बुधवार, 10 जुलाई 2013

तबाही में बचा सिर्फ केदारनाथ मंदिर, जानिए इसकी हजारों साल पुरानी बातें...

उत्तराखंड में आए जल प्रलय से एक ओर जहां पूरा केदारनाथ धाम तबाह हो चुका है, वहीं दूसरी ओर उस क्षेत्र में सिर्फ केदारनाथ मंदिर ही अभी भी दिखाई दे रहा है। मंदिर की इमारत ने भीषण जल प्रलय का सामना मजबूती से किया है और मरम्मत कार्य के बाद पुन: मंदिर की गरिमा लौट आएगी।
यह मंदिर हजारों साल पुराना है, लेकिन आज भी ये मजबूती की एक मिसाल है। केदारनाथ मंदिर की इमारत का निर्माण इतने अच्छे ढंग से किया गया था कि इतनी भयंकर आपदा में मंदिर का ऐतिहासिक हिस्सा बचा रह गया, जबकि आधुनिक समय में हुए निर्माण बाढ़ के साथ बह गए।
यहां देखिए केदारनाथ के शानदार फोटो और जानिए केदारनाथ मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें, जो आज भी काफी लोगों के लिए अनजानी हैं...

इस शिवलिंग के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है। अर्थात् यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है। मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडव वंश के राजा जनमेजय ने करवाया था। आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। आदि गुरु ने ही चार प्रमुख धामों में केदारनाथ को भी एक धाम घोषित किया।
हिंदू धर्म में केदारनाथ धाम की बड़ी महिमा बताई गई है। उत्तराखंड में ही बद्रीनाथ धाम भी स्थित है। दोनों ही धाम पापों का नाश करने वाले और अक्षय पुण्य प्रदान करने वाले बताए गए हैं।
जो भी व्यक्ति इनके दर्शन कर लेता है, वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। ऐसे लोगों की आत्मा देह त्याग के बाद शिवलोक और विष्णुलोक में निवास करती है। बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम, दोनों के दर्शन से ही तीर्थयात्रा पूर्ण मानी जाती है। किसी एक धाम के दर्शन मात्र से पूर्ण पुण्य प्राप्त नहीं हो पाता है।
 
