शनिवार, 10 अगस्त 2013

ब्रम्हाण्ड की आयु


श्री मदभागवतम् में ब्रह्माण्ड उत्पति का जो वर्णन मिलता है वो इस प्रकार है :
ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व भगवान विष्णु ही केवल विधमान थे और शयनाधीन थे. विष्णु जी की नाभि से एक कमल अंकुरित हुआ । उसी कमल में ब्रह्मा विराजमान थे।

While Vishnu is asleep, a lotus sprouts of his navel (note that navel is symbolised as the root of creation!). Inside this lotus, Brahma resides. Brahma represents the universe which we all live in, and it is this Brahma who creates life forms. 




यहाँ नाभि से कमल अंकुरित होने का अभिप्राय एक बिंदु से ब्रह्माण्ड उत्पति है. एक बिंदु से ब्रह्माण्ड का उद्गम हुआ इसी को दर्शाने के लिए यहाँ कमल का अलंकर प्रयुक्त किया गया है ।
कमल में विराजमान ब्रह्मा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करते है अर्थात ब्रह्मा ही ब्रह्माण्ड है इसी कारण इसे ब्रह्म+अण्ड (Cosmic Egg) कहा गया है .
बिल्कुल इसी प्रकार के थ्योरी आधुनिक विज्ञानं की है जिसे बिगबेंग की संज्ञा दी गयी ।  इसमे बताया गया है की  ब्रह्माण्ड उत्पति एक बिंदु (शुन्य) से हुई .

Brahma represents our universe which has birth and death, a big bang and a big crunch from a navel singularity. Vishnu represents the eternity that lies beyond our universe which has no birth or death and that which is eternal! Many such universes like ours exist in Vishnu.

ब्रह्माण्ड उत्पति से पूर्व जो शक्ति विद्यमान थी वो विष्णु है, जिस ब्रह्माण्ड में अभी हम है ये अस्थायी है, इसका आरंभ  व् अंत  सतत रूप से होता रहता है। किन्तु ब्रह्माण्ड अंत के पश्चात पुनः सब पदार्थ व् अपदार्थ उसी शक्ति में विलीन हो जाते है जो श्री विष्णु का स्वरुप है।
शास्त्रों में ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष बताई गयी है ब्रह्मा की आयु अर्थात  ब्रह्माण्ड की आयु.
जैसा की हम ऊपर कह चुके है की चतुर्मुखी ब्रह्मा , ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करते है . चारों वेदों की उत्पति इन्ही से हुई है अतः चोरों वेदों के ज्ञाता होने के कारन ही ये चतुर्मुखी है .


इसी प्रकार की व्याख्या ऋग्वेद के १ ० वें मंडल के  १ २ ९ वें सूक्त (नासदीय सूक्त) में मिलती है ! निम्न विडियो देखें :


 इन 100 ब्रह्म वर्षों के पश्चात ब्रह्माण्ड का अंत एक महासंकुचन (big crunch)  के साथ होता है . वेदों का कहना है की अब तक कई ब्रह्मा आये और गये अर्थात जिस ब्रह्माण्ड में हम जी रहे है ये न ही प्रथम है और न ही अंतिम .

Vedas say that thousands of brahmas have passed away!  In other words, this is not the first time universe has been created.

अब हम ये देखते है की ब्रह्मा का 1 वर्ष हमारे लिए कितना बड़ा है .

ब्रह्मा का 1 वर्ष :
ब्रह्मा के प्रत्येक वर्ष में 360 दिन होते है।

ब्रह्मा का 1 दिन :
ब्रह्मा के 1 दिन में दिन +रात  होते है . जिसे एक कल्प भी कहा जाता है ,
A kalpa is made up of brahma’s one day and one night.
ब्रह्मा केवल दिन में ही स्रष्टि रचते है और रात्रि में उनके निद्राधीन होते ही ब्रह्माण्ड का अंत उंसी प्रकार होता है जैसे कोई सुन्दर स्वप्न टुटा हो .
हम, मानव दिन में कार्य करते है तथा रात्रि को नींद में स्वप्न देखते है और हमारे स्वप्न की एक अलग ही दुनिया होती है जिसे स्वप्न आकाश कहा जाता है। जो प्रतेक व्यक्ति का भिन्न होता है। किन्तु ब्रह्मा जी का हिसाब किताब मनुष्यों से उल्टा है, वे दिन समय में जो स्वप्न देकते है वह उनका स्वप्न आकाश है जो ब्रह्माण्ड है और अनंत है जिसमे सारा ब्रहमांड तथा चराचर जिव, हम मनुष्य आदि जीते है।
इसी करण हमारे यहाँ कहा गया है :- "ब्रह्म सत्य, जगह मिथ्या"

जगह को  मिथ्या इसी लिए कहा गया है क्यू की ये तो ईश्वर का एक सुन्दर स्वप्न मात्र है। और ब्रह्म सत्य इसलिए क्यू की जगत के अंत के पश्चात एक ईश्वर ही शेष रहता है।

तो कुल मिला कर बात यह है की ब्रह्मा दिन में जो स्वप्न देखते है, हम उसी में जीते है और रात्रि में निद्राधीन  होते ही ब्रह्मा (ब्रह्माण्ड) सुप्त अवस्था में चले जाते है . और अगले दिन पुनः उनका स्वप्न आरंभ होता है और ब्रहमांड उपस्थित हो जाता है .
अब देखना ये है की ब्रह्मा का एक दिन कितना बड़ा होता है ??

ब्रह्मा के एक दिन (एक कल्प) में 28 मन्वन्तर होते है . अर्थात दिन समय में 14  मन्वन्तर  और 14 ही रात्रि में .

ब्रह्मा का 1 मन्वन्तर :
ब्रह्मा के 1 मन्वन्तर  में 71 महायुग होते है ।

ब्रह्मा का १ महायुग :
ब्रह्मा के 1 महायुग में 4  युग होते है । क्रमश : सत्य(क्रेता) , त्रेता , द्वापर , कलि ।

सत्य युग महायुग का 40 % भाग होता है 
त्रेता युग  महायुग का 30 % भाग होता है 
द्वापर युग महायुग का 20 % भाग होता है 
कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है 
यदि उपरोक्त वर्णन आपको पूर्णतया समझ आ गया है तो अभी हम जिस समय में जी रहे है वो भी समझ आ जायेगा । 
अभी हम  
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
 में है ।
ब्रह्मा से सम्बंधित डाटा एक साथ लिख लेते है :
ब्रह्मा की आयु : 100 वर्ष
1 वर्ष = 360 दिन
1 दिन = 1 कल्प =28 मन्वन्तर
1 मन्वन्तर = 71 महायुग
1 महायुग = 4 युग


गणना :

कलियुग की आयु जो बताई गई है वो है : 4,32,000 साल । 
अब तक हमने केवल थ्योरी देखि पर अब हमारे पास एक आंकड़ा " 4,32,000 साल " आ चूका है अतः अब ब्रह्मा के 100 वर्ष हम मनुष्यों के लिए कितने है ये ज्ञात कर सकते है . अब गणना निचे से ऊपर की और चलेगी और थोड़ी कठिन होगी कृपया ध्यान से समझें । 
कलि युग =  4,32,000 साल 
कलियुग महायुग का 10 % है अतः 1 महायुग कितना हुआ ?
1 महायुग का 10 % =  4,32,000
 1 महायुग कुल =  4,32,000* (100 /10 )=  4,320,000 साल । 
1 महायुग = 4,320,000 साल हमारे पास आ चूका है अब आगे की गणनाओं में ईकाई महायुग ही लेंगे । 
ब्रह्मा के 1 मन्वन्तर में 71 महायुग होते है । 
1 मन्वन्तर = 71 महायुग 
ब्रह्मा के 1 पूर्ण दिन में 28 मन्वन्तर होते है, किन्तु हमें केवल दिन अर्थात 14 मन्वन्तर ही लेने है क्यू की रात्रि अर्थात महाविनाश । 
1 दिन = 14 *71 = 994 महायुग । 
अब यहाँ एक नियतांक (Constant) और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । अर्थात किसी मन्वन्तर के प्रारंभ होने से पूर्व तथा पश्चात ४ युगों का अंतराल ।
ब्रह्मा के दिन के 14 मन्वन्तरों में अंतराल हुए = 15
प्रत्येक  अंतराल = 4 युग 
तो 14 मन्वन्तरों में कुल अंतराल = 15 *4 = 60 युग 
60 युग = 60 /10 = 6 महायुग   {चूँकि कलि युग महायुग का 10% भाग होता है }
1 दिन = 994 +6 = 1000 महायुग । 
1000* 4,320,000= 4 ,320 ,000 ,000 साल ।   {१ महायुग =4,320,000}

