मानव की सेवा में मानव धर्म निहित है। मनुष्य का जीवन मनुष्य के लिए
समर्पित हो। एक व्यक्ति दूसरे के लिए जीये यही मानवता का पाठ है और यही लोक
सेवा की भावना भी सद्कर्मोका द्वार है लोक सेवा इसके द्वारा कोई भी
व्यक्ति महा मानव की दुर्लभ स्थिति प्राप्त कर सकता है। देश सेवा, समाज
सेवा तथा मानव सेवा के लिए लोक सेवा की अवधारणा स्पष्ट है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें