़ुद उस भाषा को भूल गई।
वह मेरी आंख के सरोवर का नीलकमल है।
वह लड़का मेरे गले में रुंधता है।
किसी-किसी रोज़ मुझे अपना कंठ नीला लगता है।