ये सिर्फ ब्रह्मा के दिन का मान है अब इतना का इतना रात्रि के लिए और जोड़ने पर :
ब्रह्मा 1 एक पूर्ण दिन (दिन+रात)
 = 4 ,320 ,000 ,000 +4 ,320 ,000 ,000  =8 ,640 ,000 ,000  साल (8 अरब 64 करोड़)
ये केवल ब्रह्मा का 1 दिन है । 
ब्रह्मा का 1 वर्ष = 360 दिन 
ब्रह्मा के 100 वर्ष = 100*360 * 8 ,640 ,000 ,000
जैसा की हम ऊपर देख चुके है :
हम अभी 
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
में है । 
जितना समय ब्रह्मा के जन्म का हो चूका है उतनी ही इस ब्रह्माण्ड की आयु हो चुकी है । 
अर्थात
 ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28वे महायुग के 3 (तीसरे) युग (दवापरयुग) तक का समय बीत चूका है । और अभी चोथा (कलि) चल रहा है ।
कलि के लगभग 5000 वर्ष भी बित चुके है ।  इन 5000 वर्षों को छोड़ भी दें तो कोई खास फर्क नही पड़ेगा ।

ये ब्रह्माण्ड कितना पुराना है ? :
28 वे महायुग के तिन (सत्य, त्रेता, दवापर) बित  चुके है!
1 महायुग = 4,320,000
कलि महायुग का 10 % होता है =4,320,000*(10 /100 ) =4,32,000
कलि अभी चल रहा है इसलिए इसे महायुग मेसे घटा देते है =
 4,320,000-4,32,000= 3888000 वर्ष,  28 वे महायुग के बीत चुके है । 
बिता हुआ समय = 27 महायुग + 3888000  वर्ष
उपरोक्त समय 7 वे मन्वन्तर का है ।  इससे पहले 6 मन्वन्तर पुरे बीत चुके है । 
6 मन्वन्तर = 426 महायुग  {चूँकि 1 मन्वन्तर = 71 महायुग }
बिता हुआ समय = 426  महायुग  +27 महायुग + 3888000   वर्ष। 

ध्यान रहे हमें नियतांक और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । 
6 मन्वन्तरों में कुल अन्तराल = 6 * 4 = 24  युग 
=2.4  महायुग  {चूँकि कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है}
बिता हुआ समय = 2.4 महायुग+426 महायुग  +27 महायुग + 3888000 वर्ष। 
अब हम ब्रह्मा के 51 वे वर्ष के 1 दिन तक की गणना कर चुके है ।  इससे पीछे नही जाना क्यू की इससे पीछे 
ब्रह्मा के 50 वे वर्ष का 360 वां दिन की रात्रि आ जायेगी , रात्रि मतलब विनाश  । और उसे भी पूर्व जायेंगे तो 
ब्रह्मा के 50 वे वर्ष का 360 वां दिन आ जायेगा, वो दिन इस दिन से भिन्न है अर्थात ब्रह्मा का वो स्वप्न इस स्वप्न से भिन्न है अर्थात वो ब्रह्माण्ड इस ब्रह्माण्ड का भूतपूर्व है । 
इस ब्रह्माण्ड की कुल आयु = 2.4 महायुग+426 महायुग  +27 महायुग + 3888000  वर्ष। 
= 455.4 महायुग+ 3888000  वर्ष।
= 455.4  * 4,320,000 +   3888000   वर्ष             {चूँकि 1 महायुग =4,320,000 }
=1972944000 वर्ष  
इस कलि के 5000 वर्ष बित  चुके है यदि उन्हें भी जोड़े तो ब्रह्माण्ड की कुल आयु =
1972944000  वर्ष   + 5000
=1972949000 वर्ष   !

इस ब्रह्माण्ड का अंत कब  ? :
एक बार पुनः 
हम अभी 
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
में है । 
ब्रह्मा के केवल इस दिन समय तक ये ब्रह्माण्ड रहेगा । 
कलियुग के वर्ष = 4,32,000 वर्ष 
इस कलियुग के लगभग 5000 वर्ष बीत चुके है, इसे अंत में घटाएंगे । 
इसके पश्चात 29  वे महायुग का 1 (प्रथम) युग सत्ययुग प्रारंभ होगा । 
ब्रह्मा के  7 वे मन्वन्तर के पूर्ण होने में शेष महायुग :
71 - 28 = 43 महायुग + इस कलियुग के 4,32,000 वर्ष 
=43 महायुग+4,32,000 वर्ष 
इस समय के पश्चात 8 वां मन्वन्तर प्रारंभ होगा । 
ब्रह्मा के इस दिन के शेष मन्वन्तर = 14-7  =7  मन्वन्तर 
7  मन्वन्तर = 71*7  महायुग {चूँकि 1 मन्वन्तर = 71 महायुग }
ध्यान रहे हमें नियतांक और शामिल करना होगा । वेदों के अनुसार ब्रह्मा के प्रत्येक मन्वन्तर के मध्य 4 युगों का समय अंतराल होता है । 
7  मन्वन्तरों में कुल अन्तराल = 7*4 = 28 युग 
=2.8 महायुग  {चूँकि कलि युग महायुग का 10 % भाग होता है}
ब्रह्मा के इस दिन के ख़तम होने में शेष समय =
 2.8 महायुग+71*7 महायुग+43 महायुग+4,32,000 वर्ष 
=471.8 महायुग+4,32,000 वर्ष 
=471.8  *4,320,000 +4,32,000 वर्ष        {चूँकि १ महायुग =4,320,000 }
=2038607000 वर्ष      

इस कलियुग के लगभग 5000 वर्ष बीत चुके है, इसे घटाने पर :
 2038607000 -5000 =2038602000 वर्ष      
इसके पश्चात हमें और आगे नही जाना है क्यू की इसके आगे "ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन की रात्रि आयेगी । रात्रि अर्थात महाविनाश । और उसके आगे ब्रह्मा के 51वे वर्ष का 2 (दूसरा) दिन प्रारंभ होगा । वो स्वप्न इस स्वप्न से भिन्न होगा अर्थात वो ब्रह्माण्ड इस ब्रह्माण्ड के पश्चात आयेगा । 

इस प्रकार आप देख सकते है की ब्रह्मा के प्रत्येक दिन में एक नए स्वप्न (ब्रह्माण्ड ) का निर्माण होता है वो रात्रि में ख़तम हो जाता है ।  इस प्रकार कितने ही ब्रह्माण्ड जा चुके है और कितने ही आने वाले है !!!

यदि आपने कभी टीवी पर पोराणिक सीरियल देखें हो तो आपको स्मरण होगा ब्रह्मा जी अपनी पत्नी सरस्वती से कहते है की अभी कुछ समय पश्चात में सो जाऊंगा और उसके साथ ही स्रष्टि का अंत हो जायेगा । 
उमीद है ब्रह्मा जी के इस वाक्य का अर्थ आपको समझ आ गया होगा !
अब एक प्रशन ये भी उठता है की यदि 2038602000  वर्ष   पश्चात प्रलय होनी है तो इस कलियुग के पश्चात अर्थात 4,32,000 वर्ष पश्चात प्रलय क्यू बताई जाती है ?
मेंरे मतानुसार 4,32,000 वर्ष पश्चात प्रलय नही होगी अपितु प्रलय सामान ही एक महापरिवर्तन होगा । पुराणो  के अनुसार जैसे जैसे कलियुग प्रभावी (जवान) होगा वैसे वैसे समाज में गंदगी बढेगी । घोर कलियुग में एक भी अच्छा मनुष्य ढुंढने पर भी नही मिलेगा । गंदे काम खुल्लम खुल्ला होंगे ।  तब श्री विष्णु का अंतिम "कल्कि" अवतार होगा । कल्कि पुराण के अनुसार उनका जन्म शम्भल गाँव में होगा और पिता (एक ब्राह्मण) का नाम होगा विष्णु यशा । शम्भल गाँव शायद मध्यप्रदेश में है अथवा होगा । 
और इसके साथ ही 29 वे महायुग का सत्य युग प्रारंभ होगा । 
उपरोक्त आंकड़े आज की विज्ञानं को भी टक्कर दे रहे है । या यूँ कहा जाये की आधुनिक विज्ञानं वेदों के आगे पाणी भरती है। 
17वी - 18 वि शताब्दी के आसपास  जब अंगेजों का पाला इन तथ्यों से पड़ा तो उन्होंने इसका मजाक उड़ाया । मैक्स मुलर जैसे कीड़ों ने वेदों को बदनाम किया गलत सलत व्याख्या की । और इस मुर्ख ने मरने से पहले अपनी डायरी में ये और लिखा की मैंने अपने जीवन में कभी संस्कृत नही सीखी । :D
आज भी यही हो रहा है  संस्कृत न जानने वाले जाकिर नाइक जैसे बुद्धू  हिन्दुओं को वेदों के अर्थ बता रहे है । :D 
किन्तु आज की विज्ञानं में अनुसन्धान के पश्चात जब यही थ्योरी वैज्ञानिकों के समक्ष आयी तो वे दंग रह गये  । 
प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञानी कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक Cosmos में लिखा है :
The Hindu religion is the only one of the world’s great faiths dedicated to the idea that the Cosmos itself undergoes an immense, indeed an infinite, number of deaths and rebirths. It is the only religion in which the time scales correspond, to those of modern scientific cosmology. Its cycles run from our ordinary day and night to a day and night of Brahma, 8.64 billion years long. Longer than the age of the Earth or the Sun and about half the time since the Big Bang. And there are much longer time scales still. - Carl Sagan, Famous Astrophysicist




मेरा दावा है हिन्दू ग्रंथों के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रंथों में ऐसी थ्योरी मिलना संभव ही नही !!


