बुधवार, 22 अगस्त 2012


भगवान श्रीराम की तपस्थली "देवप्रयाग"

भगवान श्रीराम की तपस्थली "देवप्रयाग"
ऋषिकेश से ७१ किमी की दूरी पर स्थित उत्तराखण्ड के पांच प्रयागों में से एक देवप्रयाग प्रमुख प्रयाग है । यहीं पर अलकनन्दा और भागीरथी का संगंम होता है और यहीं से मोक्षदायिनी का नाम गंगा पड़ता है । 
केदारखण्ड पुराण के अनुसार देवप्रयाग का अत्यधिक महत्व माना गया है । देवप्रयाग में प्रभु राम सीता और लक्ष्मण के साथ निवास करते थे । 

देवप्रयाग के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा कही जाती है कि यहां पर देवशर्मा नामक एक ब्राहमण ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने उनको दर्शन दिया तथा देवशर्मा से इच्छित वर मांगने को कहा, देवशर्मा ने प्रभु विष्णु से कहा कि "हे प्रभु मेरी हार्दिक इच्छा है कि आप सदा इसी स्थान पर निवास करें" । देवशर्मा की इच्छा सुनकर भगवान विष्णु बड़े प्रसन्न हुए और  देवशर्मा से बोले "हे श्रेष्ट ब्राहमण मैं त्रेतायुग में रावण कुंभकरण आदि दैत्यों का वध करने हेतु अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लूगां, अपने प्रयोजन को पूर्ण व अयोध्या में कुछ समय राज्य करने के उपरान्त मैं इसी क्षेत्र मे आकर तपस्या करूंगा, उस समय तुमको मेरे दर्शन प्राप्त होगें और मैं निरन्तर यही निवास करूंगा" । ऐसा कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु राम के रुप में देवप्रयाग आये थे ।

इसी देवशर्मा के नाम के कारण ही यहां का नाम देवप्रयाग पड़ा इससे पहले इस क्षेत्र को सुदर्शन क्षेत्र कह जाता था । ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावणवध के उपरान्त, क्योंकि रावण राक्षस होने के साथ साथ ब्राहमण भी था, ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने हेतु कई वर्षों तक यहां तपस्या की थी कहा जात है कि भगवान श्रीराम के पैरों के निशान आज भी गंगा किनारे एक शिला पर अकिंत हैं ।

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