केदारनाथ धाम का मंदिर कितना पुराना है, इस संबंध में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडव वंश के राजा जनमेजय द्वारा करवाया गया था। इस बात से स्पष्ट है कि मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर का जीर्णोधार करवाया गया। आदि गुरु शंकराचार्य से पूर्व भी इस मंदिर में शिवजी के दर्शन लिए भक्त जाते रहे होंगे, ऐसा माना जाता है।
केदारनाथ मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारो ओर परिक्रमा करने का मार्ग है। मंदिर के परिसर में शिवजी के वाहन नन्दी विराजित हैं।
यहां शिवजी के पूजन की विशेष विधि काफी प्राचीन है। प्रात:काल में शिवलिंग को प्राकृतिक रूप से स्नान कराया जाता है। घी का लेपन किया जाता है। इसके बाद धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ भगवान की आरती की जाती है। शाम के समय भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
केदारनाथ धाम में स्थित पंच केदार के संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा पांडवों से जुड़ी हुई है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध में पांचों पांडवों ने अपने भाइयों का वध करके विजय प्राप्त की। भाइयों के वध से पांचों पांडव भातृहत्या के पाप के भागी हो गए थे। इस पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे।
भातृहत्या पाप से मुक्ति के लिए पांडव काशी गए और शिवजी का दर्शन करना चाहा, लेकिन भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन नहीं दिए। तब शिवजी के दर्शन प्राप्त करने के लिए पांडव शिव के धाम हिमालय पहुंच गए। जब पांडव हिमालय के केदार क्षेत्र में पहुंच गए, तब शिवजी वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए।
महादेव पांडवों से रुष्ट थे, क्योंकि उन्होंने अपने भाइयों का वध किया था। इसी वजह से वे पांडवों को दर्शन नहीं दे रहे थे। जब पांडव केदार क्षेत्र में आ गए, तब शिवजी ने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं में शामिल हो गए।
जब पांडवों को शिवजी केदार क्षेत्र में भी दिखाई नहीं दिए, तब वहां स्थित पशुओं को देखकर उन्हें कुछ संदेह हुआ। संदेह को दूर करने के लिए भीम ने अपना शरीर भीमकाय बना लिया। अब भीम ने दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। ऐसे में सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से गुजरने लगे। भोलेनाथ भीम के पैरों के नीचे से निकलना नहीं चाहते थे। जब भीम ने देखा एक बैल पैरों के नीचे से नहीं निकल रहा है, तब वे उस बैल पर झपट गए। भीम के झपटते ही बैल के रूप में शिवजी अंतर्ध्यान होने लगे। तभी भीम ने बैल की पीठ पर पिंडी के समान उठे हुए भाग को पकड़ लिया।
अब महादेव पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प से प्रसन्न हो गए और उनके सामने प्रकट हो गए। शिवजी के दर्शन मात्र से ही पांडवों के सभी पाप नष्ट हो गए। तभी से इस स्थान पर पिंडी के रूप में शिवजी पूजे जाने लगे।
मान्यताओं के अनुसार, जब शिवजी बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए थे तो उनका धड़ काठमांडू में प्रकट हुआ। वहां अब पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है।
शिवजी की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इन चारो स्थानों के साथ ही केदारनाथ को पंचकेदार नाम से पुकारा जाता है।
केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने वाले आदिगुरु शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में इसी क्षेत्र में समाधि ली थी। आदिगुरु का समाधि स्थल मंदिर के पास ही स्थित है। आदिगुरु शंकराचार्य ने ही चारो धाम, बारह ज्योतिर्लिंग और 51 शक्तिपीठों को खोजा। उन्होंने हिंदू धर्म को संगठित करने के लिए संपूर्ण भारत में भ्रमण किया था।
आदिगुरु ने भारत की यात्रा का अंतिम पड़ाव केदारनाथ में डाला। हिंदू धर्म और मानवता की रक्षा के लिए आदिगुरु ने चार मठों की स्थापना की।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शिवपुराण की कोटिरुद्र संहिता के बताया गया है कि किस प्रकार केदारनाथ धाम की स्थापना हुई है। बदरीवन में विष्णु के अवतार नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का नित्य पूजन करते थे। उनके पूजन से प्रसन्न होकर भगवान शंकर वहां प्रकट हुए तथा वरदान मांगने को कहा। तब जगत के कल्याण के लिए नर-नारायण ने शंकर को वहीं पर स्थापित होने का वरदान मांगा। शिव प्रसन्न हुए तथा कहा कि यह क्षेत्र आज से केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा।
भारत के चार धामों में से एक केदारनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।
यह मंदिर शिवजी का मंदिर है और भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर हिमालय की गोद में स्थित है। इसी वजह से अधिकांश समय यहां का वातावरण प्रतिकूल रहता है। इसी वजह से केदारनाथ धाम दर्शनार्थियों के लिए हमेशा खुला नहीं रहता है। मंदिर  अप्रैल से नवंबर तक दर्शन के लिए खोला जाता है।
महादेव ने कहा कि जो भी भक्त केदारनाथ के साथ ही नर-नारायण के दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होगा और अक्षय पुण्य प्राप्त करेगा। ऐसे भक्त मृत्यु के बाद शिवलोक प्राप्त करेंगे। इसके बाद शिवजी प्रसन्न होकर ज्योति स्वरूप में वहां स्थित लिंग में समाविष्ट हो गए। देश में बारह ज्योर्तिलिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का क्रम पांचवां है। कई ऋषियों एवं योगियों ने यहां भगवान शिव की अराधना की है और मनचाहे वरदान भी प्राप्त किए हैं।
केदारनाथ में शिवजी को कड़ा चढ़ाने का विशेष महत्व माना जाता है। जो भी व्यक्ति वहां कड़ा चढ़ाकर शिव सहित उस कड़े के एवं नर-नारायण पर्वत के दर्शन करता है, वह फिर जन्म और मृत्यु के चक्र में नहीं फंसता है। ऐसे भक्त को भवसागर से मुक्ति प्राप्ति होती है।
शिवपुराण के कोटिरुद्र संहिता में वर्णन  है कि-
केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:। तेपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्या विचारणा।।
शिवपुराण के अनुसार केदारनाथ के मार्ग में या उस क्षेत्र में जो भी भक्त मृत्यु को प्राप्त होगा, वह भी भवसागर से मुक्ति प्राप्त करेगा।
केदारनाथ क्षेत्र में पंहुचकर उनके पूजन के पश्चात वहां का जल पी लेने से भी मनुष्य मुक्ति को प्राप्त करता है। वहां के जल का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है।
हिमालय में बसा केदारनाथ उत्तरांचल राज्य का एक कस्बा है। यह रुद्रप्रयाग की एक नगर पंचायत है। यह हिंदू धर्म के लिए एक पवित्र स्थान है। केदारनाथ शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ ही चार धामों में भी शामिल है। श्रीकेदारनाथ मंदिर 3,593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर मंदिर को कैसे बनाया गया, यह आज भी एक रहस्य के समान है।
इस धाम के संबंध में शास्त्रों के अनुसार कई कथाएं प्रचलित हैं। एक अन्य कथा के अनुसार सतयुग में शासन करने वाले एक राजा हुए थे, उनका नाम था केदार। राजा केदार के नाम पर भी इस स्थान को केदार पुकारा जाने लगा।
राजा केदार ने सातों महाद्वीपों पर शासन किया था। वे धर्म के मार्ग पर चलने वाले और तेजस्वी राजा थे।
उनकी एक पुत्री थी वृंदा, जो देवी लक्ष्मी की आंशिक अवतार मानी जाती हैं। वृंदा ने 60,000 वर्षों तक तपस्या की थी। वृंदा के नाम पर ही इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है।
केदारनाथ मंदिर काफी प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत में चार धाम स्थापित करने के यहीं समाधि ली थी। तब शंकराचार्य की आयु मात्र 32 वर्ष थी। आदिगुरु ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
केदारनाथ क्षेत्र में एक झील है। इसमें अधिकांश समय बर्फ तैरती रहती है। इस झील का संबंध महाभारत काल से है। ऐसा माना जाता है कि इसी झील से पांडव पुत्र युद्धिष्ठिर स्वर्ग की ओर गए थे।
केदारनाथ धाम मंदिर से करीब छह किलोमीटर दूर एक पर्वत स्थित है। इस पर्वत का नाम है चौखंबा पर्वत। यहां वासुकी नाम का तालब है, जहां ब्रह्म कमल काफी होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्म कमल के दर्शन करने पर पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इसी वजह से काफी लोग यहां ब्रह्म कमल देखने आते हैं।
यहां गौरी कुंड, सोन प्रयाग, त्रिजुगीनारायण, गुप्तकाशी, उखीमठ, अगस्तयमुनि, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थल हैं।

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