                                   
ऐसे कितने ब्रह्माण्ड?:
जैसा की हम देख चुके है की न तो वर्तमान ब्रह्माण्ड प्रथम है और न ही अंतिम । 
परन्तु पुराणों में एक और रोचक तथ्य मिलता है वो ये है की एक समय में भी एक से अधिक ब्रह्माण्ड अस्तित्व में रहते है प्रत्येक के ब्रह्मा भिन्न होते है । इसलिए कहा गया है की महाविष्णु के उदर में असंख्य ब्रह्माण्ड वास करते है । इसे निम्न फोटो द्वारा समझे :
इस सागर को महाविष्णु माने और प्रत्येक बूंद के प्रतिरूप को एक ब्रह्माण्ड !

आधुनिक विज्ञानी इसे Multiverse कहते है । 
"The multiverse (or meta-universe) is the hypothetical set of multiple possible universes"




ब्रह्मलोक ब्रह्माण्ड का केंद्र है :
वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंच मण्डल क्रम वाली है। चन्द्र मंडल, पृथ्वी मंडल, सूर्य मंडल, परमेष्ठी मंडल और स्वायम्भू मंडल। ये उत्तरोत्तर मण्डल का चक्कर लगा रहे हैं।
जैसी चन्द्र प्रथ्वी के, प्रथ्वी सूर्य के , सूर्य परमेष्ठी के, परमेष्ठी स्वायम्भू के|  
चन्द्र की प्रथ्वी की एक परिक्रमा -> एक मास 
प्रथ्वी की सूर्य की एक परिक्रमा -> एक वर्ष 
सूर्य की परमेष्ठी (आकाश गंगा) की एक परिक्रमा ->एक मन्वन्तर 
परमेष्ठी (आकाश गंगा) की स्वायम्भू (ब्रह्मलोक ) की एक परिक्रमा ->एक कल्प
स्वायम्भू  मंडल ही ब्रह्मलोक  है । स्वायम्भू  का अर्थ स्वयं (भू) प्रकट होने वाला ।  यही ब्रह्माण्ड का उद्गम स्थल या केंद्र है । 


ऋषियों की अद्भुत खोज:
जैसा की हम उपर देख चुके है :
अभी हम  
"ब्रह्मा के 51वे वर्ष के 1(पहले) दिन के 7 वे मन्वन्तर के 28 वे महायुग के 4थे युग (कलियुग)"
 में है ।
संकल्प। Sankalpa
हमारे पूर्वजों ने जहां खगोलीय गति के आधार पर काल का मापन किया, वहीं काल की अनंत यात्रा और वर्तमान समय तक उसे जोड़ना तथा समाज में सर्वसामान्य व्यक्ति को इसका ध्यान रहे इस हेतु एक अद्भुत व्यवस्था भी की थी, जिसकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं जाता है। हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो- गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि करते हैं। उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है। यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है। इस दृष्टि से इस मंत्र के अर्थ पर हम ध्यान देंगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी।

संकल्प मंत्र में कहते हैं.... 
ॐ अस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राहृणां द्वितीये परार्धे
अर्थात् महाविष्णु द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में वर्तमान ब्रह्मा की आयु का द्वितीय परार्ध-वर्तमान ब्रह्मा की आयु के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं।
श्वेत वाराह कल्पे-कल्प याने ब्रह्मा के 51वें वर्ष का पहला दिन है।

वैवस्वतमन्वंतरे- ब्रह्मा के दिन में 14 मन्वंतर होते हैं उसमें सातवां मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है।

अष्टाविंशतितमे कलियुगे- एक मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होती हैं, उनमें से 28वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है।

कलियुगे प्रथमचरणे- कलियुग का प्रारंभिक समय है।

कलिसंवते या युगाब्दे- कलिसंवत् या युगाब्द वर्तमान में 5104 चल रहा है।

जम्बु द्वीपे, ब्रह्मावर्त देशे, भारत खंडे- देश प्रदेश का नाम

अमुक स्थाने - कार्य का स्थान
अमुक संवत्सरे - संवत्सर का नाम
अमुक अयने - उत्तरायन/दक्षिणायन
अमुक ऋतौ - वसंत आदि छह ऋतु हैं
अमुक मासे - चैत्र आदि 12 मास हैं
अमुक पक्षे - पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष)
अमुक तिथौ - तिथि का नाम
अमुक वासरे - दिन का नाम
अमुक समये - दिन में कौन सा समय

उपरोक्त में अमुक के स्थान पर क्रमश : नाम बोलने पड़ते है ।
जैसे अमुक स्थाने : में जिस स्थान पर अनुष्ठान किया जा रहा है उसका नाम बोल जाता है ।
उदहारण के लिए दिल्ली स्थानेग्रीष्म ऋतौ आदि  |

अमुक - व्यक्ति - अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है।

इस प्रकार जिस समय संकल्प करता है,  सृष्टि आरंभ से उस समय तक  का स्मरण सहज व्यवहार में भारतीय जीवन पद्धति में इस व्यवस्था के द्वारा आया है।




उपनिषद | The Upanishads

वही एक सत्य है - वही आत्मा है - वही सत्य तुम स्वयं हो ! तत् त्वम् असि !

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

शहीद उधम सिंह के घर की हालत देखकर आंसू आते है...

जिंदगी को बदलने में वक्त नहीं लगता पर वक्त को बदलने में जिंदगी लग जाती है

शहीद उधम सिंह के घर की हालत देखकर आंसू आते है....
कोंग्रेस की सरकार नेहरू परिवार को याद करने के लिए लाखों रुपये बहाती है, लेकिन कभी भी देश के सच्चे सपूतों को याद नहीं करती, पिछले वर्ष आर टी आई से पता चला कि सैकड़ों  करोड़ रुपये इंदिरा व राजीव जयंती के नाम पर फूंके गये थे, जबकि सच्चे क्रन्तिकारी रानी लक्ष्मी बाई से लेकर सुभाष चन्द्र बोस तक किसी को भी आजतक याद नहीं किया गया, आइये हम शहीद उधम सिंह को भारत स्वाभिमान की और से नमन व स्मरण करते है.....
शहीद उधम सिंह के घर का यह चित्र हमारी भारत स्वाभिमान की सुनाम इकाई द्वारा भाई परमिंदर जोल्ली द्वारा भेजा गया है.

 जहा आज वो लोग सत्ताओ का सुख भोग रहे है...जिन्होंने कोई कुबानी नहीं दी..........वही ऐसे वीर शहीद जिन्होंने भारत माता के अपमान का बदला लेने के लिए अपनी संकल्प की अग्नि को २० साल तक दबाये रखा और....जलियावाला कांड का बदला लिया....ऐसे  ही  पंजाब के वीर शहीद उधम सिंह को हम नमन करते है..............
   तथाकथित देशभक्त जिनके वंशज आज सत्ताओ के शीर्ष पर  में है.......उनका द्वारा लूटा हुआ धन स्विस बांको में पड़ा है, देश के ८४ करोड़ लोग भूखे मर रहे है........
  आइये आपको दिखाते है, शहीद उधम सिंह का संगरूर , सुनाम  स्थित घर , जिसको देखकर कोई यह नहीं कह सकता की यह किसी महान क्रिन्तिकारी का घर है...
  आज तक सचे क्रन्तिकारी का इस देश के गदारो ने जिन्होंने ६५न सालो तक साशन किया कोई स्मारक नहीं बनाया,,,..लेकिन यहाँ पर एक परिवार की और से ४०० से अधिक योजनाये चल रही है,,,........
शहीद उधम सिंह का स्मारक देखकर  आंसू आते है..........

आज तक नेताजी का कोई स्मारक , पंडित बिस्मिल का, चंदेर्शेखर आजाद का, राजिंदर लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह का कोई भी स्मारक नहीं है, (अगर कोई है तो वह सरकार का नहीं बल्कि देशभक्त लोगो का बनवाया हुआ है).............
नई दिल्ली। भारत के महान क्रांतिकारियों में ऊधम सिंह का विशेष स्थान है। उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी माइकल ओडायर को गोली से उड़ा दिया था।

पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसंबर 1899 में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी जिसे उन्होंने गोरों की मांद में घुसकर 21 साल बाद पूरा कर दिखाया। पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांति के साथ सभा कर रहे सैकड़ों भारतीयों को अंधाधुंध फायरिंग करा मौत के घाट उतार दिया था।
क्रांतिकारियों पर कई पुस्तकें लिख चुके जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल के अनुसार जलियांवाला बाग की इस घटना ने ऊधम सिंह के मन पर गहरा असर डाला था और इसीलिए उन्होंने इसका बदला लेने की ठान ली थी। ऊधम सिंह अनाथ थे और अनाथालय में रहते थे, लेकिन फिर भी जीवन की प्रतिकूलताएं उनके इरादों से उन्हें डिगा नहीं पाई। उन्होंने 1919 में अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जंग-ए-आजादी के मैदान में कूद पड़े।

