वियोग रूपी दुःख
बहु रोग वियोगन्हि लोग हए । भवदंघ्रि निरादर के फल ए ॥
भव सिन्धु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह के पद पंकज प्रीति नहीं ॥
अवलंब भवन्त कथा जिन्ह के । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ॥
भगवान शिव अपने परम आराध्य भगवान श्री रामचन्द्र जी की स्तुति करते हुए कह रहे हैं कि....
इस संसार में बहुत से लोग रोगों तथा वियोग रुपी दुःखों से त्रस्त हैं, मनुष्य जीवन के यह सभी कष्ट तो....
हे प्रभु ! आप के श्रीचरणों के निरादर का ही फल है । जो लोग भी आपके चरण
कमलों से प्रेम नहीं करते, वे ही इस अथाह भव सागर में पड़े हुए हैं ।
हे करुणानिधान ! जिन लोगों को आपके श्रीचरणों में प्रेम नहीं वे नित्य
हमेशा ही, अत्यन्त दीन, मलीन, उदास एवं दुखी रहते हैं तथा जिन लोगों को
आपकी लीला कथा का आधार है व एक मात्र आपका ही आश्रय है.... ऎसे उन लोगों
को, प्रभु के प्यारे संत और भगवान सदा ही प्रिय लगते हैं ।
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