बुधवार, 14 नवंबर 2012

दीपावली की शाम


तुम यूं कौंधे ....
भरी धूप में किसी ने तुरंत धोया हो आँगन
गीले पत्थरों से उठी हो नर्म सी महक
फिर तुम यूं बसे
हर अजनबी रात की आदत हो मानो
और हर पहचाने से दिन से अनचिन्हा हो कोई .....

(अरविन्द कु पाण्डेय)

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