जाने माने नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में लोगों ने जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी थी, जिसमें ऊधम सिंह पानी पिलाने का काम कर रहे थे। पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडायर किसी कीमत पर इस सभा को नहीं होने देना चाहता था और उसकी सहमति से ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर ने जलियांवाला बाग को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग करा दी। अचानक हुई गोलीबारी से बाग में भगदड़ मच गई। बहुत से लोग जहां गोलियों से मारे गए, वहीं बहुतों की जान भगदड़ ने ले ली। जान बचाने की कोशिश में बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका के अनुसार 120 शव तो कुएं से ही बरामद हुए।

सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोगों की इस घटना में जान चली गई। स्वामी श्रद्धानंद के मुताबिक मृतकों की संख्या 1500 से अधिक थी। अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से ज्यादा थी। ऊधम सिंह के मन पर इस घटना ने इतना गहरा प्रभाव डाला था कि उन्होंने बाग की मिट्टी हाथ में लेकर ओडायर को मारने की सौगंध खाई थी। अपनी इसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के मकसद से वह 1934 में लंदन पहुंच गए और सही वक्त का इंतजार करने लगे।

ऊधम को जिस वक्त का इंतजार था वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला जब माइकल ओडायर लंदन के कॉक्सटन हाल में एक सेमिनार में शामिल होने गया। भारत के इस सपूत ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार के रूप में काटा और उसमें अपनी रिवॉल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। चमन लाल के अनुसार मोर्चा संभालकर बैठे ऊधम सिंह ने सभा के अंत में ओडायर की ओर गोलियां दागनी शुरू कर दीं। सैकड़ों भारतीयों के कत्ल के गुनाहगार इस गोरे को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया।
अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद इस महान क्रांतिकारी ने समर्पण कर दिया। उन पर मुकदमा चला और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में यह वीर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया।



जी हाँ, यही टुटा फूटा स्मारक है, हमारे देश अपनी जान देने वाले का,इसके अतिरिक्त कहीं और  कही कोई स्मारक नहीं



यही पुश्तैनी  स्थान उनके घर होता था.............


             शहीद उधम सिंह के माता पिता उनको अनाथ छोड़कर बचपन में चल बसे थे, जब वह ८ वर्ष के थे,,,,कुछ समय बाद २-३ साल बाद ही उनके बड़े भाई भी उनको छोड़कर चले गए (देहांत हो गया)

     कुछ लोग अपने बलपर ही इस कार्य को कर रहे है.....उनकी यादो को जिन्दा रखे हुए

सोमवार, 29 जुलाई 2013

माओवादी-नक्सलवादी आन्दोलन

जिन युवाओं को भारत में माओवादी-नक्सलवादी आन्दोलन का इतिहास ध्यान में नहीं है उनके लिए यह संक्षिप्त नोट लिख रहा हूँ। यह उनको परिस्थितियों के बारे में सोचने-समझने तथा एक बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगा। 

1962 में जब भारत पर चीन ने आक्रमण किया तो पूरे बंगाल में वामपंथियों (communists) ने चीन के चेयरमैन माओ के स्वागत के बड़े-बड़े होर्डिंग-बैनर लगा दिए। वो चाहते थे की भारत पर चीन का साम्राज्य हो जाए जिससे की भारत एक कम्युनिस्ट देश बन जाए और यहाँ उनका शासन हो जाए।

वर्तमान माओवादी-नक्सलवादी आन्दोलन के नेताओं को चीन द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI उनको धन व हथियार उपलब्ध कराती है। नीचे चित्र देखें >>

2009 में भारत के 10 राज्यों के करीब 180 जिले नक्सलवादी हिंसा प्रभावित थे। 2011 में 9 राज्यों के करीब 83 जिलों में ये संख्या सिमट कर रह गयी। छत्तीसगढ़ राज्य आज नक्सलवादी हिंसा का केंद्र है। नीचे मानचित्र देखें >>

1989-2012 के 23 वर्षों के बीच इस रक्त-रंजित तथाकथित "आन्दोलन" के कारण आम नागरिकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सिपाहियों और नक्सलवादियों सहित 11,700 से अधिक लोग मारे गए हैं।

आज की स्थिति यह है की इस "आन्दोलन" की आड़ में षड्यंत्रपूर्वक भारत को प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर किया जा रहा है।

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

'पैलेस ऑन व्हील्स'

पैलेस ऑन व्हील्स
दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लग्जरी रेलगाड़ियों में से एक राजस्थान की 'पैलेस ऑन व्हील्स' बुधवार को नई दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन से इस वर्ष के पर्यटन सत्र में सप्ताह भर के सफर पर अपने अंतिम फेरे के लिए रवाना हुई. इस शाही रेलगाड़ी में कुल 47 पर्यटक यात्रा कर रहे हैं.
'पैलेस ऑन व्हील्स' के महाप्रबंधक प्रदीप बोहरा ने बताया कि इस पर्यटन सत्र में पैलेस ऑन व्हील्स का सफर काफी उत्साहजनक रहा है. इस सत्र में शाही गाड़ी ने कुल 34 फेरे लगाए और 3,080 पर्यटकों ने यात्रा की. इस वर्ष गत वर्ष की तुलना में 423 पर्यटक अधिक हैं.
उल्लेखनीय है कि शाही रेलगाड़ी पेलेस ऑन व्हील्स में सफर करने के लिए प्रति व्यक्ति प्रति रात्रि किराया 670 अमेरिकी डॉलर है. दो व्यक्तियों के एक साथ यात्रा करने पर यह किराया 500 डॉलर प्रति यात्री और तीन व्यक्तियों के एक साथ यात्रा करने पर 450 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति रात्रि किराया निर्धारित है.
राजस्थान पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक प्रमोद शर्मा ने बताया कि सात दिन के सफर में यह शाही रेलगाड़ी पर्यटकों को जयपुर, सवाईमाधोपुर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुर एवं आगरा की यात्रा करवाती है. यात्रियों की सुविधा के लिए रॉयल्स स्पा, इंटरनेट, सेटेलाइट टी.वी., पत्र-पत्रिकाएं जैसी सुविधाएं मौजूद हैं.
वातानुकूलित शाही रेलगाड़ी में 20 सैलून हैं, जिनमें 14 सैलून यात्रियों के लिए, दो शानदार रेस्टारेंट 'महाराजा' एवं 'महारानी', एक बार रूम, रेस्त्रां लॉज और सभी यात्री सैलून राजसी सुख-सुविधाओं से युक्त हैं.

वियोग रूपी दुःख

बहु रोग वियोगन्हि लोग हए । भवदंघ्रि निरादर के फल ए ॥
भव सिन्धु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह के पद पंकज प्रीति नहीं ॥
अवलंब भवन्त कथा जिन्ह के । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह के ॥

भगवान शिव अपने परम आराध्य भगवान श्री रामचन्द्र जी की स्तुति करते हुए कह रहे हैं कि....

इस संसार में बहुत से लोग रोगों तथा वियोग रुपी दुःखों से त्रस्त हैं, मनुष्य जीवन के यह सभी कष्ट तो....
हे प्रभु ! आप के श्रीचरणों के निरादर का ही फल है । जो लोग भी आपके चरण कमलों से प्रेम नहीं करते, वे ही इस अथाह भव सागर में पड़े हुए हैं ।

हे करुणानिधान ! जिन लोगों को आपके श्रीचरणों में प्रेम नहीं वे नित्य हमेशा ही, अत्यन्त दीन, मलीन, उदास एवं दुखी रहते हैं तथा जिन लोगों को आपकी लीला कथा का आधार है व एक मात्र आपका ही आश्रय है.... ऎसे उन लोगों को, प्रभु के प्यारे संत और भगवान सदा ही प्रिय लगते हैं ।

शनिवार, 13 जुलाई 2013

ब्रह्मगिरी पहाडि़यों में बसा भारत का स्कॉटलैंड - कुर्ग



कुर्ग के बारे में काफी सुना था। गर्मी की छुट्टियों में वक्त मिला तो आनन् फानन में कुर्ग जाने का प्लान बना डाला। मगर रेलवे की टिकट बुक करने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। काफी भाग दौड़ और सिफारिशों के बाद मंगलौर तक की रेलवे टिकट बुक करा पाया। मंगलौर से कुर्ग की दूरी है 135 किलोमीटर। यहां से मडिकेरी तक सीधी बसें मिल जाती हैं। मडिकेरी कुर्ग जिले का हेडक्वार्टर है। मंगलौर से बस में मडिकेरी पहुंचने में साढ़े 4 घंटे लगते हैं, करीब इतना ही वक्त मैसूर से मडिकेरी पहुंचने में लगता है।
समुद्र तल से 1525 मीटर की उंचाई पर बसा मदिकेरी कर्नाटक के कोडगु जिले का मुख्यालय है। मदिकेरी को दक्षिण का स्कॉटलैंड कहा जाता है। यहां की धुंधली पहाढ़ियां , हरे वन, कॉफी के बगान और प्रकृति के खूबसूरत दृश्य मदिकेरी को अविस्मरणीय पर्यटन स्थल बनाते हैं। मदिकेरी और उसके आसपास बहुत से ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी हैं। यह मैसूर से 125 किमी. दूर पश्चिम में स्थित है और कॉफी के उद्यानों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है।
1600 ईसवी के बाद लिंगायत राजाओं ने कुर्ग में राज किया और मदिकेरी को राजधानी बनाया। मदिकेरी में उन्होंने मिट्टी का किला भी बनवाया। 1785 में टीपू सुल्तान की सेना ने इस साम्राज्य पर कब्जा करके यहां अपना अधिकार जमा लिया। चार वर्ष बाद कुर्ग ने अंग्रेजों की मदद से आजादी हासिल की और राजा वीर राजेन्द्र ने पुर्ननिर्माण का कार्य किया। 1834 ई. में अंग्रेजों ने इस स्थान पर अपना अधिकार कर लिया और यहां के अंतिम शासक पर मुकदमा चलाकर उसे जेल में डाल दिया।
कुर्ग अंग्रेजों का दिया नाम है जिसे बदलकर कोडगु कर दिया गया है। यहां की भाषा कूर्गी है। स्थानीय लोग इसे कोडवक्तया कोडवा कहते हैं। मडिकेरी के अलावा कुर्ग के मुख्य इलाके हैं विराजपेट, सोमवारपेट और कुशलनगर। यहां लोगों में एक अलग तरह की खुशमिजाज़ी है, जो आप कुदरत के करीब रहने वाले हर इंसान में देख सकते हैं। दक्षिण भारत के दूसरे इलाकों से कुर्ग हर मायने में अलग है। कूर्गी लोग आमतौर पर गोरे, आकर्षक और अच्छी कद-काठी वाले हैं। लोगों की वेशभूषा भी अलग है। कूर्गी पुरुष काले रंग का एक खास तरह का परिधन पहनते हैं जिसे स्थानीय भाषा में कुप्या कहते हैं। खरीदारी कर रहीं कुछ स्थानीय महिलाएं अलग अंदाज में साड़ी पहने हुए दिखीं, जिसमें वो खूबसूरत लग रही थीं।
स्थानीय तौर तरीकों से वाकिफ होने के लिहाज से हमने मंगलौर से मडिकेरी तक बस में सपफर करना उचित समझा। मदिकेरी के कर्नाटक स्टेट ट्रांसपोर्ट के बस स्टैंड से हमारा होटल पांच किलोमीटर की दूरी पर था। होटल पहुंचकर हम तरोताजा हुए और कुछ देर आराम करने के बाद चहल कदमी करने निकल गए। हमने अपने होटल के जरिये एक स्थानीय टैक्सी चालक मुथु से बात की और उसे अगले दिन सुबह होटल आने को कहा।
साफ-सुथरी आबो-हवा, पंछियों की चहचहाहट और होटल के कमरे में कुनकुनाती हुई धूप के बीच मडिकेरी में यह हमारी एक ताजगी भरी सुबह थी। मुथु आज हमें मडिकेरी के आस-पास कुछ खास जगहों की सैर कराने वाला था।
 

सबसे पहले हम ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचे, जहां घंटियों की गूंज और ईश्वर दर्शन से हमारे दिन का आगाज हुआ। भगवान शिव और विष्णु को समर्पित इस मंदिर की स्थापना हलेरी वंश के राजा लिंगराजेन्द्र द्वितीय ने 1829 ईसवी में की थी। मान्यता है कि लिंग राजेंद्र ने काशी से शिवलिंग लाकर यहां स्थापित किया। मंदिर में आपको इस्लामिक स्थापत्य शैली की झलक मिलेगी। मंदिर में एक केंद्रीय गुम्बद और चार मीनारें हैं जो बासव अर्थात पवित्र बैलों से घिरी हुई हैं। इसके प्रांगण में एक तालाब है जिसमें कातला प्रजाति की मछलियां हैं। ये तालाब को गंदा होने से बचाती हैं। आप चाहें तो मछलियों को खाना भी खिला सकते हैं। पल भर के लिए पानी से उचक कर बाहर निकलती और खाना लेकर फिर पानी में गुम होती मछलियां। यह मजेदार दृश्य मंदिर को और आकर्षक बनाता है ।
मंदिर से निकलकर हम राजा की सीट ;गद्दीद्ध की तरफ बढ़े। हरे-भरे बाग के अंदर है राजा की ऐतिहासिक गद्दी। यहां से दूर-दूर फैले हरे धन के खेतों, घाटियों, भूरे-नीले घाटों के दृश्य देखे जा सकते हैं। यह वो जगह है जहां कुर्ग के राजा अपनी शामें बिताया करते थे। पहाडि़यों, बादलों और धुंध के बीच सिमटे कुर्ग का दृश्य देखकर आपका मन बाग-बाग हो जाएगा। बेहतर है कि शाम के समय ही यहां आएं ताकि डूबते सूरज का दिलकश नजारा आपसे छूट न जाए। राजा की सीट के साथ ही चोटी मरियम्मा नामक एक प्राचीन मंदिर है।
मडिकेरी में ऐतिहासिक महत्व की कई जगहें हैं और मडिकेरी किला उनमें से एक है। प्रारंभ में यह किला मिट्टी का बना था और इसका निर्माण मुद्दु राजा ने करवाया था । टीपू सुल्तान ने इसका पुननिर्माण करके इसमें पत्थरों का इस्तेमाल किया। टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में यहां कुछ समय के लिए शासन किया था। किले के अंदर लिंगायत शासकों का महल है। किले में एक पुरानी जेल, गिरिजाघर और मंदिर भी हैं। गिरिजाघर को म्यूजि़यम में तब्दील कर दिया गया है। छोटे से म्यूजि़यम का चक्कर लगाकर हम किले से बाहर निकल आए।
राजा की कब्रगाह हमारा अगला पड़ाव थी। मडिकेरी से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक टीले नुमा मैदान पर हैं राजा वीर राजेंद्र और लिंगराजेंद्र की कब्रगाहें। इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के अलावा प्रकृति-प्रेमियों को भी यह जगह पसंद आएगी। खास बात यह है कि कब्रगाह के अंदर एक शिवलिंग स्थापित है।
यहां से हम एबी वाटरफाल की तरफ बढ़े। मडिकेरी से 8 किलोमीटर दूर एबी वाटरफाल एक निजी कॉफी-एस्टेट के अंदर है। एस्टेट में कदम रखते ही कॉफी, काली-मिर्च, इलायची और दूसरे कई पेड़-पौधों देखने को मिलते हैं। हरियाली और ढलान भरे रास्ते से उतरते हुए हमें कल-कल करते झरने की आवाज सुनाई दी। कुछ कदम चलने के बाद दिखा एबी वाटरफाल, जिसके ठीक सामने हैंगिंग ब्रिज यानि झूलता हुआ पुल है। पुल पर खड़े हो जाएं तो झरने से उड़ते छींटे आपको सराबोर कर देते हैं। कुदरत के तोहफे को नजरों में कैद करने का मजा ही कुछ और है। झरनों को पूरे शबाब पर देखना हो तो माॅनसून से अच्छा वक्त कोई नहीं है। पुल के पास एक इंद्रधनुष नजर आया जिसने माहौल को और दिलकश बना दिया। पर कुदरती खूबसूरती के अलावा भी बहुत कुछ है कुर्ग में।
 

कावेरी का उद्गम- तलकावेरी
मदिकेरी से 40 किमी. दूर भागमंडल को दक्षिण का काशी भी कहा जाता है। जब से भगन्द महर्षि ने यहां शिवलिंग स्थापित करवाया इसे भागमंडल के नाम से जाना जाता है। यहां तीन नदियों का संगम है। कावेरी, कनिका और सुज्योति। हिंदुओं के लिए यह धार्मिक महत्व की जगह है। पास में ही शिव का प्राचीन भागंदेश्वर मंदिर है। यह केरल शैली में बना खूबसूरत मंदिर है। भागमंडल के समीप ही महाविष्णु, सुब्रमन्यम और गणपति मंदिर भी हैं। आप भागमंडल में ठहरना चाहें तो कर्नाटक टूरिज़्म का यात्रा निवास सस्ती और अच्छी जगह है।
भागमंडल से 8 किलोमीटर की दूरी पर है तलकावेरी। यह कावेरी नदी का उद्गम स्थल है। यह ब्रह्मगिरी पहाड़ के ढलान पर स्थित है। समुद्र तल से इस स्थान की ऊंचाई 4500 फीट है। कोडव यानि कुर्ग के लोग कावेरी की पूजा करते हैं। मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुंडिका है, जो कावेरी का उद्गम स्थान है। इसके सामने एक कुंड है जहां दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु स्नान करते हैं। कावेरी के सम्मान में यहां हर साल 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्योहार मनाया जाता है। यह कुर्ग के बड़े त्योहारों में से एक है। मंदिर के प्रांगण में सीढि़यां हैं जो आपको एक ऊंची पहाड़ी पर ले जाएंगी। यहां से आप कुर्ग का नयनाभिराम नजारा देख सकते हैं। एक तरफ बिछी हरियाली की चादर है तो दूसरी ओर केरल की पहाडि़यां हैं। नीचे सर्पीली सड़क पर सरकते हुए इक्का-दुक्का वाहन हैं तो ऊपर अठखेलियां करते हुए बादल। नजर घुमाओ तो ब्रह्मगिरी की ऊंची-नीची पहाडि़यों पर कोहरे के बीच घूमती पवनचक्कियां हैं। ऐसे खूबसूरत नजारे को देखकर समझ में आया कि कुर्ग को भारत का स्कॉटलैंड क्यों कहते हैं। भागमंडल पहुंचने के लिए बेहतर होगा कि आप कोई टैक्सी या जीप कर लें।
 

