परिचय | इतिहास | भूगोल | अर्थव्यवस्था | शिक्षा | संस्कृति | धार्मिक स्थल | पर्यटन | चित्रावली | विस्तृत आलेख |
वाराणसी
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विवरण | वाराणसी, बनारस या काशी भी कहलाता है। वाराणसी दक्षिण-पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा नदी के बाएँ तट पर स्थित है और हिन्दुओं के सात पवित्र नगरों में से एक है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | वाराणसी ज़िला |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 25.282°, पूर्व- 82.9563° |
मार्ग स्थिति | वाराणसी, इलाहाबाद से 125 किलोमीटर पश्चिम, लखनऊ से 281 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व तथा दिल्ली से लगभग 780 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है। |
प्रसिद्धि | विश्वनाथ मंदिर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , गंगा के घाट |
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस, टैक्सी |
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लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा |
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वाराणसी जंक्शन, मुग़लसराय जंक्शन |
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अंतर्राज्यीय बस अड्डा आनन्द विहार |
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ऑटो रिक्शा, रिक्शा, बस, मिनी बस, नाव, स्टीमर |
क्या देखें | वाराणसी पर्यटन |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि-ग्रह |
क्या खायें | पान, कचौड़ी-सब्ज़ी, चाट, ठंडाई |
क्या ख़रीदें | बनारसी साड़ी |
एस.टी.डी. कोड | 0542 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
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गूगल मानचित्र, वाराणसी हवाई अड्डा |
संबंधित लेख | गंगा नदी, विश्वनाथ मंदिर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
स्थिति
वाराणसी भारतवर्ष की सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी के रूप में विख्यात है। इसकी प्राचीनता की तुलना विश्व के अन्य प्राचीनतम नगरों जेरुसलेम, एथेंस तथा पेइकिंग (बीजिंग) से की जाती है।[1] वाराणसी गंगा के बाएँ तट पर अर्द्धचंद्राकार में 250 18’ उत्तरी अक्षांश एवं 830 1’ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। प्राचीन वाराणसी की मूल स्थिति विद्वानों के मध्य विवाद का विषय रही है।विद्वानों के मतानुसार
शेरिंग,[2] मरडाक,[3] ग्रीब्ज,[4] और पारकर[5] जैसे विद्वानों के मतानुसार प्राचीन वाराणसी वर्तमान नगर के उत्तर में सारनाथ के समीप स्थित थी। किसी समय वाराणसी की स्थिति दक्षिण भाग में भी रही होगी। लेकिन वर्तमान नगर की स्थिति वाराणसी से पूर्णतया भिन्न है, जिससे यह प्राय: निश्चित है कि वाराणसी नगर की प्रकृति यथासमय एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापित होने की रही है। यह विस्थापन मुख्यतया दक्षिण की ओर हुआ है, पर किसी पुष्ट प्रमाण के अभाव में विद्वानों का उक्त मत समीचीन नहीं प्रतीत होता है।गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर को ही भगवान शिव ने पृथ्वी पर अपना स्थायी निवास बनाया था। यह भी माना जाता है कि वाराणसी का निर्माण सृष्टि रचना के प्रारम्भिक चरण में ही हुआ था। यह शहर प्रथम ज्योर्तिलिंग का भी शहर है। पुराणों में वाराणसी को ब्रह्मांड का केंद्र बताया गया है तथा यह भी कहा गया है यहाँ के कण-कण में शिव निवास करते हैं। वाराणसी के लोगों के अनुसार, काशी के कण-कण में शिवशंकर हैं। इनके कहने का अर्थ यह है कि यहाँ के प्रत्येक पत्थर में शिव का निवास है। कहते हैं कि काशी शंकर भगवान के त्रिशूल पर टिकी है।
हेवेल की दृष्टि में
हेवेल की दृष्टि में वाराणसी नगर की स्थिति विस्थापन प्रधान थी, अपितु प्राचीन काल में भी वाराणसी का वर्तमान स्वरूप सुरक्षित था।[6] हेवेल के मतानुसार बुद्ध पूर्व युग में आधुनिक सारनाथ एक घना जंगल था और यह विभिन्न धर्मावलंबियों का आश्रय स्थल भी था। भौगोलिक दशाओं के परिप्रेक्ष्य में हेवेल का मत युक्तिसंगत प्रतीत होता है। वास्तव में वाराणसी नगर का अस्तित्व बुद्ध से भी प्राचीन है तथा उनके आविर्भाव के सदियों पूर्व से ही यह एक धार्मिक नगरी के रूप में ख्याति प्राप्त था। सारनाथ का उद्भव महात्मा बुद्ध के प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन के उपरांत हुआ। रामलोचन सिंह ने भी कुछ संशोधनों के साथ हेवेल के मत का समर्थन किया है। उनके अनुसार नगर की मूल स्थिति प्राय: उत्तरी भाग में स्वीकार करनी चाहिए।[7] हाल के अकथा उत्खनन से इस बात की पुष्टि होती है कि वाराणसी की प्राचीन स्थिति उत्तर में थी जहाँ से 1300 ईसा पूर्व के अवशेष प्रकाश में आये हैं।नामकरण
‘वाराणसी’ शब्द ‘वरुणा’ और ‘असी’ दो नदीवाचक शब्दों के योग से बना है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार 'वरुणा' और 'असि' नाम की नदियों के बीच में बसने के कारण ही इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा।- 'पद्मपुराण' के एक उल्लेख के अनुसार दक्षिणोत्तर में ‘वरना’ और पूर्व में ‘असि’ की सीमा से घिरे होने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा।[8]
- 'अथर्ववेद'[9] में वरणावती नदी का उल्लेख है। संभवत: यह आधुनिक वरुणा का ही समानार्थक है।
- 'अग्निपुराण' में नासी नदी का उल्लेख मिलता है।
इतिहास

भौगोलिक स्थिति

प्रचलित विश्वासों की सूची
- कृत त्रिशूल
- त्रेतायुग चक्र
- द्वापर रथ
- शंखाकार
वाराणसी की नदियाँ

गंगा

अर्थव्यवस्था
उद्योग और व्यापार

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वाणिज्य और व्यापार का प्रमुख केंद्र
वाराणसी नगर वाणिज्य और व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था। स्थल तथा जल मार्गों द्वारा यह नगर भारत के अन्य नगरों से जुड़ा हुआ था। काशी से एक मार्ग राजगृह को जाता था।[10] काशी से वेरंजा जाने के लिए दो रास्ते थे-दूसरा मार्ग बनारस से वैशाली को चला जाता था।[11] वाराणसी का एक सार्थवाह पाँच सौ गाड़ियों के साथ प्रत्यंत देश गया था और वहाँ से चंदन लाया था।[12]
कला और संस्कृति

वाराणसी, भारतीय कला और संस्कृति का पूरा एक संग्रहालय प्रस्तुत करता है। वाराणसी में इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलते पैटर्न और आंदोलनों को महसूस कर सकते हैं। सदियों से वाराणसी ने मास्टर कारीगरों का उत्पादन किया है और और अपनी सुंदर साड़ी, हस्तशिल्प, वस्त्र, खिलौने, गहने, धातु का काम, मिट्टी और लकड़ी और अन्य शिल्प के लिए नाम और प्रसिद्धि अर्जित की है।
वाराणसी ने कई प्रसिद्ध विद्वानों और बुद्धिजीवियों, जो गतिविधि के संबंधित क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ गये है, को जन्म दिया है। वाराणसी, एक अद्वितीय सामाजिक और सांस्कृतिक कपड़े प्रस्तुत करता है। संगीत, नाटक, और मनोरंजन वाराणसी के साथ पर्याय रहे है। बनारस लंबे समय से अपने संगीत, मुखर और वाद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध रहा है और अपने खुद के नृत्य परंपराओं, वाराणसी लोक संगीत और नाटक, मेलों और त्योहारों, अखाड़े, खेल आदि का एक बहुत ही पुराना केन्द्र रहा है।
संगीत

- वाराणसी गायन एवं वाद्य दोनों ही विद्याओं का केंद्र रहा है।
- सुमधुर ठुमरी भारतीय कंठ संगीत को वाराणसी की विशेष देन है।
- इसमें धीरेंद्र बाबू, बड़ी मोती, छोती मोती, सिद्धेश्वर देवी, रसूलन बाई, काशी बाई, अनवरी बेगम, शांता देवी तथा इस समय गिरिजा देवी आदि का नाम समस्त भारत में बड़े गौरव एवं सम्मान के साथ लिया जाता है।
बनारसी साड़ी

- बनारसी साड़ियों दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। लाल, हरी और अन्य गहरे रंगों की ये साड़ियां हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ अवसर के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
- उत्तर भारत में अधिकांश बेटियाँ बनारसी साड़ी में ही विदा की जाती हैं।
- बनारसी साड़ियों की कारीगरी सदियों पुरानी है।
शिक्षण संस्थान

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

साहित्य
वाराणसी संस्कृत साहित्य का केंद्र तो रही ही है, लेकिन इसके साथ ही इस नगर ने हिन्दी तथा उर्दू में अनेक साहित्यकारों को भी जन्म दिया है, जिन्होंने साहित्य सेवा की तथा देश में गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त किया। इनमें भारतेंदु हरिश्चंद्र, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, श्यामसुन्दर दास, राय कृष्णदास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा, बेचन शर्मा "उग्र", विनोदशंकर व्यास, कृष्णदेव प्रसाद गौड़ तथा डॉ. संपूर्णानंद उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त उर्दू साहित्य में भी यहाँ अनेक जाने- माने लेखक एवं शायर हुए हैं। जिनमें मुख्यतः श्री विश्वनाथ प्रसाद शाद, मौलवी महेश प्रसाद, महाराज चेतसिंह, शेखअली हाजी, आग़ा हश्र कश्मीरी, हुकुम चंद्र नैयर, प्रो. हफीज बनारसी, श्री हक़ बनारसी तथा नज़ीर बनारसी का नाम आता है।उत्सवप्रियता
वाराणसी के निवासियों की उत्सवप्रियता का उल्लेख जातकों में सविस्तार मिलता है। महाजनपद युग में दीपावली का उल्लेख मुख्य त्योहारों में हुआ है। एक जातक में उल्लेखित है कि काशी की दीपमालिका कार्तिक मास में मनायी जाती थी। इस अवसर पर स्त्रियाँ केसरिया रंग के वस्त्र पहनकर निकलती थीं।[17]हस्तिमंगलोत्सव
हस्तिमंगलोत्सव भी वाराणसी का एक प्रमुख उत्सव था,[18] जिसका उल्लेख जातकों एवं बौद्ध साहित्य में मिलता है। इसके अतिरिक्त मंदिरोत्सव भी मनाया जाता था, जिसमें सुरापान किया जाता था।[19] एक जातक में उल्लेख आया है कि काशीराज ने एक बार इस अवसर पर तपस्वियों को खूब सुरापान कराया था।[20]वाराणसी के मन्दिर
वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं। वाराणसी कई प्रमुख मंदिरों का नगर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये ऐसे छोटे मंदिर सहायक होते हैं। इन छोटे मंदिरों के साथ ही वाराणसी में ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो समय-समय पर वाराणसी के इतिहास में बनवाये गये थे। वाराणसी में स्थित इन मंदिरों में काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढुंढिराज गणेश, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकठा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं।काशी विश्वनाथ मंदिर

वाराणसी के घाट

पर्यटन

जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या 11,22,748 है, छावनी क्षेत्र की जनसंख्या 17,246 और ज़िले की जनसंख्या 31,3867 है।[21]टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ डायना एल इक, बनारस सिटी ऑफ़ लाइट (न्यूयार्क, 1982), प्रथम संस्करण, पृष्ठ 4
- ↑ एम. ए. शेरिंग, दि सेक्रेड सिटीज ऑफ़ दि हिन्दूज, (लंदन, 1968) पृष्ठ 19-34
- ↑ जे. मरडाक, काशी और बनारस (1894) पृष्ठ 5
- ↑ ई. ग्रीब्ज, काशी, इलाहाबाद, 1909, पृष्ठ 3-4
- ↑ ए. पारकर, ए हैंडबुक ऑफ़ बनारस, पृष्ठ 2
- ↑ ई.वी. हैवेल, बनारस दि सेक्रेड सिटी पृष्ठ 41-50
- ↑ रामलोचन सिंह, बनारस, एक सिटी इन अर्बन ज्योग्राफी, पृष्ठ 31
- ↑ वाराणसीति यत् ख्यातं तम्मानं निगदामिव। दक्षिणातरयौ नयौ परणासिश्चपूर्णत:॥- पद्मपुराण, काशी माहात्म्य 5/58
- ↑ अथर्ववेद, 4/7/1
- ↑ विनयपिटक, जिल्द 1, पृष्ठ 262
- ↑ मोतीचंद्र, काशी का इतिहास, पृष्ठ 49
- ↑ सुत्तनिपात, अध्याय 2, पृष्ठ 523
- ↑ आई.सी.एस.ई
- ↑ सी.बी.एस.ई
- ↑ यू.पी.बोर्ड
- ↑ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन् 1915
- ↑ जातक, भाग 2, पृष्ठ 145 (संख्या 147) मोतीचंद्र, काशी का इतिहास, पृष्ठ 45
- ↑ जातक, भाग 2, संख्या 163, पृष्ठ 215
- ↑ जातक, भाग 2, संख्या 163, पृष्ठ 132
- ↑ 139- जातक, भाग 1, पृष्ठ 208
- ↑ वाराणसी (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) वाराणसी की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2011।
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जवाब देंहटाएंpar ye bhi ek sacchai hai
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