इगुथप्पा हैं इष्टदेव
शाम ढलने को थी। ऊंची और सुनसान सड़क पर दौड़ती हुए टैक्सी हमें एकांत जगह पर ले आई। यह इगुथप्पा मंदिर था, कोडव लोगों के इष्टदेव इगुथप्पा यानि शिव का मंदिर। कूर्गी भाषा में इगु का मतलब है खाना, और थप्पा का मतलब है देना, इगुथप्पा यानि खाना देना। राजा लिंगराजेंद्र ने 1810 ईसवी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के पुजारी लव ने बताया कि कोडव लोगों के लिए कावेरी अगर जीवनदायिनी मां है तो इगुथप्पा उनके पालक हैं। प्रसाद के रूप में मंदिर में रोजाना भोजन की भी व्यवस्था है। किसी भी जरूरी कर्मकांड से पहले स्थानीय लोग यहां आकर अपने इष्टदेव से आशीर्वाद लेना नहीं भूलते।
हमने भी इगुथप्पा का आशीर्वाद लिया और चेलवरा फाल की तरफ बढ़ गए। चेलवरा कुर्ग के खूबसूरत झरनों में से एक है। यह विराजपेट से करीब 16 किलोमीटर दूर है। एक तंग पगडंडी से होकर चेलवरा फाल तक पहुंचा जाता है। अगर मानसून के वक्त आप यहां आएं तो थोड़ी सावधानी जरूर बरतें। बारिश के दिनों में यह काफी फिसलनभरा होता है। चेलवरा फाल से 2 किलोमीटर आगे चोमकुँड की पहाड़ी है। यहां खूबसूरत नजारों के बीच आप सूरज को ढलता देख सकते हैं।
एशिया का सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक
दुनिया में 3 देश कॉफी के बड़े उत्पादक हैं- ब्राजील, वियतनाम और भारत। भारत में कॉफी की खेती की शुरुआत कुर्ग से हुई थी और यह एशिया का सबसे ज्यादा कॉफी उत्पादन करने वाला इलाका है। कॉफी की दो किस्में होती हैं, रोबस्टा और अरेबिका। रोबस्टा कॉफी काफल छोटा जबकि अरेबिका का फल आकार में थोड़ा बड़ा होता है। अरेबिका की फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। यह कॉफी रोबस्टा से महंगी है।
कॉफी और काली मिर्च की खेती कूर्गी लोगों के रोजगार का मुख्य साधन है। इसके अलावा यहां इलायची, केले, चावल और अदरक की खेती भी होती है। कुर्ग के किसान नवंबर-दिसंबर के महीने में पूर्णमासी के दिन हुत्तरी का त्योहार जोशो-खरोश से मनाते हैं। यह फसल का त्योहार है। इस दिन पारंपरिक पोशाकों में सजे-धजे किसान स्थानीय संगीत वालगा की धुन पर थिरकते हैं और अच्छी फसल की दुआ करते हैं।
अब चर्चा मदिकेरी के आस पास स्थित कुछ पर्यटन स्थलों की।
नागरहोल राष्ट्रीय पार्क- अगर आप वन्य जीवों से रूबरु होना चाहते हैं तो मदिकेरी से 93किमी. दूर नागरहोल राष्ट्रीय पार्क जरूर जाएं । यहां हिरन, बाइसन, हाथी, जंगली भालू, भेडि़ये के अलावा बंदर की विभिन्न प्रजातियों और विशाल टाइगरों को देखा जा सकता है। 284 वर्ग किमी. क्षेत्रा में पफैला यह पार्क उष्ण कटिबंध्ीय पतझड़ वनों से घिरा हुआ है।
इरप्पु झरना- मदिकेरी से 91 किमी. दूर इरप्पु तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है जिसका संबंध् रामायण के नायक राम से है। रामतीर्थ नदी के किनारे पर ही भगवान शिव का मंदिर है। शिवरात्रि के मौके पर हजारों तीर्थ यात्री इस नदी में डुबकी लगाते हैं।
हरंगी बांध्- मदिकेरी से लगभग 36 किमी. दूर हरंगी अपने ट्री हाउसों के लिए लोकप्रिय है। उत्तरी कुर्ग के कुशलनगर के समीप स्थित हरंगी बांध् एक दर्शनीय पिकनिक स्थल है। कावेरी नदी पर बना यह बांध् 2775 फीट लंबा और 174 फीट ऊंचा है।
नल्कनाद महल- कोडगू की सबसे ऊंची पहाड़ी के तल पर बना नल्कनाद महल अतीत की याद दिलाता एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है। मदिकेरी से 45 किमी. दूर यह महल 1792 में डोडा वीरराज द्वारा बनवाया गया था। दो खंड का यह महल अपनी आकर्षक चित्राकारी और वास्तुकारी से सबको मोहित कर देता है।
खरीददारी- मदिकेरी से आप कॉफी, काली मिर्च, इलायची और शहद खरीद सकते हैं। ये सभी चीजें अच्छी किस्म की हैं और ठीक दाम पर मिल जाती हैं। मौसम हो तो कुर्ग के संतरे जरूर खाएं। यूं तो साल भर कुर्ग का मौसम सुहावना रहता है लेकिन मानसून के दौरान यहां आने से बचें।
अगर आप मांसाहार के शौकीन हैं तो कुर्ग आपके लिए मुफीद जगह है। लोग ज्यादातर मांसाहारी हैं और चिकन, मटन के अलावा पोर्क यानि सूअर का मांस भी शौक से खाते हैं। माना जाता है कि कूर्गी यूनान के महान राजा सिकंदर की सेना के वंशज हैं।
विराजपेट से काकाबे गांव तक जाते हुए हमें सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी मिल गए। उन्होंने बताया कि भारतीय सेनाओं में बहुत से अधिकारी और जवान कुर्ग से ही हैं।
एक दशक पहले तक कुर्ग के हर घर से एक सदस्य भारतीय सेना में जरूर भर्ती होता था। एक और दिलचस्प बात पता चली कि कुर्ग के लोगों को बंदूक रखने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं है।
कुर्ग घूमने का उपयुक्त समय है- अक्टूबर से अप्रैल तक।

बुधवार, 10 जुलाई 2013

तबाही में बचा सिर्फ केदारनाथ मंदिर, जानिए इसकी हजारों साल पुरानी बातें...

उत्तराखंड में आए जल प्रलय से एक ओर जहां पूरा केदारनाथ धाम तबाह हो चुका है, वहीं दूसरी ओर उस क्षेत्र में सिर्फ केदारनाथ मंदिर ही अभी भी दिखाई दे रहा है। मंदिर की इमारत ने भीषण जल प्रलय का सामना मजबूती से किया है और मरम्मत कार्य के बाद पुन: मंदिर की गरिमा लौट आएगी।
यह मंदिर हजारों साल पुराना है, लेकिन आज भी ये मजबूती की एक मिसाल है। केदारनाथ मंदिर की इमारत का निर्माण इतने अच्छे ढंग से किया गया था कि इतनी भयंकर आपदा में मंदिर का ऐतिहासिक हिस्सा बचा रह गया, जबकि आधुनिक समय में हुए निर्माण बाढ़ के साथ बह गए।
यहां देखिए केदारनाथ के शानदार फोटो और जानिए केदारनाथ मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें, जो आज भी काफी लोगों के लिए अनजानी हैं...

इस शिवलिंग के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है। अर्थात् यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है। मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडव वंश के राजा जनमेजय ने करवाया था। आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। आदि गुरु ने ही चार प्रमुख धामों में केदारनाथ को भी एक धाम घोषित किया।
हिंदू धर्म में केदारनाथ धाम की बड़ी महिमा बताई गई है। उत्तराखंड में ही बद्रीनाथ धाम भी स्थित है। दोनों ही धाम पापों का नाश करने वाले और अक्षय पुण्य प्रदान करने वाले बताए गए हैं।
जो भी व्यक्ति इनके दर्शन कर लेता है, वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। ऐसे लोगों की आत्मा देह त्याग के बाद शिवलोक और विष्णुलोक में निवास करती है। बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम, दोनों के दर्शन से ही तीर्थयात्रा पूर्ण मानी जाती है। किसी एक धाम के दर्शन मात्र से पूर्ण पुण्य प्राप्त नहीं हो पाता है।
 
केदारनाथ धाम का मंदिर कितना पुराना है, इस संबंध में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण पांडव वंश के राजा जनमेजय द्वारा करवाया गया था। इस बात से स्पष्ट है कि मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर का जीर्णोधार करवाया गया। आदि गुरु शंकराचार्य से पूर्व भी इस मंदिर में शिवजी के दर्शन लिए भक्त जाते रहे होंगे, ऐसा माना जाता है।
केदारनाथ मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारो ओर परिक्रमा करने का मार्ग है। मंदिर के परिसर में शिवजी के वाहन नन्दी विराजित हैं।
यहां शिवजी के पूजन की विशेष विधि काफी प्राचीन है। प्रात:काल में शिवलिंग को प्राकृतिक रूप से स्नान कराया जाता है। घी का लेपन किया जाता है। इसके बाद धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ भगवान की आरती की जाती है। शाम के समय भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
केदारनाथ धाम में स्थित पंच केदार के संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा पांडवों से जुड़ी हुई है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध में पांचों पांडवों ने अपने भाइयों का वध करके विजय प्राप्त की। भाइयों के वध से पांचों पांडव भातृहत्या के पाप के भागी हो गए थे। इस पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे।
भातृहत्या पाप से मुक्ति के लिए पांडव काशी गए और शिवजी का दर्शन करना चाहा, लेकिन भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन नहीं दिए। तब शिवजी के दर्शन प्राप्त करने के लिए पांडव शिव के धाम हिमालय पहुंच गए। जब पांडव हिमालय के केदार क्षेत्र में पहुंच गए, तब शिवजी वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए।
महादेव पांडवों से रुष्ट थे, क्योंकि उन्होंने अपने भाइयों का वध किया था। इसी वजह से वे पांडवों को दर्शन नहीं दे रहे थे। जब पांडव केदार क्षेत्र में आ गए, तब शिवजी ने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं में शामिल हो गए।
जब पांडवों को शिवजी केदार क्षेत्र में भी दिखाई नहीं दिए, तब वहां स्थित पशुओं को देखकर उन्हें कुछ संदेह हुआ। संदेह को दूर करने के लिए भीम ने अपना शरीर भीमकाय बना लिया। अब भीम ने दो पहाड़ों पर अपने पैर फैला दिए। ऐसे में सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से गुजरने लगे। भोलेनाथ भीम के पैरों के नीचे से निकलना नहीं चाहते थे। जब भीम ने देखा एक बैल पैरों के नीचे से नहीं निकल रहा है, तब वे उस बैल पर झपट गए। भीम के झपटते ही बैल के रूप में शिवजी अंतर्ध्यान होने लगे। तभी भीम ने बैल की पीठ पर पिंडी के समान उठे हुए भाग को पकड़ लिया।
अब महादेव पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प से प्रसन्न हो गए और उनके सामने प्रकट हो गए। शिवजी के दर्शन मात्र से ही पांडवों के सभी पाप नष्ट हो गए। तभी से इस स्थान पर पिंडी के रूप में शिवजी पूजे जाने लगे।
मान्यताओं के अनुसार, जब शिवजी बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए थे तो उनका धड़ काठमांडू में प्रकट हुआ। वहां अब पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है।
शिवजी की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इन चारो स्थानों के साथ ही केदारनाथ को पंचकेदार नाम से पुकारा जाता है।
केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने वाले आदिगुरु शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में इसी क्षेत्र में समाधि ली थी। आदिगुरु का समाधि स्थल मंदिर के पास ही स्थित है। आदिगुरु शंकराचार्य ने ही चारो धाम, बारह ज्योतिर्लिंग और 51 शक्तिपीठों को खोजा। उन्होंने हिंदू धर्म को संगठित करने के लिए संपूर्ण भारत में भ्रमण किया था।
आदिगुरु ने भारत की यात्रा का अंतिम पड़ाव केदारनाथ में डाला। हिंदू धर्म और मानवता की रक्षा के लिए आदिगुरु ने चार मठों की स्थापना की।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शिवपुराण की कोटिरुद्र संहिता के बताया गया है कि किस प्रकार केदारनाथ धाम की स्थापना हुई है। बदरीवन में विष्णु के अवतार नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का नित्य पूजन करते थे। उनके पूजन से प्रसन्न होकर भगवान शंकर वहां प्रकट हुए तथा वरदान मांगने को कहा। तब जगत के कल्याण के लिए नर-नारायण ने शंकर को वहीं पर स्थापित होने का वरदान मांगा। शिव प्रसन्न हुए तथा कहा कि यह क्षेत्र आज से केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा।
भारत के चार धामों में से एक केदारनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।
यह मंदिर शिवजी का मंदिर है और भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर हिमालय की गोद में स्थित है। इसी वजह से अधिकांश समय यहां का वातावरण प्रतिकूल रहता है। इसी वजह से केदारनाथ धाम दर्शनार्थियों के लिए हमेशा खुला नहीं रहता है। मंदिर  अप्रैल से नवंबर तक दर्शन के लिए खोला जाता है।
महादेव ने कहा कि जो भी भक्त केदारनाथ के साथ ही नर-नारायण के दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होगा और अक्षय पुण्य प्राप्त करेगा। ऐसे भक्त मृत्यु के बाद शिवलोक प्राप्त करेंगे। इसके बाद शिवजी प्रसन्न होकर ज्योति स्वरूप में वहां स्थित लिंग में समाविष्ट हो गए। देश में बारह ज्योर्तिलिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का क्रम पांचवां है। कई ऋषियों एवं योगियों ने यहां भगवान शिव की अराधना की है और मनचाहे वरदान भी प्राप्त किए हैं।
केदारनाथ में शिवजी को कड़ा चढ़ाने का विशेष महत्व माना जाता है। जो भी व्यक्ति वहां कड़ा चढ़ाकर शिव सहित उस कड़े के एवं नर-नारायण पर्वत के दर्शन करता है, वह फिर जन्म और मृत्यु के चक्र में नहीं फंसता है। ऐसे भक्त को भवसागर से मुक्ति प्राप्ति होती है।
शिवपुराण के कोटिरुद्र संहिता में वर्णन  है कि-
केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:। तेपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्या विचारणा।।
शिवपुराण के अनुसार केदारनाथ के मार्ग में या उस क्षेत्र में जो भी भक्त मृत्यु को प्राप्त होगा, वह भी भवसागर से मुक्ति प्राप्त करेगा।
केदारनाथ क्षेत्र में पंहुचकर उनके पूजन के पश्चात वहां का जल पी लेने से भी मनुष्य मुक्ति को प्राप्त करता है। वहां के जल का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है।
हिमालय में बसा केदारनाथ उत्तरांचल राज्य का एक कस्बा है। यह रुद्रप्रयाग की एक नगर पंचायत है। यह हिंदू धर्म के लिए एक पवित्र स्थान है। केदारनाथ शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ ही चार धामों में भी शामिल है। श्रीकेदारनाथ मंदिर 3,593 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊंचाई पर मंदिर को कैसे बनाया गया, यह आज भी एक रहस्य के समान है।
इस धाम के संबंध में शास्त्रों के अनुसार कई कथाएं प्रचलित हैं। एक अन्य कथा के अनुसार सतयुग में शासन करने वाले एक राजा हुए थे, उनका नाम था केदार। राजा केदार के नाम पर भी इस स्थान को केदार पुकारा जाने लगा।
राजा केदार ने सातों महाद्वीपों पर शासन किया था। वे धर्म के मार्ग पर चलने वाले और तेजस्वी राजा थे।
उनकी एक पुत्री थी वृंदा, जो देवी लक्ष्मी की आंशिक अवतार मानी जाती हैं। वृंदा ने 60,000 वर्षों तक तपस्या की थी। वृंदा के नाम पर ही इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है।
केदारनाथ मंदिर काफी प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत में चार धाम स्थापित करने के यहीं समाधि ली थी। तब शंकराचार्य की आयु मात्र 32 वर्ष थी। आदिगुरु ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
केदारनाथ क्षेत्र में एक झील है। इसमें अधिकांश समय बर्फ तैरती रहती है। इस झील का संबंध महाभारत काल से है। ऐसा माना जाता है कि इसी झील से पांडव पुत्र युद्धिष्ठिर स्वर्ग की ओर गए थे।
केदारनाथ धाम मंदिर से करीब छह किलोमीटर दूर एक पर्वत स्थित है। इस पर्वत का नाम है चौखंबा पर्वत। यहां वासुकी नाम का तालब है, जहां ब्रह्म कमल काफी होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्म कमल के दर्शन करने पर पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इसी वजह से काफी लोग यहां ब्रह्म कमल देखने आते हैं।
यहां गौरी कुंड, सोन प्रयाग, त्रिजुगीनारायण, गुप्तकाशी, उखीमठ, अगस्तयमुनि, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थल हैं।

गुरुवार, 20 जून 2013

भारत की नदियाँ

भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिन्धु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का जमाव नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है।
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
  • हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
  • दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
  • तटवर्ती नदियाँ
  • अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं। हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।

सिंधु नदी

विश्‍व की महान, नदियों में एक है, तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्‍पश्‍चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्‍बत से निकलती है), व्‍यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।

गंगा

ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

ब्रह्मपुत्र

ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्‍त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

सहायक नदियाँ

यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्‍त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्‍य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्‍कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्‍वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्‍लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-‍ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप

भौतिक दृष्टि से देश में प्रायद्धीपेत्तर तथा प्रायद्धीपीय नदी प्रणालियों का विकास हुआ है, जिन्हे क्रमशः हिमालय की नदियाँ एवं दक्षिण के पठार की नदियाँ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिमालय अथवा उत्तर भारत की नदियों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं।

पूर्वीवर्ती अपवाह

इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है, जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी में ही प्रवाहित होती है। इस अपवाह प्रतिरूप की नदियों द्वारा सरित अपहरण का भी उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी, तिस्ता आदि नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती हैं।

क्रमहीन अपवाह

जब कोई नदी अपनी प्रमुख शाखा से विपरीत दिशा से आकर मिलती है तब क्रमहीन या अक्रमवर्ती अपवाह प्रतिरूप का विकास हो जाता है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सहायक नदियाँ - दिहांग, दिवांग तथा लोहित इसी प्रकार का अपवाह बनाती है।

खण्डित अपवाह

उत्तर भारत के विशाल मैदान में पहुंचने के पूर्व भाबर क्षेत्र में विलीन हो जाने वाली नदियाँ खण्डित या विलुप्त अपवाह का निर्माण करती हैं।

मालाकार अपवाह

देश की अधिकांश नदियाँ समुद्र में मिलने के पूर्व अनेक शाखाओं में विभाजित होकर डेल्टा बनाती हैं, जिससे गुम्फित या मालाकार अपवाह का निर्माण होता है ।

अन्तस्थलीय अपवाह

राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र अरावली पर्वतमाला से निकलकर विलीन हो जाने वाली नदियाँ अन्तः स्थलीय अपवाह बनाती हैं।

समानान्तर अपवाह

उत्तर के विशाल मैदान में पहुंचने वाली पर्वतीय नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।

आयताकार अपवाह

उत्तर भारत के कोसी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा आयताकार अपवाह प्रतिरूप का विकास किया गया है।

दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ

दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।

दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप

दक्षिण भारत अथवा प्रायद्वीपीय पठारी भाग पर प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।

अनुगामी अपवाह

जब कोई नदी धरातलीय ढाल की दिशा में प्रवाहित होती है तब अनुगामी अपवाह का निर्माण होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों का उद्भाव पश्चिमी घाट पर्वत माला में हैं तथा वे ढाल के अनुसार प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी अथवा अरब सागर में गिरती हैं और अनुगामी अपवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

परवर्ती अपवाह

जब नदियाँ अपनी मुख्य नदी में ढाल का अनुसरण करते हुए समकोण पर आकर मिलती हैं, तब परवर्ती अपवाह निर्मित होता है। दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलकर गंगा तथा यमुना नदियों में मिलने वाली नदियाँ - चम्बल, केन, काली, सिन्ध, बेतवा आदि द्वारा परवर्ती अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।

आयताकार अपवाह

विन्ध्य चट्टानों वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र में नदियों ने आयताकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण किया है, क्योंकि ये मुख्य नदी में मिलते समय चट्टानी संधियों से होकर प्रवाहित होती हैं तथा समकोण पर आकर मिलती है।

जालीनुमा अपवाह

जब नदियाँ पूर्णतः ढाल का अनुसरण करते हुए प्रवाहित होती है तथा ढाल में परिवर्तन के अनुसार उनके मार्ग में भी परिवर्तन हो जाता है, जब जालीनुमा अथवा ‘स्वभावोद्भूत’ अपवाह प्रणाली का विकास होता है। पूर्वी सिंहभूमि के प्राचीन वलित पर्वतीय क्षेत्र में इस प्रणाली का विकास हुआ है।

अरीय अपवाह

इसे अपकेन्द्रीय अपवाह भी कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थान से निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थानसे निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। दक्षिण भारत में अमरकण्टक पर्वत से निकलने वाली नर्मदा, सोन तथा महानदी आदि ने अरीय अपवाह का निर्माण किया गया है।

पादपाकार अथवा वृक्षाकांर अपवाह

जब नदियाँ सपाट तथा चौरस धरातल पर प्रवाहित होते हुए एक मुख्य नदी की धारा में मिलती हैं, तब इस प्रणाली का विकास होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों द्वारा पादपाकार अपवाह का निर्माण किया गया है।

समानान्तर अपवाह

पश्चिमी घाट पहाड़ से निकलकर पश्चिम दिशा में तीव्र गति से बढ़कर अरब सागर में गिरने वली नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह का निर्माण किया गया है।

तटवर्ती नदियाँ

भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।


भारत की प्रमुख नदियों की सूची

क्रम नदी लम्बाई (कि.मी.) उद्गम स्थान सहायक नदियाँ प्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य)

1 सिन्धु नदी 2,880 (709) मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित, श्योक जम्मू और कश्मीर, लेह
2 झेलम नदी 720 शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध जम्मू-कश्मीर, कश्मीर
3 चिनाब नदी 1,180 बारालाचा दर्रे के निकट चन्द्रभागा जम्मू-कश्मीर
4 रावी नदी 725 रोहतांग दर्रा, कांगड़ा साहो, सुइल हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब
5 सतलुज नदी 1440 (1050) मानसरोवर के निकट राकसताल व्यास, स्पिती, बस्पा हिमाचल प्रदेश, पंजाब
6 व्यास नदी 470 रोहतांग दर्रा तीर्थन, पार्वती, हुरला हिमाचल प्रदेश
7 गंगा नदी 2,510 (2071) गंगोत्री के निकट गोमुख से यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन, अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल
8 यमुना नदी 1375 यमुनोत्री ग्लेशियर चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली
9 रामगंगा नदी 690 नैनीताल के निकट एक हिमनदी से खोन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश
10 घाघरा नदी 1,080 मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया उत्तर प्रदेश, बिहार
11 गंडक नदी 425 नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा बिहार
12 कोसी नदी 730 नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी सिक्किम, बिहार
13 चम्बल नदी 960 मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास मध्य प्रदेश
14 बेतवा नदी 480 भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास मध्य प्रदेश
15 सोन नदी 770 अमरकंटक की पहाड़ियों से रिहन्द, कुनहड़ मध्य प्रदेश, बिहार
16 दामोदर नदी 600 छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व कोनार, जामुनिया, बराकर झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
17 ब्रह्मपुत्र नदी 2,880 मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग अरुणाचल प्रदेश, असम
18 महानदी 890 सिहावा के निकट रायपुर सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा
19 वैतरणी नदी 333 क्योंझर पठार उड़ीसा
20 स्वर्ण रेखा 480 छोटा नागपुर पठार उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
21 गोदावरी नदी 1,450 नासिक की पहाड़ियों से प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
22 कृष्णा नदी 1,290 महाबलेश्वर के निकट कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
23 कावेरी नदी 760 केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती कर्नाटक, तमिलनाडु
24 नर्मदा नदी 1,312 अमरकंटक चोटी तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना मध्य प्रदेश, गुजरात
25 ताप्ती नदी 724 मुल्ताई से (बेतूल) पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई मध्य प्रदेश, गुजरात
26 साबरमती 716 जयसमंद झील (उदयपुर) वाकल, हाथमती राजस्थान, गुजरात
27 लूनी नदी नाग पहाड़ सुकड़ी, जनाई, बांडी राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी
28 बनास नदी खमनौर पहाड़ियों से सोड्रा, मौसी, खारी कर्नाटक, तमिलनाडु
29 माही नदी मेहद झील से सोम, जोखम, अनास, सोरन मध्य प्रदेश, गुजरात
30 हुगली नदी नवद्वीप के निकट जलांगी
31 उत्तरी पेन्नार 570 नंदी दुर्ग पहाड़ी पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
32 तुंगभद्रा नदी पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
33 मयूसा नदी आसोनोरा के निकट मेदेई
34 साबरी नदी 418 सुईकरम पहाड़ी सिलेरु
35 इन्द्रावती नदी 531 कालाहाण्डी, उड़ीसा नारंगी, कोटरी
36 क्षिप्रा नदी काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर चम्बल नदी
37 शारदा नदी 602 मिलाम हिमनद, हिमालय, कुमायूँ घाघरा नदी
38 तवा नदी महादेव पर्वत, पंचमढ़ी नर्मदा नदी
39 हसदो नदी सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ महानदी
40 काली सिंध नदी 416 बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत यमुना नदी
41 सिन्ध नदी सिरोज, गुना ज़िला चम्बल नदी
42 केन नदी विंध्याचल श्रेणी यमुना नदी
43 पार्वती नदी विंध्याचल, मध्य प्रदेश चम्बल नदी
44 घग्घर नदी कालका, हिमाचल प्रदेश
45 बाणगंगा नदी 494 बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर यमुना नदी
46 सोम नदी बीछा मेंड़ा, उदयपुर जोखम, गोमती, सारनी
47 आयड़ या बेडच नदी 190 गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर बनास नदी
48 दक्षिण पिनाकिन 400 चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक
49 दक्षिणी टोंस 265 तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी
50 दामन गंगा नदी पश्चिम घाट
51 गिरना नदी पश्चिम घाट, नासिक
भारत की नदियाँ  ऐतिहासिक

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( अरविन्द कु.पाण्डेय )